हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भारत वर्ष के इतिहास में लड़ाइयों का सिलसिला आगे बढ़ चला। युद्धों के मतलब बदल गए। अब राजा सीधे तौर पर युद्ध करने से कतराने लगे। इसका कारण था- दिवेर का युद्ध। हल्दीघाटी के बाद अकबर के सेना को अहंकार हों गया कि वह अब कभी हारेगा नहीं। दिवेर का युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की सेना को बुरी तरीके से हराया। उसके बाद अकबर ने राजस्थान जीतने का सपना ही छोड़ दिया ।
मुख्य बिंदु:
# युद्ध: काठियावाड़ रियासत बनाम मुगल सेना
# वर्ष: 1591 ईसवी
#परिणाम: मुगल की सेना विजयी, गुजरात फतह का रास्ता साफ
सामरिक दृष्टिकोण से गुजरात एक बेहद महत्वपूर्ण राज्य था। समुद्र किनारे यह राज्य व्यापारी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण था। इसलिए अकबर ने गुजरात पर अधिकार करने का सोचा। लेकिन इस बार वह सीधे लड़ने मैदान में नहीं आया, बल्कि अपने कई सेनापतियों और वहां के स्थानीय मुगल शासकों को गुजरात फतह के लिए भेजा। गुजरात के स्थानीय हिंदू शासकों और मुगल सेनाओं के बीच झड़प हुई, जिसे भूचर मोरी का युद्ध कहते हैं। कहानी भारत की के इस अंक में हम आपको भूचर मोरी की लड़ाई के बारे में बताने जा रहे हैं।
काठियावाड़ में थी कई रियासतें
भूचर मोरी के युद्ध को ध्रोल का युद्ध भी कहा जाता है। इसे सौराष्ट्र का पानीपत का युद्ध भी कहा जाता है। यह लड़ाई काठियावाड़ी रियासत की सेना और मुगल सेना के बीच हुई थी। काठियावाड़ की तरफ से लड़ने वाले स्थानीय रियासतों में नवानगर, ध्रोल, जूनागढ़, कुंडल जैसे रियासत शामिल थे।
युद्ध की वजह क्या थी -
जाहिर सी बात है अकबर बेमतलब बेफिजूल लड़ाई करने नहीं आया था। उसे गुजरात पर हमला करने के लिए कोई ना कोई बहाना चाहिए था। वह बहाना था मोहम्मद शाह तृतीय। आगरा के युद्ध में अकबर ने मोहम्मद शाह तृतीय को बंदी बना लिया था। जहां से वह भाग खड़ा हुआ था और आकर गुजरात के जामनगर में शरण लेकर रहने लगा था।
अकबर को जब इस बात की भनक लगी तो उसके आदेश पर गुजरात में स्थित स्थानीय सेनापति मिर्जा अजीज ने जामनगर के राजा से उसे वास वापस मांगा। क्षत्रिय धर्म के अनुसार शरणार्थी को लौटाना वीरता का अपमान होता है। इसलिए जामनगर के राजा ने मिर्जा अजीज को मोहम्मद शाह लौटाने से इनकार कर दिया। अकबर को बहाना चाहिए था, जो उसे मिल गया। लगभग आधे दर्जन सेनापतियों और 9000 सैनिकों के साथ मुगल की सेना गुजरात की रियासतों पर टूट पड़ी। हालांकि चढ़ाई से पहले रास्ते में कई छोटे गुजराती राजस्थानी रियासतों ने मुगल सेना को पानी पानी कर दिया। छिटपुट झड़पों में मुगल सेना को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा।
विश्वासघात ने सब कुछ बिगाड़ा
जुलाई 1591, कठियावाड़ रियासतों की सेना भूचर मोरी के मैदान में मुगल की सेना के सामने खड़ी थी। कहा जाता है कि रियासतों के बीच आपसी रंजिश का फायदा उठाकर मिर्जा अजीज ने जूनागढ़ और कुंडल को अपने में मिला दिया था। युद्ध की शुरुआत में नेतृत्व कर रहे नवानगर के राजा जाम सताजी जडेजा को इस बात की भनक नहीं लगी, लेकिन थोड़ी ही देर के बाद उन्हें दिखाई देने लगा कि जामनगर और कुंडल की सेना अपने ही सैनिकों को मार रही है। वह समझ गए जूनागढ़ और कुंडल रियासत ने गद्दारी की है और अब मुगल से मिल चुके हैं।
युद्ध मैदान में सती हुई राजा की पुत्रवधू
जाम सता जी का पुत्र भी इस लड़ाई में उतरा, लेकिन दुर्भाग्यवश माया गया। कहा जाता है कि जामसता की पुत्रवधू अपने अंगरक्षकों की मदद से युद्ध भूमि में पहुंची और सती हुई। विश्वासघात के कारण काठियावाड़ के रियासतें मुगलों की सेना के सामने हार गई। मुगल विजयी हुए और इस तरह से गुजरात में विजय हासिल करने का उनका लक्ष्य पूरा हुआ। अब गुजरात पर अधिकार करने से उन्हें नहीं रोक सकता था। मुगल समराज का झंडा गुजरात के अंतिम छोर तक पहुंच गया।
काठियावाड़ रियासतों की सेना ने जिस बहादुरी के साथ मुगल की सेना का सामना किया, वह आज भी गुजराती राजपूतों की वीरता के लिए मिसाल के। तौर पर देखा जाता है।
Published By
Prakash Chandra
27-02-2021
Frequently Asked Questions:-
1. भूचर मोरी का युद्ध कब हुआ था ?
सन 1591 ईसवी
2. भूचर मोरी का युद्ध किनके बीच हुआ था ?
काठियावाड़ रियासत और मुगल सेना
3. भूचर मोरी के युद्ध का परिणाम ?
मुगल की सेना विजयी, गुजरात फतह का रास्ता साफ