प्रतापगढ़ का युद्ध

प्रतापगढ़ का युद्ध
प्रतापगढ़ का युद्ध

हिन्द देश की धरती पे विदेशी आक्रांताओं का कलेजा फाड़ कर हिन्दू राष्ट्र का बीज बोने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता का प्रमाण बताने की जरूरत नहीं । यद्यपि आज "कहानी भारत की" के इस अंक में हम चर्चा करेंगे उस युद्ध की, जिसने मराठा साम्राज्य के विस्तार की जन्म दिया- प्रतापगढ़ का युद्ध...

बहमनी साम्राज्य पांच भागों में विभाजित था, जिसमें से एक था आदिलशाह का राज्य। बेहद शक्तिशाली, बेहद साम्राज्यवादी और दक्षिण भारत में काफी तेजी से पांव पसारता हुआ एक मुगल सल्तनत। लेकिन इस मुगल सल्तनत को चुनौती देने वाला पैदा हो चुका था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी एक छोटी सी सेना बना कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया था। शिवाजी से पूर्व मराठा साम्राज्य मुगलों के अधीन था। शिवाजी के स्वतंत्र सैन्य अभियानों की सूचना जब आदिल शाह को लगी तो उसने मराठा जागीरदार और शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बुलाया और उन्हें शिवाजी को समझाने की बात कही। बावजूद इसके शिवाजी ने बीजापुर इत्यादि का किलो को जीतते हुए सैन्य अभियान जारी रखा। नतीजा यह हुआ कि शाहजी भोंसले को मुगलों की तरफ से प्रताड़ित किया जाने लगा। जिस कारण शिवाजी ने अपने साम्राज्य विस्तार अभियान को रोक लगा दी।



शिवाजी अब मुगलों के रोकने से रुकने वाले नहीं थें

सात साल बाद, जब आदिल शाह की मृत्यु हो गयी, साल 1655-56 से छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक बार फिर से अपने हिंदू साम्राज्य विस्तार को प्रारम्भ कर दिया था। मराठा साम्राज्य दहाड़ते हुए मुगलों से अपनी जमीनें, अपने अधिकार छीन रहा था, जो कभी उनका ही हुआ करता था। आदिल शाह के मरने के बाद बारी बेगम ने सत्ता संभाला था। शिवाजी को कुचलने के लिए बारी बेगम ने अपने सबसे ताकतवर और खूंखार सेनापति को भेजा, जिसका नाम था- अफजल खान। अफजल बहुत ताकतवर था साढ़े 6 फीट से भी ज्यादा लंबा इंसान, किसी को भी एक हाथ से गला पकड़ कर मार देता था। बारी बेगम ने शिवाजी से बढ़ रहे वर्चस्व को रोकने के अफजल खान को भेजा। 



प्रतापगढ़ में अफजल खान के मौत की तैयारी

अफजल खान का नाम सुनकर अच्छे-अच्छे राजा कांप जाते थे। अतीत में उसने कई लड़ाइयों के अंजाम से अपना आतंक प्रमाणित किया था, जो उसके नाम का खौफ फैलाते थे। अफजल खान शिवाजी को पकड़ने चल पड़ा। रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को तोड़ते हुए अब शिवाजी की तरफ बढ़ रहा था। हुन्दू विरासतों के तबाही को देखकर शिवाजी का खून भी खोलता गया। शिवाजी को मालूम था कि जमीनी लड़ाई में अफजल खान को हरा पाना मुश्किल होगा। उन्होंने एक रणनीति के तहत अपने लाव लश्कर को प्रतापगढ़ के किले में स्थानांतरित करना सही समझा और वहां से अफजल के अंतिम वक़्त का इंतजार करने लगें।

