दिवेर का युद्ध

दिवेर का युद्ध
दिवेर का युद्ध

मुगल सल्तनत के विस्तारवादी नीतियों के कारण देश के विभिन्न राज्यों में वहां के स्थानीय राजाओं का दमन किया जा रहा था। उनसे उनके राज्य को हड़प कर मुगल सल्तनत में मिलाया जा रहा था।

मुख्य बिंदु-

# युद्ध- अकबर की शाही सेना बनाम महाराणा प्रताप की सेना

# परिणाम - शाही सेना की करारी हार, मेवाड़ स्वतंत्र राज घोषित

# वर्ष - 1582 (विजयादशमी) 



1576 में हुआ हल्दीघाटी का युद्ध मुगल साम्राज्य के विस्तार वादी नीति का एक उदाहरण था, जिसने मुगल साम्राज्य के कदम राजपूती राजस्थान की जमीन की तरफ बढ़ा दिए थे । लेकिन मेवाड़ ने वीर योद्धाओं ने दिवेर के युद्ध में उन कदमों को वहीं काट कर जमींदोज कर दिया। मुगलिया ख्वाहिशें वहीं दफन हो कर दी गयी। अकबर की सेना भाग खड़ी हुई । इसे दिवेर का युद्ध कहते हैं । आइये, कहानी भारत की के इस अंक में आपको दिवेर के युद्ध की रोमांचक कहानी के बारे में बताते हैं । 



अगर आप मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप की लड़ाई को हल्दीघाटी के युद्ध में ही खत्म समझते हैं तो यह आपकी भूल है। 1576 में होने वाला हल्दीघाट का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के बीच के टकराव का अंत नहीं बल्कि आरम्भ था। हल्दीघाटी में अकबर की सेना ने मान सिंह के नेतृत्व में भले ही राजपूती सेना को पराजित किया हो लेकिन उसके बाद महाराणा प्रताप ने भी प्रण लिया था कि जब तक वह मेवाड़ और अपना राज्य वापस हासिल नहीं कर लेते, वह महलों में नहीं रहेंगे।



हल्दीघाटी युद्ध के 6 वर्षो के बाद तक महाराणा प्रताप जंगलों की खाक छानते रहे। अपने पुत्र, अपने परिवार और अपनी सेना के साथ वापस अपने राज्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते रहे। इस बीच उन्हें छोटे-छोटे रजवाड़ों की मदद भी मिली । भामाशाह से मिले आर्थिक सहयोग से महाराणा प्रताप ने अपनी एक संगठित सेना बना ली थी।



हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर भी मेवाड़ पहुंचा था। उसने उदयपुर का नाम बदलकर मोहम्मदाबाद कर दिया था। महाराणा प्रताप के अंदर यह बात खल रही थी कि राजपूती शान मुगलों के अहंकार के आगे झुका हुआ समझा जा रहा था। उसे वापस पाना बेहद जरूरी था। प्रतिशोध प्रबल था और यही वजह थी कि 1582 ईस्वी में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना दिवेर के मैदान में आमने-सामने थी।मुगल इतिहास के सबसे भीषण और रक्तरंजित इस युद्ध को दिवेर का युद्ध कहा जाता है, जो मुगल सल्तनत के विस्तार के आगे दीवार बन कर खड़ा हो गया।



हल्दीघाटी के युद्ध के बाद 6 वर्षो तक अकबर ने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन वह महाराणा प्रताप को कैद करने में असफल रहा। विजयादशमी का दिन था । देवरा के मैदान में युद्ध की रणभेरी बजने ही वाली थी । अकबर की सेना के सेनापति उसके चाचा सुल्तान खान थे। महाराणा प्रताप ने अपनी सेनाओं को दो गुटों में बांट दिया था, जिसमें से एक का नेतृत्व वह खुद कर रहे थे, जबकि दूसरे सेना का नेतृत्व उनका पुत्र अमरसिंह कर रहा था। 



महाराणा प्रताप का पुत्र भी उनकी तरह ही वीर और प्रतापी था। कहा जाता है कि अमर सिंह ने एक मुगल सेनापति को इतना जोरदार भाला मारा था कि भाला सेनापति के साथ-साथ उसके घोड़े को भेदते हुए जमीन में जा धसा था। सेनापति अपने घोड़े के साथ मूर्ति की तरह वहीं खड़ा रह गया था। महाराणा प्रताप ने भी अपने तलवार की प्रचंड विभीषिका दिखाई थी। इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को उसके घोड़े समेत दो टुकड़ों में काट दिया था। राजस्थान में आज भी ये कहा जाता है कि मेवाड़ के योद्धा मुगलों को घोड़ा समेत काट देते थे। 



अपने प्रतिशोध की ज्वाला में मेवाड़ की सेना ने अकबर के सेना को बोटी बोटी कर डाले थे। पुराने इतिहास को पढ़ने से पता चलता है कि दिवेर के युद्ध के भीषण रक्तपात में मुगलों की सेना के प्राण पखेरू उड़ते देर नहीं लगे थे और उन्हें राजपूतों ने अजमेर तक खदेड़ दिया था।



युद्ध के अंत तक मुगल की सेना में भगदड़ मच गई। उसके सारे प्रमुख सेनानायक कटे हुए जमीन पर मिले और सेना मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। मेवाड़ पर फिर से राजपूतों का अधिकार हुआ। महाराणा प्रताप ने चावंड में अपनी नई राजधानी बनाते हुए फिर से अपना शासन शुरू किया। मुगल बादशाह अकबर दिल्ली में रहते हुए 6-7 सालों तक वापस मेवाड़ को पाने का संघर्ष करता रहा, लेकिन वह असफल रहा। उसके बाद अकबर भी राजपूतों के इस धरती पर शासन करने का सपना छोड़ बैठा।  उसने दोबारा मेवाड़ की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं की। 



ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल टॉड ने दिवेर के युद्ध की तुलना मैराथन से की है। और इसे मेवाड़ का मैराथन कहा हैं। कई अंग्रेज इतिहासकारों ने भी इसके बारे में लिखा है। उन्होंने साफ कहा है कि जीवन मे समूचे भारत पर राज करने वाली शाही सेना को इतना लाचार और बेबस उन्होंने किसी युद्ध में नहीं देखा। आधी कटी मरी सेना गिरती लड़खड़ाती भागी थी। और ऐसी भागी की लौट कर फिर नहीं आयी । राजपूती तलवार ने मुगलों को सेना ही नहीं बल्कि उनके अहंकार को भी टुकड़ों में काटकर राजस्थान की धरती पर गाड़ दिया। दिवेर के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की ख्याति दुनिया में फैल गयी।  उन्होंने अपनी सेना को फिर से संगठित की और अपना राज्य चलाया। 



आमतौर पर इतिहास बताने वाले हल्दीघाटी के युद्ध को ही महाराणा प्रताप का निर्णायक युद्ध बताते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था। हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के टकराव का आरंभ था, जिसे शुरू अकबर ने किया था और दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर की विशाल सेना को नंगे पांव खदेड़ कर उसका अंत कर दिया।

Published By
Prakash Chandra
25-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. दिवेर का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

महाराणा प्रताप की सेना और अकबर की सेना के मध्य


2. दिवेर के युद्ध का परिणाम ?

अकबर सेना की करारी हार, मेवाड़ स्वतंत्र राज घोषित


3. दिवेर का युद्ध कब हुआ था ?

सन 1582 ईस्वी


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