गिरी सुमेल का युद्ध

गिरी सुमेल का युद्ध
गिरी सुमेल का युद्ध

कहानी भारत की में अब तक हम मुगल साम्राज्य के आक्रमण के बाद हुमायूं के पतन और शेरशाह सूरी के अभ्युदय के बारे में पढ़ चुके हैं। आज हम आपको शेरशाह सूरी के उस युद्ध के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें महज मुट्ठी भर राजपूती सेना ने लाखों की अफगानी सेना को लोहे के चने चबवा दिए और आखरी आखरी तक जीतने के लिए नाक रगड़ने को मजबूर कर दिया। सुमेल का युद्ध इस वीरगाथा का साक्षी है। जिसके बारे में हम आपको आज बतौर कहानी बताने जा रहे हैं।

मुख्य बिन्दु -

       # युद्ध - मारवाड़ शासक मालदेव राठौर बनाम शेरशाह सूरी

       # वर्ष - 1543-44 ईस्वी

       # परिणाम - भारी नुकसान झेलते हुए शेरशाह सूरी विजयी

बात उन दिनों की है जब हुमायूँ का पतन हुआ और कुछ वर्षों के लिए मुगल सल्तनत की स्थिति चरमरा गई। अफगान शासकों ने अपना साम्राज्य विस्तार करना शुरू कर दिया। भारत में अफगान शासक शेरशाह सूरी का अभ्युदय काफी तेजी से हो रहा था और शेरशाह सूरी बंगाल और मालवा जीतने के बाद अब मारवाड़ की तरफ पांव पसारने की योजना बना रहा था। साल 1544 ईसवी की बात है। मारवाड़ का एक छोटा सा गांव है, जो राजस्थान जिले में पड़ता है। वर्तमान में राजस्थान के पाली जिले के जैतारण तहसील का यह गांव उस दौर में राजपूती तलवार की शान हुआ करता था। शेरशाह सूरी ने मारवाड़ विजय की योजना बनाई और 1543 ईस्वी में मारवाड़ की तरफ कूच कर गया।

मारवाड़ के भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यहां के राजा राव मालदेव राठौर और उनका किला किला मेहरानगढ़ ऊंची पहाड़ियों पर सुरक्षित दीवारों से महफूज था। ऊंची पहाड़ी पर होने के कारण इस पर चढ़ाई करना नामुमकिन था, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जब आप ऊंचे स्थान पर हो और नीचे से कोई दुश्मन चढ़ाई कर रहा हो तो आप अपनी 10 गुना ज्यादा क्षमता वाली सेना को भी परास्त कर सकते हैं। मेहरानगढ़ के चारों तरफ शहर बसाया गया था, जिसका नाम है जोधपुर। शेरशाह सूरी ने मारवाड़ विजय के लिए एक नई रणनीति बनाई और उसने अपने 80 हजार घुड़सवार और 40 तोपों के साथ मारवाड़ से 90 किलोमीटर दूर गिरी सुमेल नामक जगह पर आकर डेरा डाल दिया। मारवाड़ पर कोई आकस्मिक आक्रमण ना हो, इस आशंका को खत्म करने के लिए राजा राव मालदेव राठौर भी अपने 50 हजार घुड़सवारों के साथ गिरी सुमेल पहुंच गए वहां पर डेरा डालकर युद्ध की तैयारियां करने लगे।

