दशराज्ञ युद्ध

दशराज्ञ युद्ध
दशराज्ञ युद्ध

भारत के युद्धों के इतिहास में अनगिनत और अद्भुत युद्धों का जिक्र है लेकिन उसका कोई प्रारम्भिक बिन्दु स्पष्ट नजर नही आता । सनातन धर्म के वेदों का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि अखंड आर्याव्रत की भूमि पर सबसे पहला युद्ध त्रेता युग में लड़ा गया था । इस महान युद्ध का विवरण सार ऋग वेद में वर्णित हैं, जिसका समय लगभग साढ़े तीन हजार साल ईसा पूर्व बताया जाता है । इस युद्ध को दस राजाओं का युद्ध यानि दशराज्ञ युद्ध भी कहा जाता है। इस महायुद्ध का विस्तार से वर्णन ऋग्वेद के किताब 7, श्लोक 18 -33, अध्याय 83.4- 8 में उपलब्ध है। ऋगवैदिक युग के मध्य में रावी नदी के किनारे हुए इस युद्ध के कहानी पर विस्तार से चर्चा आज हम 'कहानी भारत की' के इस अंक में करेंगे ।

मुख्य बिन्दु -



योद्धा दल - सुदास  



बनाम अलीन, अनु, भृगु, भालन, दृह्यू, मत्स्य, परसू, पुरू, पणि



अवधि : ऋगवैदिक काल मध्य 3500 ई॰पू॰



स्रोत : ऋग्वेद



दशराज्ञ युद्ध जिसका तद्भव दसराज युद्ध भी है, यह युद्ध महाभारत के भी पहले लड़ा गया था । प्राचीन भारत के इस महायुद्ध से ही कुरुक्षेत्र की बीज डाली गई थी । ऐसा कहा जाता है कि इसी युद्ध के बाद से महाभारत की पृष्ठभूमि लिखी जाने लगी थी



रावी नदी के किनारे लड़े गए इस युद्ध में एक तरफ थे राजा सुदास तृस्तु, तो वहीं दूसरे तरफ दस कबीले एक साथ मिलकर लड़ रहें थे । उन कबीलों के राजाओं के नाम संभवतः अलीन, अनु, भृगु, भालन, द्रीह्यू, मतस्य, परसू, पुरू, पणि इत्यादि शामिल थे । राजा सुदास की मदद कर रहे थे उनके गुरु वशिष्ठ । महर्षि वशिष्ठ सुदास के युद्ध सलाहकार भी थे, तो वहीं महर्षि विश्वामित्र ने विरोधी दस राजाओं के मार्गदर्शन का कार्य किया था । कहा जाता है कि राजा सुदास भरत कुल इच्छ्वाकुवांश वंश के थे, और उनकी युद्ध शैली भी अतुलनीय थी ।



दसराज युद्ध में मुनि वशिष्ठ ने लकड़ी के बने पारंपरिक हथियारों से अलग लोहे के बने अस्त्रों और शस्त्रों से परिचय करवाया था । सुदास की महज 6600 की सेना और एक तरफ दस राजाओं की 60 हजार की संख्या से सुसज्जित सेना, साथ में हाथी, घोड़ें और रथ । बावजूद इसके मुनि वाशिष्ठ के दिये हथियारों के प्रयोग से दिन के अंत होते होते तक दसों राजाओं की सेना सुदास की सेना के हाथों कट मर चुकी थी । दुश्मन कि सेना को आधे पहर तक समझ में ही नहीं आया कि आखिर ये किस तरह का हथियार है जो दिखने में  छोटा है लेकिन एक साथ कई सैनिकों को मार रहा है । यह लोहे के बने तीर का कमाल था जो एक साथ में कई सेना को भेद रही थी । मुनि वशिष्ठ ने मानों सुदास  के हाथ में महाकाल का त्रिशूल दे दिया था। शाम युद्ध समाप्ति तक महाराजा सुदास युद्ध जीत चुके थे । राजा अनु के साथ 6 अन्य राजा भी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे । बाकी छह को जीवनदान देकर देश निकाला दे दिया गया था ।



भारत की कहानियों में दसराज युद्ध यानि दशराज्ञ युद्ध अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें इससे भारत के भविष्य की दिशा निर्धारित हो जाती है। इछ्वाकूवंश का शासन समूचे अखंड भारत पर हो जाता है और विश्व कि पहली स्मार्ट सिटी हड़प्पा कि नीव रखी जाती है । सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे विकसित शहर हड़प्पा राजा सुदास का ही सपना था जो आगे चल कर एक विशाल शहर में परिवर्तित हुआ । इसके अलावा जो अवांछनीय चीजें घटित हुई उसमें विजित राज्यों में शत्रुता का अंकुर फूटना था । गांधार, मल्ल देश ये सब जीते हुए राज्य थे, जहां षडयंत्रों और राजनैतिक गतिविधियों ने शह देना शुरू किया और फिर एक समय के बाद महाभारत जैसा भीषण नरसंहार देखने को मिला ।



दशराज्ञ युद्ध के बाद सिंधु पार कर के सुदास ने भारत विजय की शुरुआत की । और इस तरह आर्यों द्वारा अखंड भारत की खोज शुरू हुई । उसके बाद भी कई छोटी बड़ी लड़ाइयाँ होती रही लेकिन दसराज युद्ध ने जो बल दिया उसने आगे सारे काम आसान कर दिये । एक साथ अपने से महाबलशाली और बड़ी दस राजाओं की सेना को अकेले मौत के घाट उतार देने वाले सुदास के पराक्रम की चर्चा बाकी राज्यों में आग की तरह फैली । इसके पश्चात भारत विजय पर निकले सुदास को एक दो बड़े स्थानों को छोड़ कर कहीं भी बड़े युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा । अधिकांश राजाओं ने संरक्षण स्वीकार कर लिया ।



अतः दशराज्ञ युद्ध का महत्व कई अध्यायों को जोड़ता है । भारत के इतिहास में पहली बार लोहे के हथियारों की पुष्टि इस लड़ाई से होती है । अखंड भारत की खोज का रास्ता इस युद्ध से निकलता है और आर्यों के इतिहास और उनके वैभव को जानने का मौका भी इसी युद्ध के स्रोतों से ज्ञात होता है । युद्ध के कई अनकही किस्सों और कहानियों में ही छिपी है "कहानी भारत की"

Published By
Prakash Chandra
21-01-2021

Frequently Asked Questions:-

1. दशराज्ञ का युद्ध कहाँ हुआ था ?

रावी नदी के किनारे


2. दशराज्ञ का युद्ध कब हुआ था ?

ऋगवैदिक काल मध्य 3500 ई॰पू॰


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