रणथंभौर का दुर्ग भारत के सर्वाधिक मजबूत किलो में से एक है। अपने शाकंभरी के चाहमान साम्राज्य को शक्ति प्रदान कर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कहा जाता है कि इस किले का का निर्माण महाराजा जयंत सिंह ने पांचवीं शताब्दी में किया था। बारहवीं शताब्दी तक पृथ्वीराज चौहान के आने तक यहां यादवों ने शाशन किया। हम्मीर देव ने सन 1282 से 1331 ईस्वी तक शासन किया, वह बहुत ही शक्तिशाली शासक थे। हम्मीर देव ने कला और साहित्य को पहचान दिया और शिखर तक पहुंचाया।
समय-समय पर आक्रांताओ ने रणथंभौर के दुर्ग पर आक्रमण करते रहे। उनके नाम और समय इस प्रकार है।
शाशक |
सन |
मुहम्मद गौरी व चौहानो |
1209 |
इल्तुतमीश |
1226 |
रजिया सुल्तान |
1236 |
बलबन |
1248-58 |
अलाऊद्दीन खिलजी |
1290-92 |
अलाऊद्दीन खिलजी |
1301 |
फ़िरोजशाह तुगलक |
1325 |
मालवा के मुहम्म्द खिलजी |
1489 |
महाराणा कुम्भा |
1529 |
गुजरात के बहादुर शाह |
1530 |
शेरशाह सूरी |
1543 |
अकबर |
1569 |
अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1301 ईसवी में रणथंभौर के किले पर आक्रमण किया जिसका बहादुरी पूर्वक हम्मीर देव ने अलाउद्दीन खिलजी का सामना किया। इसके बाद दुर्ग पर दिल्ली के सुल्तानों का अधिकार हुआ। जिनमे राणा सांगा 1509 ईसवी से 1527 ईस्वी तक शाशन किया। और उसके पश्चात यह दुर्ग मुगलों के नियंत्रण में रहा। रणथंभौर का दुर्ग रणथंभौर बाघ अभयारण्य के मध्य में स्थित है, इस किले के चारों और 7 दरवाजे हैं जिनमे नौलखा पोल, अथिया पोल, गणेश पोल, अंधेरी पोल, सतपाल, सूरजपोल एवं दिल्ली पोल हैं। दुर्ग के के अंदर स्थित महत्वपूर्ण स्मारकों में हम्मीर महल, हम्मीर बड़ी कचहरी, छोटी कचहरी, बादल महल, 32 खंबा छतरी भंवरा, एवं हिंदू मंदिरों के अतिरिक्त एक दिगंबर जैन मंदिर तथा एक दरगाह स्थित है।
यहां स्थित गणेश मंदिर पर्यटकों के सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है। रणथंभौर दुर्ग के निर्माण के समय का मतभेद है, रणथंभौर का किला आज के समय में जयपुर के निकट सवाई माधोपुर के निकट स्थित है। कहते हैं 944 ईसा पूर्व में इस किले का निर्माण चौहान राजपूत राजा स्पल दक्ष ने करवाया था। और एक दूसरी कहानी के अनुसार दादा जयंत ने इस किले का निर्माण कार्य की शुरुआत सन 11 वी शताब्दी में किया। हम्मीर देव के शासन काल में रणथंभौर ने सुनहरे समय को देखा, सन 1301 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी के तीन असफल प्रयासों के बाद उसको इस किले पर जीत हासिल हुई। और चौहान शासकों का शासन समाप्त हुआ। अगले 3 दशकों तक रणथंभौर दुर्ग पर अलग-अलग राजाओ का शासन रहा और अंत में मुगल सम्राट अकबर ने इस किले को रणथंभौर में सन 1558 ईस्वी में मिला लिया।
18 वीं शताब्दी तक यह मुगल शासको के अधीन रहा। 18 वीं शताब्दी के दौरान पश्चिमी भारत में मराठा साम्राज्य की शक्ति का विकास हो रहा था। मराठों के प्रभाव से सवाई माधव सिंह उस समय जयपुर के राजा थे। उन्होंने मुगल सम्राट से रणथंभौर दुर्ग को देने के लिए कहा। सन 17 शताब्दी से सवाई माधव सिंह ने गांव का नाम बदलकर सवाई माधोपुर किया। आज के समय में यह गांव सवाई माधोपुर के नाम से जाना जाता है, यह गांव दो पहाड़ियों अरावली और विंध्य पर्वत श्रंखला के मध्य में स्थित है। जो दक्षिणी पश्चिमी रणथंभौर नेशनल पार्क से मिलती है और यह किला सम्राट माधव सिंह के अधीन आ गया।
रणथंभौर के दुर्ग के नाम पर यहाँ राष्ट्रीय उद्यान का नाम रणथंभौर रखा गया है। यहाँ दूर दूर से लोग अभ्यारण्य में बाघ को देखने आते है। ऐसे ही अनोखी रणथंभौर की कहानी जो अपने आप में भारत का गौरव समेटे हुए है।