पानीपत का द्वितीय युद्ध

पानीपत का द्वितीय युद्ध
पानीपत का द्वितीय युद्ध

हुमायूं के पतन के बाद भारत अफगान शासकों के तले फल-फूल रहा था। शेरशाह सूरी ने हुमायूं को दिल्ली से खदेड़ दिया था और बंगाल से लेकर राजस्थान का संपूर्ण उत्तर भारत में अफगान शासकों का बोलबाला था। इसकी दो प्रमुख वजह थी। पहली ये कि मुगल सल्तनत का कोई शासक इतना सक्षम नहीं हुआ जो अफगानों का मुकाबला कर सके। दूसरा, भारतीय राजाओं और खासकर राजपूतों ने भी समय के साथ मुगलों का मुकाबला करने के लिए अफगान शासकों का साथ देना शुरू कर दिया। राजपूत और अफगान की सेना ने जो सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी वो है पानीपत द्वितीय का युद्ध, जिसके बारे में कहानी भारत की के इस अंक में हम आपसे चर्चा करेंगे।

मुख्य बिंदु - 

# युद्ध - हेमचंद्र विक्रमादित्य बनाम बादशाह अकबर

# वर्ष - 1556

#परिणाम - हेमचंद्र की हार, मुगल साम्राज्य स्थापित



पानीपत द्वितीय का युद्ध 5 नवंबर 1556 ईस्वी को वर्तमान हरियाणा के पानीपत में लड़ा गया। इस युद्ध के कई महत्वपूर्ण कारण थे जिसमें सबसे पहला व प्रमुख कारण था, मुगल सल्तनत का दिल्ली पर वापस कब्जा करना। शेरशाह सूरी के बाद बचे हुए मुगल सल्तनत की दीवारों को हिंदू शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य ने ढाह दिया था। हेमू ने 1556 ईसवी के दिल्ली युद्ध जो तुगलकाबाद के पास लड़ा गया, उसमें मुगल सल्तनत की सेना को बुरी तरीके से पराजित किया था। सेनापति तरदी बेग़ को अकबर के सामने पराजय का मुंह देखना पड़ा था। यह पराजय मुगलिया सल्तनत के स्वाभिमान पर काला धब्बा जैसा था। 

बाबर की रखी गयी नींव को और मजबूत करने के लिए और अपने खोये हुए साम्राज्य को वापस पाने के लिए मुगल बादशाह अकबर की सेना ने बैरम खान के नेतृत्व में दिल्ली पर चढ़ाई करने का फैसला किया। उस समय अकबर की उम्र महज 13 साल की थी। इसलिए युद्ध का कार्यभार खुद बैरम खान संभाल रहा था। हालांकि मुग़ल सलाहकारों ने हेमू के प्रकोप और उसकी विशाल सेना को देखते हुए बैरम खान को दिल्ली छोड़कर वापस काबुल लौट जाने की सलाह दी थी। लेकिन बैरम खान ने फिर से मुगल बादशाह बाबर की रणनीति को अपनाते हुए, वहीं दांव खेलने का फैसला किया, जिसने पानीपत प्रथम के युद्ध में मुगलिया सल्तनत को नए आयाम दिए थे।

बैरम खान ने अपने दस हजार की संगठित सेना के साथ दिल्ली पर चढ़ाई करने बढ़ा और दिल्ली के समीप स्थित पानीपत के पास आकर उसने डेरा डाल दिया। अकबर की उम्र बहुत छोटी थी, इसलिए सुरक्षा के लिहाज से उसे युद्ध में ना जाने का परामर्श दिया गया और युद्ध क्षेत्र से 8 मील की दूरी पर 5000 सेना बल के साथ उसे सुरक्षित रखा गया। युद्ध में जाने से पहले बैरम खां ने अकबर को सलाह दिया कि अगर मुगल सेना युद्ध हार जाती है तो अति शीघ्र से शीघ्र बादशाह अकबर अपनी सुरक्षित सेना लेकर काबुल को पलायन कर जाये।अकबर को सुरक्षित कर बैरम खान अन्य दो और सेनापति के साथ तीन तरफ से दिल्ली को घेरने निकल पड़ा।

