देवगिरी का युद्ध

देवगिरी का युद्ध
देवगिरी का युद्ध

अलाउद्दीन खिलजी का सैन्य अभियान उत्तर भारत में परचम बुलंद करने के बाद अब दक्षिण की ओर पाँव पसारने का मन बना चुका था। दिल्ली का वह पहला मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिण भारत में अभी अपना सैन्य अभियान चलाया । गुजरात और मालवा जीतने के बाद अब खिलजी की सेना देवगिरी की की ओर बढ़ी जहां उसका एक शत्रु पहले से मौजूद था- गुजरात से भागा हुआ राजा कर्ण बघेल । 1308 ईस्वी में हुआ देवगिरी का युद्ध राजनैतिक विवशता और सियासी सूझबूझ की कहानी है ।

जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहें हैं ।



मुख्य बिन्दु -




  • युद्ध - देवगिरी के राजा रामचन्द्र देव और मालिक कफूर, आइन उल मुल्क और सिराजुद्दीन ख्वाजा हाजी की संयुक्त सेना

  • वर्ष - 1308 ईस्वी

  • परिणाम - देवगिरी पर अलाउद्दीन खिलजी की सेना का कब्जा



दक्षिण पर आक्रमण करने का मुख्य उद्देश्य धन संपदा को लूटना था । इसके अतिरिक्त देवगिरी पर आक्रमण के दो स्पष्ट और मुख्य कारण थे। पहला ये कि गुजरात अभियान के दौरान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से भयभीत होकर राजा कर्ण बघेल भाग कर देवगिरी आया था और देवगिरी के राजा रामचंद्र देव ने उसे शरण दे दी थी। इसकी वजह से अलाउद्दीन खिलजी में काफी गुस्सा था। इसके अतिरिक्त 1296 ईसवी में एक बार अलाउद्दीन ने देवगिरी को जीत लिया था और उसके बाद देवगिरी के शासक खिलजी के वफादार के तौर पर शासन कर रहें थे लेकिन कुछ समय 13वीं शताब्दी आते आते कर भेजना बंद कर दिया गया। इन दोनों प्रमुख वजहों से अलाउद्दीन खिलजी ने फिर से देवगिरी पर आक्रमण करने का रास्ता अपनाया।



क्यों हुआ देवगिरी का युद्ध - 



इतिहासकार बताते हैं कि 1296 ईसवी के बाद देवगिरी के राजा रामचंद्र देव अलाउद्दीन खिलजी के वफादार के तौर पर राज्य चला रहे थे। लेकिन जब खिलजी राजपूती साम्राज्यों के साथ युद्ध मीन व्यस्त हुआ तभी रामचंद्र के पुत्र सिंहाना ने कर भेजना बंद कर दिया। रामचंद्र देव ने उसे समझाने की कोशिश की और प्रजा की सुरक्षा के लिए कर देते रहने का सुझाव दिया लेकिन उसके पुत्र पर कोई असर नहीं हुआ। शरणार्थी को शरण देकर खिलजी के क्रोध का शिकार होना पहले से भी एक वजह थी ही । खिलजी के गुस्से से बचने के लिए रामचंद्र ने खिलजी से इसका समाधान निकालने को ही कहा अलाउद्दीन खिलजी ने तब जाकर मलिक कपूर की नेतृत्व में एक विशाल सेना देवगिरी की तरफ भेज दिया ।



युद्ध का संभवतः यह भी था कारण -



हालांकि अलाउद्दीन का साफ संदेश था कि रामचंद्र और उसके परिवार को, जो कि वफादार थी, उसे कुछ भी नहीं होना चाहिए। कहा ये भी जाता है कि गुजरात के राजा कर्ण बघेल की पत्नी कमला देवी, जिससे खिलजी ने विवाह किया था, उन्होंने अपनी बेटी देवलदेवी को उनके पास ला देने का आग्रह किया था । आपको बता दें कर्ण वघेल अपनी पुत्री के साथ भागकर देवगिरी में शरण ले चुके थे। एक वजह यह भी थी कि अलाउद्दीन खिलजी ने फिर से देवगिरी पर आक्रमण किया।



