वर्ष 1659 ईस्वी, मराठा साम्राज्य के उदय का वर्ष रहा । छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू मराठा साम्राज्य की नींव रखी, और देखते ही देखते भगवा मराठा साम्राज्य खड़ा हो गया। शिवाजी महाराज ने अफजल खां को परलोक भेजा ,और जल्द ही आदिलशाही सेना की करारी शिकस्त ने चारों ओर शिवाजी के नाम का डंका बजा दिया था । तमाम हिन्दू शिवाजी के राज्य को सुरक्षित मानने लगें । लेकिन बीजापुर की सेना कहा शांत रहने वाली थी । शिवाजी को पकड़ने की घेराबंदी फिर से शुरु हुई और फिर एक युद्ध हुआ - कोल्हापुर का युद्ध। इन युद्ध के बाद आदिलशाही सेना ने दुबारा शिवाजी के परछाई को नही छूने की हिम्मत नहीं की।
मुख्य बिंदु:
प्रतापगढ़ के युद्ध में अफजल खान मारा जा चुका था। युद्ध विजय का फायदा उठाकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने बहुत ही तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार किया और लगभग 200 किलोमीटर के दायरे में मौजूद तमाम दुर्गो को जीत लिया था। इसी कड़ी में उन्होंने पन्हाला दुर्ग को भी जीत लिया था। मुगलों के लिए यह चिंता की बात थी। अतः शिवाजी को रोकने के लिए प्रतापगढ़ युद्ध के लगभग महीने भर के बाद बीजापुर की आदिलशाही सेना फिर से शिवाजी को रोकने निकल पड़ी।
रुस्तम जमान की दस हजार की सेना को जवाब
रुस्तम जमान की नेतृत्व में 10,000 आदिलशाही सेना शिवाजी को पकड़ने आ रही थी। रुस्तम जमान के साथ और भी कई अन्य सहयोगी सरदार उसकी सेना में मौजूद थे, जिसमें फैजल खान, मलिक इतबार, सआदत खान, याकूब खान, अंकुश खान, हसन खान, मुल्ला याह्या और संताजी घाटगे प्रमुख थे। इसके अलावा दो हजार घुड़सवारों और सबसे अगली पंक्ति में 12 हाथियों की मजबूत सेना शिवाजी की तरफ पन्हाला की ओर बढ़ रही थी। शिवाजी की तरफ से लड़ने वालों में खुद शिवाजी, नेताजी पालकर, सरदार गोडाजी जगताप, हीरोजी इंगले और भीमजी वाघ प्रमुख थें।
28 दिसंबर 1659 के दिन कोल्हापुर के मैदान में शिवाजी और आदिलशाह की सेना आमने-सामने थी। युद्ध के प्रारंभ होते ही बीजापुर की 10,000 सेना के भीतर शिवाजी की महक साढ़े तीन हजार की सेना ने घुसते ही भयंकर मारकाट मचाई। मुगल सेनाओं के खेमें में ऐसा आतंक मचाया कि दोपहर होते-होते तक रुस्तम जमान मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इस युद्ध में आदिलशाही सेना ने 2000 घोड़े और अपने 12 हाथियों को खो दिया। इसके अलावा हजारों दुश्मन सेना मौत के घाट उतार दिये गये। युद्ध ख़त्म हो गया, लेकिन कोल्हापुर युद्ध के बाद भी मराठा सेना ने आदिलशाही सेना को खदेड़ना जारी रखा और कई जगहों पर उन्हें परास्त किया।
खेलना के किले को जीतना कूटनीतिक सफलता
युद्ध समाप्ति के बाद एक और दिलचस्प वाकया हुआ। मराठा प्रभाव क्षेत्र में खेलना का किला आता था, जो चारों तरफ से मजबूत दुर्ग की दीवारों से घिरा हुआ था। और उसके दरवाजे बंद थे। किले में बीजापुर की सेना थी और संगठित तौर पर बाहर से होने वाले किसी भी हमले से लड़ने के लिए सक्षम थी। जब तक दरवाजा नहीं खुलता तब तक उस दुर्ग को जीत पाना नामुमकिन था। शिवाजी ने कूटनीति का सहारा लिया। उन्होंने अपने कुछ सरदारों को किले के पास भेजा और यह कह कर भिजवाया कि वह शिवाजी के शासन व्यवस्था से खुश नहीं है, और आदिलशाही सेना में शामिल होना चाहते हैं। शिवाजी का दांव चल गया और सरदारों ने अंदर घुसकर आदिलशाही सेना में अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी। मौका देखकर किले पर हमला किया गया और शिवाजी ने खेलना का किला भी जीत लिया। बाद में इसी किले का नाम बदलकर विशालगढ़ रखा गया।
इस तरह से कोल्हापुर का युद्ध मराठाओं के साम्राज्य विस्तार पर अंतिम मुहर माना जाता है, जिसने अब तक किये गए राज्य विस्तार को और भी सुरक्षित और सुनिश्चित कर दिया।
Published By
Prakash Chandra
08-03-2021
Frequently Asked Questions:-
1. कोल्हापुर का युद्ध किनके बीच हुआ था ?
छत्रपति शिवाजी महाराज की मराठा सेना और आदिलशाही सेना
2. कोल्हापुर का युद्ध कब हुआ था ?
दिसंबर, 1659 ईसवी
3. कोल्हापुर के युद्ध का परिणाम ?
मराठा सेना की शानदार जीत