महीनों तक दोनों सेना आमने सामने तैनात रही कि जरा सी भी आक्रामक गतिविधि नजर आई तो हमला कर देंगे । मालदेव और उनकी सेना के लिए सुमेल गृहराज्य था लेकिन शेरशाह सूरी के लिए यह राज्य अपरिचित, जिस कारण शेरशाह सूरी की सेना को राशन की दिक्कत होने लगी। राशन के अभाव में सेना युद्ध लड़ने के लिए निर्बल होने लगी। शेरशाह सूरी ने जब यह देखा तो उसने अपने विजई अभियान को बरकरार रखने के लिए एक नई योजना बनाई। उसने अपने नाम से एक चिट्ठी लिखी जिसमें उसने मारवाड़ के सरदारों को धन्यवाद करते हुए लिखा कि मुश्किल घड़ी में अफगान सेना की मदद करने का शुक्रिया। और इस चिट्ठी को जानबूझकर उसने राजा मालदेव राठौर के छावनी के पास फेंकवा दिया। राजा मालदेव के सिपाहियों को चिट्ठी मिली। अफवाह आग की तरह फैली कि सरदार सामंत शेरशाह सूरी की मदद कर रहे हैं। राजा मालदेव को जोधपुर पर संकट दिखाई देने लगा।  उन्होने सेना लेकर वापस लौटने का फैसला किया।

लेकिन इसी बीच एक दिलचस्प वाकया हुआ। कहा जाता है कि मारवाड़ राज्य के सरदार सेनापति कुंपा और जेता पास के गांव में एक बार पानी पीने गए। जब वह कुएं के पास पहुंचे तो कुछ महिलाएं आपस में बातें कर रही थी। इसमें से एक महिला ने कहा कि शेरशाह सूरी की अफगानी सेना जोधपुर का हमला कर सकती है और उनका अस्तित्व खतरे में है। इस पर दूसरी महिला ने कहा कि जब तक कुंपा और जेता है, हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। इस विश्वास को सुनकर दोनों सेनापति भावविभोर हुए। उन्होंने पीछे न हटने का निर्णय लिया। वापस जाकर मालदेव से आग्रह किया कि वह गिरी सुमेल के युद्ध में ही डटे रहना चाहते हैं और अफगानी सेना को यहीं रोकना चाहते हैं। उनकी प्रार्थना सुनकर राजा राव मालदेव राठौर 10,000 घुड़सवारों की टुकड़ी सुमेल में ही छोड़कर बाकी सेना लेकर जोधपुर के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। शेरशाह सूरी को इसी दिन का इंतजार था। जैसे ही राजा मालदेव जोधपुर की तरफ दूर निकल जाते हैं, अफगानी सेना कुंपा और जेता की छावनी पर टूट पड़ती है। शेरशाह सूरी को लगा था कि मुट्ठी भर सेना को तो वो यूनही कुचल देंगे लेकिन सारा खेल पलट जाता है। राजपूती वीरों के आगे पठानों की तलवारें टूट कर बिखरने लगती है और कहा जाता है कि युद्ध शुरू होने के कुछ ही घंटों के भीतर शेरशाह की आधी सेना धरती छोड़ छोड़ चुकी होती है।

भीषण रक्तपात मचाया गया। मारवाड़ी वीरों ने दुशमनों के छक्के छुड़ा दिये। शेरशाह सूरी को अपनी पराजय दिखाई देने लगी और उसने अपनी सेना को वापस दिल्ली लौटने का आदेश तक दे दिया था। लेकिन तभी अचानक अफगान सेनापति खवास खान आकर सूचना देते हैं कि कुंपा और जेता युद्ध भूमि में मारे जा चुके हैं। हारती हुई सूरी सेना की जान में जान आई और वो युद्ध भूमि को वापस लौटते हैं। इतिहासकार कहते हैं कि खुद शेरशाह सूरी ने भी माना कि उनकी वीरता के आगे अफगानी सेना घुटने पर आ गई थी। शेरशाह सूरी ने कहा था कि वह मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सल्तनत गवा देता।

तो यह थी गिरी सुमेल के युद्ध की कहानी, जिसने एक बार फिर से साबित कर दिया कि महज मुट्ठी भर राजपूती सेना लाखों की अफगानी सेना पर काल बनकर टूटी थी और इतिहास रच दिया था।

Published By
Prakash Chandra
14-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. गिरी सुमेल का युद्ध कब हुआ था ?

1543-44 ईस्वी


2. गिरी सुमेल का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

मारवाड़ शासक मालदेव राठौर और शेरशाह सूरी


3. गिरी सुमेल के युद्ध का परिणाम ?

शेरशाह सूरी विजयी


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