देवगिरी पर आक्रमण के लिए शुरू में मलिक शाहीन को भेजना था, जो चित्तौड़ का गवर्नर था लेकिन इसके पूर्व बघेल के आक्रमण से डरकर वह भाग निकला था। अलाउद्दीन खिलजी ने तमाम संभावनाओं पर विचार करते हुए आखिरकार मलिक कफूर को सेनापति बना कर उसके नेतृत्व में देवगिरी पर आक्रमण करना सही समझा। मलिक कफूर के साथ युद्ध मंत्री के तौर पर सिराजुद्दीन ख्वाजा हाजी भी रहे और 30,000 ताकतवर घुड़सवारों की मदद से देवगिरी पर आक्रमण की तैयारी शुरू हुई। इस आक्रमण में तीन राज्यों की सेना ने अलाउद्दीन खिलजी का साथ दिया जो कि उसके जीते हुए राज्य थे। मालवा से आईन उल मुल्क मुल्तानी की सेना, सिराजुद्दीन ख्वाजा हाजी की सेना और गुजरात के गवर्नर अल्प खान की सेना ने संयुक्त रूप से देवगिरी पर हमला किया ।



अल्प खान का बगलाना पर हमला -



मालवा से निकलने के बाद अल्प खान बगलाना चला गया और मलिक काफूर देवगिरी की तरफ बढ़ चला । अल्प खान ने सबसे पहले बगलाना पर हमला किया । बगलाना यादवों द्वारा संरक्षित राज्य था जो रियासत के तौर पर कर्ण वघेल को सौंपा गया था। बगलाना पर हमला करते हुए अल्प खान ने उसे अपने राज्य में मिलाया। उसके बाद वापस देवगिरी की तरफ प्रस्थान किया । कहा जाता है कि सिंघाना जो कि रामचंद्र का पुत्र था, देवलदेवी से विवाह करना चाहता था। लेकिन उसके पिता कर्ण वघेल ने शुरू में इस प्रस्ताव को नकार दिया था। लेकिन जब अल्प खान ने बगलाना पर हमला कर दिया और वघेल मजबूर हो गए तब उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और अपनी पुत्री देवलदेवी को देवीगिरी के लिए रवाना कर दिया। देवलदेवी के निकलते ही अल्प खान का हमला हुआ और बगलाना पर कब्जा कर लिया गया । कर्ण वघेल एक बार फिर वहां से भागकर काकतीय वंश में वारंगल जाकर वहां शरणार्थी बन गए। देवलदेवी को रास्ते में ही रोक दिया गया और एक सेना की टुकड़ी के साथ सुरक्षित उसे दिल्ली रवाना कर दिया गया, जहां उसकी मां कमला देवी पहले से थी।



देवगिरी पर हमले में ज्यादा मुश्किल नहीं आई। आसानी से इसे मलिक कफूर की सेना ने अपने तकनीको और युद्ध नीति के दम पर जीत लिया। रामचंद्र देव को सकुशल पूरे सम्मान के साथ दिल्ली लाया गया । उसका खूब स्वागत हुआ अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा रामचंद्र देव को राय रियान की उपाधि दी। उन्हें एक लाख सोने के मुहरों से नवाजा गया और गुजरात के नवसारी रियासत का उन्हें राजा बना दिया गया, जहां वह शासन करने लगे।



इस तरह से देवगिरी का युद्ध समाप्त हुआ । लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कुछ ही वर्षों के बाद 1317 में फिर से जब खिलजी की अगली पीढ़ियों का शासक कमजोर हुए, तब यादवों ने फिर से उस पर हमला किया और उसे अपने कब्जे में ले लिया । 1328 में मोहब्बाड बिन तुगलक ने देवगिरी का नाम बदल कर दौलतबाद कर दिया गया ।

Published By
Prakash Chandra
01-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. देवगिरी का युद्ध कब हुआ था ?

1308 ईस्वी


2. देवगिरी का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

राजा रामचन्द्र देव और मालिक कफूर


3. देवगिरी के युद्ध का परिणाम ?

अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा


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