चौसा का युद्ध

चौसा का युद्ध
चौसा का युद्ध

कहानी भारत की में आप मोहम्मद गौरी का आक्रमण से लेकर निरंतर भारत में हुए विभिन्न युद्धों के बारे में पढ़ते आ रहे हैं। युद्धों के बारे में बताते बताते हम मुगल साम्राज्य की चौखट पर पहुंच गए हैं। हमने आपको बताया कि किस तरह से बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। बाबर के बाद मुगल साम्राज्य की एक पीढ़ी अय्याशी के दलदल में फंसी रही। बाबर के बाद हुमायूं एक असफल और पराजित शासक साबित हुआ। उसी हुमायूं के द्वारा लड़कर पराजित हुए चौसा के युद्ध के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। चौसा का युद्ध अफगान शासक शेरशाह सूरी और मुगल शासक हुमायूं के बीच लड़ा गया था।

मुख्य बिन्दु -

       # युद्ध: मुगल शासक हुमायूँ बनाम अफ़गान शासक शेर खाँ

       # वर्ष: जून 1539, चौसा, बक्सर, बिहार

       # परिणाम: हुमायूँ की करारी हार

युद्ध के बारे में शुरुआत करने से पहले हम आपको बता दें कि चौसा बिहार के बक्सर के समीप एक छोटा सा गांव है। जो गंगा और कर्मनाशा नदी के बीच पड़ता है। यह अमूमन निचली जमीन है, जहां पर अक्सर बरसात का पानी लग जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सत्ता में आने के बाद दिल्ली की गद्दी संभालने के बाद हुमायूं भोग विलास में डूब गया। हुमायूं का सेनापति हिन्दबेग मुगल साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। उसका मकसद था कि भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से से अफगानों को खदेड़ दिया जाए। शासक के तौर पर अफगान उस दौर में मुगल साम्राज्य के समानांतर एक मजबूत विकल्प खड़ा कर रहे थे। जिसका दमन करना मुगलिया सल्तनत के लिए आवश्यक होता जा रहा था। इसी सिलसिले में हुमायूँ ने बंगाल पर आक्रमण किया और विजय हासिल की। लेकिन विजय प्राप्त करने के बाद उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं को किनारे कर दिया ।

भोग विलास में डूबे हुमायूं की स्थिति दिन-ब-दिन कमजोर शासक के तौर पर प्रसारित हो रही थी। हुमायूं का राज्य पर कोई ध्यान नहीं रहा और तभी गंगा किनारे के क्षेत्र में शेर खाँ ने चुनार जौनपुर कन्नौज पटना इत्यादि नगरों को जीतकर हुमायूं के समक्ष अफगान साम्राज्य की नींव को और मजबूत कर दिया। यह देखकर हुमायूं के अंदर युद्ध की भावना जागी। मुगलवंश को यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि उसके समक्ष दूसरा शासक तेजी से खड़ा हो रहा है। हुमायूं ने आव देखा ना ताव और शेरखाँ को पकड़ने के लिए निकल पड़ा । इसी बीच हुमायूँ की सेना में मलेरिया फैल गया। और उसकी सेना शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो गई। अस्वस्थता जीत हासिल करने मे अक्षम नजर आने लगी। हुमायूँ आगरा की तरफ निकला।

शेर खाँ ने अपने गुप्तचर हर जगह, हर मोड़ पर, हर महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनात कर रखे थे। उसे सूचना मिल गई हुमायूं आगरा की तरफ से निकल पड़ा है और वहां से वह जौनपुर और कन्नौज की तरफ बढ़ेगा। हुमायूँ को बीच में ही रोकने का निर्णय किया। आगरा की तरफ बढ़ रहे हुमायूँ ने भी कुछ महत्वपूर्ण एवं निर्णायक गलतियां कर दी। बीच रास्ते में हुमायूं को सूचना मिली कि शेरखाँ बिहार के चौसा नामक स्थान पर छुपा बैठा है। हुमायूं ने रास्ता बदला और चौसा की तरफ कूच कर गया। हालांकि उसके सैन्य सलाहकारों ने उसे बताया कि उसे गंगा के उत्तरी किनारे से होते हुए चौसा तक जाना चाहिए, लेकिन हुमायूं ने एक न सुनी। उसने गंगा का दक्षिण किनारा लेते हुए ग्रांड ट्रक रोड के माध्यम से जौनपुर की तरफ बढ़ा। ग्रैंडट्रक सड़क शेर खा का बनाया हुआ रास्ता है और इस पर पूर्ण रूप से शेर खाँ का नियंत्रण है। कर्मनाशा नदी के किनारे पहुंचकर उतावले हुमायूँ ने नदी पार कर ली और चौसा स्थान पर पहुंचकर शेरखाँ को तलाशने लगा । शुरुआती दौर में शेर खाँ  ने कमजोर बने रहना उचित समझा उसने एक षड्यंत्र के तहत संधि प्रस्ताव भेजा। शांति वार्ता के नाम पर शेर खाँ ने हुमायूं की सेना को 3 महीने तक गंगा और कर्मनाशा नदी के बीच उलझा कर रखा। महीने बीते, मौसम बदला, बारिश हुई और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। शेरखाँ का मंसूबा कामयाब रहा। जलजमाव के कारण सारे तोप और बारूदी लश्कर बर्बाद हो गए। मलेरिया से पीड़ित सेना में फिर से अव्यवस्था फैल गई और सेना युद्ध लड़ने के हालात में असहज महसूस करने लगी।

जून 1540 देर रात अचानक शेर खाँ ने दल दल में फंसी मुग़ल सेना पर पूरी ताकत के साथ हमला कर दिया। तलवारों ने मुगलिया सल्तनत की ईट से ईट बजाई। कई सैनिक मारे गए। कई अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूदकर मर गए। हुमायूं भाग खड़ा हुआ। वह घोड़ा समेत नदी में छलांग लगा बैठा। उसके कुछ खास विश्वासी मुगल सैनिकों ने उसे बचाया और हुमायूँ डूबते डूबते बचा।

हुमायूँ का परिवार गंगा और कर्मनाशा बीच में फंसा रह गया। उसके परिवार के कई सदस्य मारे गए और उसकी पूरी सेना नष्ट हो गई। इसने हुमायूँ का पतन निश्चित कर दिया। उसके परिवार के कई महत्वपूर्ण सदस्य मारे गए। जीत पाकर अफ़गान शासक शेर खाँ ने अपना नाम शेरशाह सूरी रखा और उसने अपने नाम के सिक्के चलाएं। तब से उसे शेरशाह सूरी के नाम से जाना जाने लगा। बंगाल पर भी शेर खाँ ने अपने सेनापति जलाल खाँ को भेजकर वहां अपना परचम लहराया और उसके बाद बनारस जौनपुर लखनऊ और कन्नौज पर अपना अधिकार कर वहां शासन किया आता है। इस तरह अफ़गान शासकों ने कुछ समय के लिए ही सही लेकिन मजबूत मुग़ल साम्राज्य को घुटनों कर ला खड़ा किया ।

Published By
Prakash Chandra
11-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. चौसा का युद्ध कब हुआ था ?

जून 1539 ईस्वी


2. चौसा का युद्ध कहाँ हुआ था ?

बक्सर, बिहार


3. चौसा का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

मुगल शासक हुमायूँ और अफ़गान शासक शेर खाँ


4. चौसा के युद्ध का परिणाम ?

हुमायूँ की करारी हार


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