पुरंदर का युद्ध

पुरंदर का युद्ध
पुरंदर का युद्ध

शिवाजी का बढ़ते वर्चस्व ने आदिलशाही सेना और मुगलों के नाक में दम कर रखा था। वर्ष 1665 तक लगभग आधा हिंदुस्तान हिन्दू स्वराज्य में तब्दील हो गया था। दिल्ली के हुकूमत को यह डर लगने लगा था कि अगर छत्रपति शिवाजी को नहीं रोका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली के सिंहासन पर भगवा लहराएगा।



शिवाजी लगातार मुगलों के सीने पर चढ़कर वार कर रहे थें। प्रतापगढ़, कोल्हापुर, पावनखिंड की लड़ाइयां जीतने के बाद शिवाजी ने सूरत को मुगलों के जबड़े से लूट लिया था और दिल्ली सल्तनत उन्हें छू तक नहीं पाई थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर मराठा सैनिक भारत में भगवा हिंदू स्वराज्य का विस्तार बहुत ही तेजी से करते जा रहे थे। दिल्ली के शासकों को यह बात नागवार गुजर रही थी।

आखिरकार औरंगजेब ने शिवाजी को रोकने के लिए एक हिंदू शासक को ही सामने करना पड़ा।

हिन्दू शासक को शिवाजी के खिलाफ भेजा

बतौर हिंदू शासक मिर्जा राजा जयसिंह और दक्कन के सरदार दिलेर खान को एक साथ छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके मराठा साम्राज्य का सामना करने के लिए भेजा। लड़ाई का कारण तो आपको पता चल ही गया है, लेकिन एक हकीकत यह भी थी कि लगातार हो रही लड़ाई से मराठा सैनिकों का हिम्मत तो बढ़ रही थी, लेकिन संख्या घट रही थी। दिल्ली की फौज 14हजार की भयानक सेना के साथ छत्रपति शिवाजी को पकड़ने पुरंदर की तरफ चल पड़ी। 

साल 1665 वह समय था, जब 14 हजार की विशाल सेना के जत्थे में असले, बारूद के साथ सेना हर कदम पर आतंक मचाते हुए हिंदू स्वराज्य की तरफ बढ़ रही थी। कहा जाता है कि मिर्जा जयसिंह और दिलेर खान ने एक रणनीति के तहत सीधे शिवाजी पर हमला करना ठीक नहीं समझा। उन्होंने पहले छोटे-मोटे साम्राज्य को जीतना शुरू किया। शिवाजी से लोहा लेना किसी भी मुगल के लिए यमराज को ललकारने जैसा था। इसलिए मिर्जा जयसिंह और दिलेर खान पुरंदर पहुंचने से पहले उन तमाम किलो को, जहां सैनिकों की संख्या 500 से 1000 के बीच में थी उसको जीतना शुरू कर दिया।

मुगलों की रणनीति कमजोरों तक सीमित

जानकारों का कहना है कि पुरंदर पहुंचते पहुंचते हैं मुगल की सेना 14000 से 30000 हो गई थी। जाहिर सी बात है सैनिक क्षमता में इतनी बढ़ोतरी उनके जीते हुए राज्यों की देन थी। रास्ते में सासवड गांव पड़ता था। इस गांव के रास्ते दिलेर खान को अपने तोप और सेना के साथ आगे पुरंदर की तरफ बढ़ना था। एक रात दिलेर खान ने सासवड में बिताने का फैसला किया। मराठा सैनिकों ने इसे मौका समझा और रात को मुगलों पर मराठा समाज की छोटी सी टुकड़ी ने जोरदार हमला किया। मुगलों के तैयारियों पर गंभीर चोट करते हुए वापस चले गयें।

इस हमले का एकमात्र उद्देश्य उनकी सैनिक क्षमता का नुकसान करना था, जिसमें वह बेहद कामयाब रहे। इस हमले के बाद दिलेर Iखान गुस्से से भर गया और उसने अपनी बची कुछ सेना के साथ पुरंदर पर हमला करना शुरू कर दिया। लेकिन पुरंदर छत्रपति शिवाजी महाराज का साम्राज्य था,किसी मुगल का मकबरा नहीं जिसको आसानी से जीत लिया जाए। तमाम गोले बारूद और तोपे मिलकर भी पुरंदर किले के दीवार का कुछ नहीं बिगाड़ सकी।कई दिन तक प्रयास करते रहने के बावजूद मुगल की सेना पुरंदर में घुसने में नाकाम रहे। गोले बारूद को बर्बाद करते रहें। दिलेर खान थक चुका था। फिर उसने एक दूसरी रणनीति बनाई।

पुरंदर को घेरने की कोशिश, पर नाकाम

दिलेर खां ने पुरंदर के आसपास के 300 से 400 सैनिक क्षमता वाले किलों को जीतना शुरू किया। पुरंदर किले के पास वज्रगढ़ नाम का किला था। जानकार बताते हैं कि इस किले से पुरंदर के किले पर हमला करना आसान था। दिलेर खान ने वज्र गढ़ के किले को जीत लिया और फिर वहां से पुरंदर की दीवारों पर तोप के जरिए हमला करना शुरू कर दिया, ताकि पुरंदर किले के बाहर मुंह ताकती हुई उसकी नाकाम सेना किसी भी तरह किले के अंदर दाखिल हो सके। 

वज्र गढ़ के किले से भी दिलेर खां को कोई सफलता हासिल नहीं हो रही थी। छत्रपति शिवाजी महाराज का पुरंदर का किला अजिंक्य किला था, उसे जीत पाना नामुमकिन था। बारूद के गोले दागे जा रहे थे पर सब बेकार साबित हो रहे थे। इसी बीच एक रात किले का दरवाजा खुला, मराठा सूरमाओं ने नंगी तलवारों के साथ वज्र गढ़ के किले पर हमला कर दिया। उनकी तोपें बर्बाद कर दी और कई मुगल सैनिकों को फिर मौत के घाट उतार कर वापस किले में समा गयें। यह कुछ ऐसा ही था कि घर मे घुसकर मराठा वीर दिलेर खां के मुंह पर तमाचा जड़ के चले गये हो।

अंततः मुगलों की संधि का षड्यंत्र

मुगलों के पास अथाह पैसा संपत्ति और सैन्य क्षमता थी। तैयारी का समय भी उन्हें पर्याप्त मिल रहा था, जिसके कारण पुरंदर पर हमले लगातार जारी थे। लगातार हो रहे हमले से किले के अंदर मौजूद लोगों को दिक्कत हो रही थी और उनका दुख छत्रपति शिवाजी महाराज से देखा नहीं जा रहा था। युद्ध के बदले प्रजा की हालत को शिवाजी ने बेहतर करना जरूरी समझा और फिर एक संधि हुई जिसे पुरंदर की संधि कहते हैं।  इसमें तय हुआ कि पुरंदर पर हमले रोके जाएं। बदले में मराठा सैनिक मुगलों के सर कलम करना बंद कर देंगे। पुरंदर की संधि में और सारी कई शर्ते शामिल थी,जिसका विस्तार से अध्ययन आप इतिहास की किताबों में कर सकते हैं।

इतिहास में यह भी एक सच है पुरंदर कि यह संधि मुगलों की एक चाल थी, जिसने शिवाजी के साथ धोखा किया। फिलहाल युद्ध रुक गया मुगल सल्तनत की फौज पुरंदर किले से वापस नाकाम होकर लौट गयी।

Published By
Prakash Chandra
15-03-2021

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