वारंगल का युद्ध

वारंगल का युद्ध
वारंगल का युद्ध

भारत पर जब कभी किसी बाहरी आक्रांता ने आक्रमण किया है तो उसका एकमात्र उद्देश्य भारत की अमूल्य धन संपदा को लूटना और उसका दोहन करना रहा है. यहां के विशाल और भव्य नगरों को आक्रांताओ ने बर्बाद और तबाह किया है. काकतीय साम्राज्य पर भी अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के मुख्य कारणों में यही कारण शुमार था. काकतीय साम्राज्य दक्षिण का एक संपन्न राज्य था. उसको लूट कर अपने राजस्व को खिलजी भरना चाहता था.

दूसरा कारण यह भी था कि देवगिरी की लड़ाई से राजा कर्ण वघेल भाग कर काकतीय प्रांत में शरणार्थी बन गए थे। इन दोनों कारणों से अलाउद्दीन खिलजी ने अपने विश्वासी मालिक कफूर को वारंगल पर हमला करने के लिए भेजा ।



 



मुख्य बिन्दु -




  • युद्ध - काकतीय साम्राज्य बनाम अलाउद्दीन खिलजी

  • वर्ष - 1310 ईस्वी

  • परिणाम- वारंगल के जीत के साथ दिल्ली सल्तनत का परचम दक्षिण पहुंचा



वारंगल पर चढ़ाई की कहानी अपने आप में बेहद दिलचस्प है। दिल्ली से दक्षिण की दूरी कोई छोटी मोटी दूरी नहीं थी। इस पर आक्रमण करने के लिए भी एक बेहतरीन रणनीति और एक अदम्य साहस की जरूरत थी। अपनी सेना में उत्साह को बरकरार रखना और मंजिल से पहले होश और जोश को संभाल कर एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम था। जिसके लिए अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को चुना था।



भारत के दक्षिण भाग में काकातीय साम्राज्य का शासक प्रतापरूद्र भी एक बेहद शानदार शासक था जिसकी युद्ध नीति की प्रशंसा दूर-दूर तक थी। वारंगल के किले की संरचना भी कुछ इस तरह से थी कि उसे भेद पाना बेहद मुश्किल था। सन 1309 ईस्वी में मालिक कफूर दिल्ली से रेवाड़ी होते हुए वारंगल को प्रस्थान करता है। रास्ते में कुछ जगहों पर रुक कर कर विश्राम भी करता है और कुछ जगहों पर आक्रमण कर उसका लूटपाट करता हुआ आगे बढ़ता जाता है। ताकि छोटी-छोटी जीत से सेना का मनोबल बढ़ता रहे। सेना देवगिरि के राजा रामचंद्र देव के शासित राज्य से होकर भी गुजरती है, जहां उनको सहायता और सहयोग मुहैया कराया जाता है।



काकतीय साम्राज्य के बाहरी प्रांत बावगढ़ पर आकर मालिक कफूर की सेना घेरा डाल देती है। काकातीय प्रांत में घुसने से पहले बावागढ़ में मलिकापुर की सेना ने डेरा डाला और वहां से युद्ध की रणनीति बनानी शुरू कर दी। सबसे पहला प्रांत साबर था जहां पर चढ़ाई करना जरूरी था। इसके लिए घुड़सवारों की एक टुकड़ी ने सावर पर हमला बोला । निपुण और दक्ष घुड़सवारों ने रातों-रात साबर पर चढ़ाई कर दी। भयानक रक्तपात का मंजर देखा गया । जम के लूटपाट हुए । कहा जाता है कि अचानक हमले से सेना और प्रजा में भगदड़ मच गयी। लोगों ने अपने राज्य के तबाही के डर से आत्महत्या कर ली और कई लोगों ने जोहर कर लिया अपने परिवार के साथ। जो भी रास्ते आया, सबको मौत के घाट उतारती हुई सेना बढ़ गयी । साबर पर मालिक कफूर की सेना का अधिकार हो गया ।  



14 जनवरी 1310 ईस्वी में साबर से वारंगल के लिए मलिक काफूर सेना लेकर निकला। 1,000 मजबूत प्रशिक्षित घुड़सवार दौरा कर उसने सबसे पहले हनमकोंडा पर कब्जा किया। कहा जाता है कि हनमकोंडा वह स्थान था जहां से वारंगल सीधा दिखाई देता था। यहां से वारंगल पर आक्रमण करने की असल रणनीति बनानी शुरू कर दी गई। मालिक कफूर, नासिर उल मुल्क और ख्वाजा हाजी की संयुक्त सेना ने काकतीय साम्राज्य की राजधानी वारंगल के किले को चारों तरफ से घेर लिया। पत्थरों और चट्टानों के आक्रमण से उसकी दीवारें तोड़ी जाने लगी। खिलजी की सेना इन सब कार्यों में लगी हुई थी कि अचानक एक रात किले के अंदर से विनायक देवा अपने कुछ घुड़सवारों के साथ कफूर की सेना पर आक्रमण कर दिया। भीषण रक्तपात हुआ । दोनों तरफ से कई हजार सैनिक मारे गए। लेकिन इसका नुकसान विनायक को ही हुआ और शायद वारंगल के पराजय का कारण बना। कुछ सैनिक लौटते समय कफूर की सेना के हाथों पकड़े गए। उन्होंने ही जीतने के लिए दुश्मन सेना की मदद की ।दीवारें टूटने लगी। सुरक्षा लगातार कमजोर होती चली गई।\



इसी बीच राज्य सुरक्षा को देखते हुए और कई दिनों से चल रही लंबी लड़ाई की वजह से प्रजा में व्याप्त भूख और अराजकता की स्थिति को भाँपते हुए राजा प्रतापरुद्र ने आत्मसमर्पण कर देने का फैसला किया। किले की आखिरी दीवार टूटने से पहले राजा प्रतापरूद्र ने प्रजा की रक्षा हेतु आत्मसमर्पण कर दिया और अलाउद्दीन खिलजी की भेजी गई मालिक कफूर की नेतृत्व वाली सेना ने वारंगल के किले पर अधिकार कर लिया और इस तरह से वारंगल का युद्ध समाप्त हुआ ।

Published By
Prakash Chandra
03-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. वारंगल का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

काकतीय साम्राज्य और अलाउद्दीन खिलजी


2. वारंगल के युद्ध का परिणाम ?

वारंगल के जीत के साथ दिल्ली सल्तनत का परचम दक्षिण पहुंचा


3. वारंगल का युद्ध कब हुआ था ?

1310 ईस्वी


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