तालिकोटा का युद्ध

तालिकोटा का युद्ध
तालिकोटा का युद्ध

16वीं शताब्दी भारत पर इस्लामिक आक्रमण, उनकी क्रूरता और बर्बता का समय रहा । बाबर के आक्रमण के साथ ही जहाँ एक तरफ मुगल सल्तनत ने हिन्द भूमि पर दस्तक दी तो वहीं शेरशाह सूरी, हुमायूं उसकी अगली नस्लों ने भी जमकर दोहन किया । कहानी भारत की के अब तक के युद्धों के बारे में आपने पिछले अंकों में पढ़ा । आज आपको हम उसके अगले अध्याय तालिकोटा के युद्ध के बारें में बताने जा रहें हैं। तालिकोटा युद्ध को राक्षसी तंगरी या बन्नीहट्टी का युद्ध भी कहा जाता है। इस्लामिक आक्रांताओं ने सांठ गांठ कर दक्षिण से किस तरह हिन्दू शासकों का अंत किया, ये युद्ध उस बात का प्रमाण है ।

बात साल 1565 की है। मुगल बादशाह अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठ चुका है। पानीपत द्वितीय के युद्ध मे उत्तर भारत के इकलौते प्रतापी हिन्दू राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य को गलती से पराजित करने के बाद मुग़ल बादशाह अकबर अपना साम्राज्य स्थापित कर चुका है। अब उसने साम्राज्य विस्तार की नीति बनायी है और दक्षिण की तरफ देख रहा है । दक्षिण भारत की बात करें तो सम्पन्न और सामर्थ्य कई हिन्दू राज्य ऐसे थे, जो मुगलों को दांतों तले चने चबवा सकते थे । हालांकि दिल्ली जीतने के बाद मुगलों की ताकत में आशातीत वृद्धि हई थी, लेकिन दक्षिण भारत अब भी  मुग़लों के अधीन मुश्किल से आ पा रहा था । 



दक्षिण भारत के पठारी हिस्से वाले क्षेत्र को दक्कन कहा जाता था । दक्कन में सुल्तानों का राज चलता था । वो कभी दिल्ली, तो कभी स्वैच्छा के अधीन  राज्य चलाया करते थे । दक्षिण भारत का सबसे ताकतवर राज्य था विजय नगर । विजय नगर साम्राज्य सर्वाधिक संपन्न, शक्तिशाली और संगठित राज्य था और दक्षिण के इस्लामिक राज्यों में इतनी हिम्मत नही थी कि उस राज्य की तरफ अकेले आंख उठाकर देख सकें । इस्लामिक राज्य दक्षिण के इस सम्पन्न राज्य से खुन्नस में रहा करते थें । इसकी एक वजह यह भी थी कि दक्कन के इस्लामिक सल्तनत संगठित नहीं थे, जिसका सीधा फायदा विजय नगर को मिलता था। अंततः अहमद नगर, बीजापुर, गोलकुंडा, बीदर सल्तनत के शासकों ने आपसे मतभेद भुला कर संगठित होना ही आखिरी विकल्प चुना । वो एक हुए और विजय नगर पर हमलें की योजना बनाते हुए उसे चारो ओर से घेर लिया ।



यह उस वक़्त की बात है जब विजय नगर के राजा सदाशिव राव थे लेकिन शासन पर शिकंजा उसके मंत्री रामराय का था । कहा जाता है कि बीजापुर के सुल्तान आदिल अली शाह ने रायचूर, अदोनी और मुग्दल किलों की मांग की थी, जिसे रामराय ने अस्वीकार कर दिया था। जिसके बाद विशाल सम्पन्न साम्राज्य के वर्चस्व को देख आपसी लड़ाई को भूल कर दक्कन के सभी इस्लामिक राजा आपस मे मिल गए और विजय नगर की अमूल्य संपदा हथियाने की सोचने लगें । तालिकोटा, जिसे राक्षसी तांगड़ी नामक जगह भी कहा जाता है, के मैदान में भीषण युद्ध हुआ । 



युद्ध के परिणाम दक्कन के सुल्तानों के पक्ष में रहें । युद्ध मे दक्कन के सुल्तानों ने विजय नगर को जीता और उसके बाद उसकी जमकर लूटपाट की । दक्कन के घुड़सवारों की तुलना में विजय नगर की पैदल सेना कमजोर पड़ गयी । दक्कन के तोप भी काफी प्रभावी रहें और भीतरघात ने भी विजय नगर की पराजय सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई । रामराय युद्ध के दौरान घेर कर मार दिया गया । इस तरह से एक और हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया और दक्कन में भी मुगल सल्तनत का विस्तार हुआ ।

Published By
Prakash Chandra
21-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. तालिकोटा का युद्ध कब हुआ था ?

सन 1565 ईस्वी


2. तालिकोटा का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

विजय नगर के राजा सदाशिव राव और दक्कन के सुल्तानों के मध्य


3. तालिकोटा के युद्ध का परिणाम ?

दक्कन के सुल्तानों के पक्ष में


Related Stories
Top Viewed Forts Stories