हेमचंद्र विक्रमादित्य की सेना बेहद विशाल थी। 30,000 घुड़सवारों की मजबूत सेना के साथ हेमू के जत्थे में 1500 काल गजों का समूह था, जो किसी भी ताकतवर सेना को कुचल देने का सामर्थ्य रखता था।  पुर्तगीजों से मिले तोपों का भी हेमू को बड़ा अभिमान था। हालांकि सेना वाकई बहुत मजबूत थी, लेकिन अति विश्वास ने सारा काम खराब किया। पानीपत के मैदान में अब एक तरफ अफगान और राजपूत की संयुक्त सेना नंगी तलवार लिए खड़ी थी तो वहीं दूसरी तरफ मुगल की सेना अपने सल्तनत को बचाने के लिए जान हथेली पर दिए मैदान की तरफ बढ़ने को तैयार थी। लड़ाई शुरू हुई और हेमू के हाथियों ने मुगल सेना को जमीन पर रौंदना शुरू कर दिया। खुद हेमू अपने हवाई नाम के हाथी पर बैठकर युद्धभूमि में सेना का नेतृत्व कर रहा था ।

युद्ध के शुरुआती दौर में हेमू की सेना एकतरफा जीत की तरह बढ़ रही थी। ऐसा लग रहा था कि बहुत जल्द अकबर को काबुल के लिये पलायन करना ही पड़ेगा, लेकिन किस्मत ने करवट बदली। हवा में उड़ता हुआ एक तीर हेमू की आंखों में जा धंसा। तीर उसके आंखों से होते हुए उसके दिमाग में घुस गया। बीच युद्ध में हेम अपने हाथी के शीर्ष से जमीन पर आ गिरा। सेना का नेतृत्व खुद हेमू ही कर रहा था, इसलिए सेनापति के जमीन पर आते ही हेमचंद्र की सेना में खलबली मच गयी। सेना जान बचाकर भाग खड़ी हुई। घायल हेमू को बन्दी बनाकर अकबर के सामने पेश किया गया। मुगलिया नियमों के अनुसार बैरम खान ने सेना का मनोबल बढाते हुए भारत के वीर का सर धड़ से अलग कर दिया।

पानीपत के युद्ध के बाद बैरम खां यहाँ ही नहीं रुका। हेमचंद्र के सिर को काट कर उसके सिर को काबुल भिजवाया गया, जहां दिल्ली के दरवाजे पर उसे लटका दिया गया और उसके शरीर को दिल्ली के पुराना किला के मुख्य दरवाजे पर लटकाया गया। ताकि प्रजा में यह खौफ रहे कि मुगल सल्तनत से टकराने वाले का क्या हश्र होता है। हेमचंद्र के बाकी रिश्तेदारों को भी ढूंढ-ढूंढ कर मारा गया। सबके सिर काट दिए गए।

इस तरह से मुगल सल्तनत ने दिल्ली से आखरी हिंदू शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य की सत्ता को समाप्त किया। पानीपत द्वितीय की पराजय से अफगानों के अंत की भी पृष्ठभूमि तैयार हो गयी। पानीपत द्वितीय का युद्ध ही असल मायनों में मुगल सल्तनत की स्थापना का युद्ध कहा जाता है। जिसके बाद तीन पीढ़ियों तक मुगल वंश ने भारत देश पर शासन किया।

Published By
Prakash Chandra
19-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. पानीपत का द्वितीय युद्ध किनके बीच हुआ था ?

राजा हेमचन्द्र और बादशाह अकबर के बीच


2. पानीपत का द्वितीय युद्ध कब हुआ था ?

सन 1556 ईस्वी


3. पानीपत के द्वितीय युद्ध का परिणाम ?

राजा हेमचंद्र की हार, मुगल साम्राज्य स्थापित


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