कहानी मेहरानगढ़ की

कहानी मेहरानगढ़ की
कहानी मेहरानगढ़ की

500 साल पुराने एक ऐसे किले की रोचक और अद्भुत कहानी, जिसके राजाओं और शाशकों की वीरता की कहानी के किस्से आज भी मशहूर हैं। आज जरूर यह किला शांत और वीरान है, परंतु इस किले की दीवारों ने आज भी देश को गौरवान्वित किया हुआ है | इस कहानी में मेहरानगढ़ का किला, जो की राजस्थान के जोधपुर में स्थित है, को मिहिरगढ़ दुर्ग के नाम से भी जानते हैं |

मेहरानगढ़ के किले की कहानी के पीछे एक बेहद शक्तिशाली और समृद्ध भारत का अतीत है। इस किले की नींव राव जोधा ने 12 मई 1459 ई में रखी थी | राव रणमल मारवाड़ के शाशक थे। राव जोधा, राव रणमल के पुत्र थे। राव रणमल, मेवाड़ का शाशन कार्य भी सँभालते थे | यही बात उस समय के राजा राणा कुम्भा और रानी सौभाग्य देवी के सरदारों को पसंद ना थी | यहाँ के सरदारों ने राव रणमल के खिलाफ षड्यंत्र रच कर उनको मरवा दिया | जिसके पश्चात राणा कुम्भा के सरदार, रावत चुडा लाखावत सिसोदिया के नेत्रत्व में सेना ने मारवाड़ पर आक्रमण कर दिया, और मारवाड़ राज्य को अपने अधिकार में ले लिया |

राव जोधा किले के निर्माण से पहले, इस पहाड़ी का निरीक्षण करने जब आये। कहते हैं उस समय जब उन्होंने एक बकरी को बाघ से लड़ते देखा, तो उन्होंने यही किले के निर्माण की योजना शुरू कर दी थी। इस किले के नींव रखने से पहले यहाँ एक साधु रहता था। जब राव जोधा ने यहाँ से जाने को कहा तो वे यहाँ से नहीं गए, तब राजा ने उन्हें वहाँ से भगा दिया, और फिर साधु ने वहाँ पानी ना होने का शाप दे दिया। इस शाप की भरपाई के लिए साधु ने कहा की इस किले की नींव में किसी जीवित व्यक्ति को उसकी इक्षानुसार यहाँ दफ़न कर दिया जाए | जिसके फलस्वरूप राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। उनके इस त्याग और बलिदान के परिणाम स्वरूप, राव जोधा ने उनके परिवार को सूरसागर में भूमि दान में दे दी। जो आज जोधपुर में राजबाग के नाम से विख्यात है |

राव रणमल की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र राव जोधा को अपने पिता के निधन के साथ ही अपने राज्य से को भी भूलना पड़ा | परन्तु राव जोधा कभी इस बात को भूल नहीं पाए और उन्होंने जल्द ही अपने भाईयों के साथ से मंडोर, कोसना व चौकड़ी पर विजय ध्वज लहराकर, मारवाड़ में पुनः राठौर राज्य 1510 ईस्वी में स्थापित कर अपने पैत्रिक राज्य को मेवाड़ से मुक्त करा लिया |

इस किले के आठ मुख्य द्वार हैं, जिनमें जय पोल (विजय का द्वार), फ़तेह पोल, डेढ़ कंग्र पोल, लौह पोल शामिल हैं। जय पोल का निर्माण महाराजा मान सिंह ने सन 1806 ईस्वी में जयपुर और बीकानेर के हुए मध्य युद्ध के विजय के परिणाम स्वरूप करवाया था | लौह पोल किले का अंतिम द्वार है , इसके बायीं तरफ रानियों के हाँथों के निशान हैं, जिन्होंने सन 1843 ईस्वी में महाराजा मान सिंह की मृत्यु के पश्चात जौहर में अपने प्राणों का बलिदान दिया था |

राव जोधा पर चामुंडा देवी की असीम कृपा रही, और राव जोधा ने माता चामुंडा देवी के मंदिर का निर्माण किले के पास ही कराया। इस मंदिर के द्वार राजशाही शाशकों के अतिरिक्त आम प्रजा के दर्शन के लिए भी खोल दिये गए | महाराजा मान सिंह आमेर के कछवाह राजपूत राजा थे और उन्होंने मेहरान गढ़ के किले पर शाशन किया | राजा मान सिंह, मुग़ल सुलतान अकबर के दरबार में एक विश्वसनीय और श्रेष्ठ पद पर थे। राजा मान सिंह ने कई रियासतें जीतकर मुग़ल सल्तनत में मिला लिया | इन्हीं में उडीसा और आसाम को जीत कर मुग़ल राज्य में शामिल कर लिया | जिस समय ओडिशा राज्य में जगन्नाथ पुरी में पठान सुल्तान ने हमला करके मुग़ल मस्जिद बनाने का निर्णय लिया तब राजा मान सिंह ने ही अपनी सेना के साथ पठान सुल्तान और समर्थक हिन्दू राजाओं को कुचलकर रख दिया और वे सभी वहाँ से निकल कर आज के बंगाल की ओर चले गए |

ऐसे ही कुछ रोचक और अनसुनी कहानी है भारत की, जिसमे छुपे हैं, कई रहस्य और कई वर्षों का इतिहास | यह सिर्फ एक कहानी ही नहीं बल्कि वीरों की निशानी है जिसे आज भी हम महसूस कर सकते हैं। उस वीरापन को महसूस कर सकते हैं जिसकी दीवारों में कभी राजाओं के परिवारों ने जीवन व्यतीत किया और इस भारत देश की धरती को पुण्य से द्रवीभूत कर दिया |

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