अफजल खान को भी पता चल गया कि जिस प्रतापगढ़ किले में शिवाजी उसकी मृत्यु बन कर बैठे हैं, वहां से वाकई लड़ाई मुश्किल होगी। उसने कूटनीति का सहारा लिया और कृष्ण जी भास्कर नाम के दूत को संधि प्रस्ताव के लिए भेजा। उसने प्रस्ताव भिजवाया कि शिवाजी मुगलों के अधीन रहकर काम करे तो यह युद्ध टल सकता है। कृष्ण जी भास्कर हिंदू थे। शिवाजी ने उनका बेजोड़ स्वागत किया। उन्हें गले लगाया और उनके आव-भगत में कोई भी कमी नहीं छोड़ी। कृष्ण भास्कर का ह्रदय शिवाजी का हित चाहने लगा। उन्होंने शिवाजी को साफ साफ कह दिया कि किसी भी संधि पत्र पर किसी भी तरह का हस्ताक्षर ना करे। यह सब शिवाजी को जान से मारने की एक सोची समझी साजिश है। शिवाजी अब और ज्यादा सचेत हो चुके थे।



आक्रांता अफजल और वीर छत्रपति का आमना-सामना

कूटनीति की दूसरी चाल शिवाजी ने चली। दिखावटी संधि की आड़ में अपनी तरफ से उन्होंने पंत जी गोपीनाथ को दूत बनाकर भेजा। इसका उद्देश्य ऊपरी तौर पर तो संधि प्रस्ताव के लिए बात करना था, लेकिन अंदर ही अंदर है गोपीनाथजी अफजल खान की सैन्य क्षमता का पता लगाने गये थें, ताकि दुश्मन के सैन्य बल का अंदाजा लगाया जा सके और फिर उसके हिसाब से आगे की रणनीति बनाई जा सके।



मुग़लिया आतंक पर शिवाजी की दहाड़

काफी सोच- विचार के बाद शिवाजी ने अफजल खान के साथ एक बैठक करने का फैसला किया। प्रतापगढ़ के किले के पास जंगलों के बीच एक शामियाने में अपने दो-दो अंगरक्षकों के साथ शिवाजी और अफजल खान बुलाए गए। जिस काम के लिए अफजल खान जाना जाता था, उसने फिर से वही करना शुरू किया। शिवाजी से हाथ मिलाया, शिवाजी के गले लगा और फिर उसकी हाथ शिवाजी के गर्दन को जकड़ने लगी। शिवाजी समझ गए अफजल खान उन्हें मारने की कोशिश कर रहा है संधि के नाम पर। शिवाजी इस बार पहले से तैयार होकर गए थे। उन्होंने समय को भांपते हुए अपने बाघनखों से अफजल खान पर पूरी ताकत से वार किया और एक ही बार में अफजल खान के पेट को फाड़ दिया। उसका सीना चीर डाला। अफजल उसी जगह छटपटा कर जमीन पर गिर गया। शिवाजी ने उस राक्षस को वहीं मौत के घाट उतार दिया।

अफजल खान के अंग रक्षकों ने शिवाजी पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन शिवाजी के अंगरक्षक जीवा महल ने उन दोनों अंग रक्षकों के एक ही वार में दो टुकड़े कर डाले। इतने में शिवाजी की सेना को इशारा कर दिया गया और गोरिल्ला युद्ध में माहिर मराठा सैनिकों ने घंटे भर में अफजल खान की सेना को रौंद दिया। अफजल का काम वहीं तमाम हो गया।



बढ़ चला हिन्दू साम्राज्य का पताका

इसके बाद चारों दिशाओं में शिवाजी के नाम पर चर्चा हो गई। अफजल खान जैसे आक्रांता को एक झटके में मार गिराना एक बहुत बड़ी बात थी। अफजल खान मर चुका था और शिवाजी के जयकारे चारों दिशा में गूंज रहें थें। यहाँ से मराठा हिंदू साम्राज्य विस्तार की कहानियां से शुरू होती हैं। मराठा साम्राज्य इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ता चला गया। छत्रपति के झंडे को आगे पेशवाओं ने भी बुलंद किया।

Published By
Prakash Chandra
06-03-2021

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