कालिंजर का युद्ध

कालिंजर का युद्ध
कालिंजर का युद्ध

कालिंजर युद्ध का जिक्र जब हम करते है तो यह मुख्य रूप से अफ़गान शासक शेरशाह सूरी द्वारा बांदा जिले में स्थित कालिंजर किले पर आक्रमण का जिक्र आता है । बात उस वक्त की है जब अफ़गान शासक का शौर्य मुगलिया सल्तनत को घुटनों पर रखता था। शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हरा कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इसी बीच भारत जीतते हुए वह कालिंजर भी पहुंचा ।

युद्धों के इतिहास को खंगालते हुए आज हम उत्तरप्रदेश बुन्देलखण्ड की उस धरती से आपका परिचय कराने वाले हैं, जिसमें एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई लड़ाइयां लड़ी गयी।  कालिंजर दुर्ग, एक ऐसा दुर्ग जो अपने आप में अविजित रहा, भारत की कहानियों के अनेकों पीढ़ियों तक। कालिंजर युद्ध का सीधा संबंध विंध्य पर्वत पर स्थित कालिंजर दुर्ग के आस पास ही घूमता है । ऐतिहासिक महत्व के कई अद्भुत साक्ष्यों को समेंटे हुए यह किला दुर्गनिर्माण शैली का एक अद्भुत उदाहरण है ।



कालिंजर युद्ध का जिक्र जब हम करते है तो यह मुख्य रूप से अफ़गान शासक शेरशाह सूरी द्वारा बांदा जिले में स्थित कालिंजर किले पर आक्रमण का जिक्र आता है । वैसे कहा जाता है कि उससे पहले महमूद गजनवी, क़ुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूँ ने भी इस किले को जीतने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहें । बात उस वक्त की है जब अफ़गान शासक का शौर्य मुगलिया सल्तनत को घुटनों पर रखता था। शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हरा कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इसी बीच भारत जीतते हुए वह कालिंजर भी पहुंचा । साल 1544 ई॰ था और तब कालिंजर के राजा थें कीर्तिसिंह । कहानियाँ बताती है कि रीवाँ के राजा ने कालिंजर में भाग कर शरण ले ली थी । शेरशाह ने बतौर शत्रु उसे वापस मांगा जिसे कालिंजर के राजा ने अस्वीकार कर दिया। तब आखिरकार शेरशाह सूरी ने हमले की घोषणा की।



कहा जाता है कि दुर्ग पहले ही समुद्रतल से 369 मीटर ऊंचा हैं और उसके बाद उसे 45 मीटर ऊंची दीवारों से घेरा गया हैं। वो दीवारें बिना सीमेंट के 10 मीटर चौड़ी बनाई गई थी। अफगान सैनिक एक साल तक किले में प्रवेश पाने की कोशिश करते रहें, लेकिन ऊंची पहाड़ियों पर बनी मजबूत दीवारों को वो भेद नही पा रहें थे । शेरशाह को जब इस बात कि सूचना मिली तो वो स्वयं कालिंजर पहुंचा और गोला दागने के आदेश दे दिये । अनुभवी सेनानायकों ने उसे ऐसा ना करने की भी सलाह दी। लेकिन साल भर के प्रयास को व्यर्थ होता देख शेरशाह सूरी ने तोपें मुड़वा दी और किले की दीवार पर दनादन गोले बरसाए । शेरशाह सूरी खुद भी तोप से बारूद के गोले दागने लगे । साल 1545 ई॰ के एक रोज गोला दागने के दौरान उसी में से एक गोला कीले की प्राचीर से टकरा कर वापस आ गया और बारूद की ढेर में जा लगा । भयानक धमाका हुआ, जिसमें शेरशाह सूरी बुरी तरह से झुलस गए . इस हादसे के कुछ सालों के बाद उनकी मृत्यु हो गई।



कालिंजर युद्ध अफ़गान शासक शेरशाह सूरी के लिए आखिरी लड़ाई साबित हुई और एक अविजित दुर्ग के रूप में स्थापित हो गयी । हालांकि इतिहासकर बताते है कि शेरशाह ने घायल होने के बाद भी कालिंजर फतह की लड़ाई जारी रखने का आदेश दिया और फतह के बाद कुछ वर्षो तक शासन भी किया, लेकिन बारूद विस्फोट में वह बुरी तरह घायल हो चुका था। यह विजय शेरशाह के जीवन की आखिरी जीत रही ।  बाद में अकबर ने भी इस दुर्ग पर फतह किया और बीरबल को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया, जिसके बाद यह राजा छत्रसाल को प्राप्त हुआ । कालिंजर युद्ध एक शासक के साम्राज्य विस्तार का आखिरी बिन्दु बन गया। मुगलों के आगे तेजी से बढ़ता हुआ अफ़गान साम्राज्य कालिंजर युद्ध के बाद खत्म होता चला गया। हुमायूँ ने फिर से दिल्ली पर कब्जा कर लिया और फिर अकबर ने कालिंजर पर आक्रमण कर जीती हासिल की। आज भी कालिंजर दुर्ग हिन्दू वैभव और कई अनकही कहानियों को समेंटे हुए है ।



कालिंजर दुर्ग में भगवान शिव समेंत कई देवी देवताओं की अलौकिक प्रतिमाएँ हैं । उनसे जुड़ी कहानियाँ भी वहाँ की भव्यता को सत्यता के साथ प्रमाणित करती हुई नजर आती हैं । भले कालिंजर का युद्ध एक वंश का अंत बना लेकिन कालिंजर दुर्ग अपने आप में वंशों का सृजनकर्ता और संरक्षक भी रहा है । चंदेल वंश को इस किले के नींव और निर्माण का श्रेय जाता है । 9वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक यह किला अभेद्य था और इस बात की ख्याति दूर दूर तक फैली थी ।



भारत की कहानियों में कालिंजर का युद्ध एक अविजित युद्ध और कालिंजर दुर्ग एक अविजित योद्धा के तौर पर देखा जाता है । इसकी रचना, इसकी बनावट युद्ध दृष्टि से भारत की सर्वश्रेष्ट निर्माणों में से है और अभी वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है ।

Published By
Prakash Chandra
20-01-2021

Frequently Asked Questions:-

1. कालिंजर दुर्ग कहाँ स्थित है ?

बाँदा जिला (उत्तर प्रदेश)


2. कालिंजर का युद्ध कब हुआ था ?

1544 ईस्वी


3. कालिंजर का युद्ध किसके बीच हुआ ?

राजा कीर्तिसिंह और शेरशाह सूरी


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