दिल्ली का युद्ध

दिल्ली का युद्ध
दिल्ली का युद्ध

भारत के तमाम युद्ध में मुगल सेना के अगर सबसे ज्यादा किसी ने छक्के छुड़ाये हैं वह है मराठा सैनिकों के जज्बे ने। छत्रपति शिवाजी महाराज से लेकर पेशवा बाजीराव प्रथम तक और उसके आगे भी कालांतर में मराठा सैनिकों ने मुगलों को हमेशा अपनी तलवार की नोक पर रखा है। कभी भी उन्हें खुद पर हावी होने नहीं दिया। यहां तक की पूरे देश से कर वसूलने वाले मुगल चुपचाप हाथ जोड़कर मराठा सैनिकों को छत्रपति शिवाजी के सामने कर का भुगतान किया करते थे। कहानी भारत की के इस अंक में अब आपको बाजीराव प्रथम द्वारा उनके सबसे महत्वाकांक्षी और शानदार युद्ध के बारे में बताने जा रहे हैं। इसका नाम है दिल्ली का युद्ध, जो इतिहास के पन्नों में आज भी अब तक के सबसे तेज आक्रमण की गवाही देता है।

1727 में बाजीराव के नेतृत्व में मराठा सैनिकों ने मुगलों के सामने उसके प्यादे निजाम को मसल के रख दिया। मुगल जानबूझकर अनजान बने रहें और हैदराबाद के निजाम को उसके किये की सजा दी गई। आलम कुछ ऐसा हुआ कि निजाम, जिसने खुद को निजाम उल मुल्क की उपाधि दी थी, पेशवाई के सामने गिड़गिड़ाता हुआ नजर आया और उसने फिर से चौथ और सरदेशमुखी देने का वचन दिया। बाद में शेवगांव की संधि के बाद उसे छोड़ दिया गया।



टहनी नहीं, जड़ काटना चाहते थे पेशवा



पेशवा बाजीराव प्रथम एक बेहद महत्वाकांक्षी राजा थे और उन्हें छोटी लड़ाइयों में तनिक भी दिलचस्पी नहीं थी। वह हिंदू स्वराज के माथे पर हिंदुस्तान का ताज देखना चाहते थे, जिसमें वो काफी हद तक सफल हो चुके थे। लेकिन इतिहास हमेशा दिल्ली की गद्दी से लिखा जाता था। इसलिए बेहद जरूरी था कि दिल्ली पर आक्रमण किया जाए और वहां भगवा लहराया जाए। पेशवा बाजीराव ने एक नई रणनीति के तहत युद्ध की तैयारियां शुरू की। इसी बीच दिल्ली के शासको को इस बात का अंदेशा हो गया कि पेशवा अपने मराठा सैनिकों के साथ कभी भी हमला कर सकता है। डर होना स्वाभाविक था, क्योंकि उन्होंने हैदराबाद के निजाम की दुर्गति देखी थी।



बाजीराव का निशाना कहीं और था। राव कहते थे की पेड़ों को काटने के लिए सिर्फ टहनियां नहीं जड़े काटनी होती है। जड़ कहने का मतलब उनका तात्पर्य दिल्ली के मुगल सल्तनत से था, जिसे जीतकर संपूर्ण भारत में भगवा राष्ट्र की स्थापना की जा सकती थी। पेशवा बाजीराव अपने मराठा सैनिकों के साथ दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बनाते हुए कूच कर गये। उधर मुगलों ने होने वाले हमले को रोकने के लिए योजना बनायी और बीच रास्ते में ही बाजीराव को रोकने की पूरी तैयारी की। भोपाल में मुगलों ने सआदत खान को खड़ा कर दिया। वह अपनी डेढ़ लाख सैनिकों के साथ लड़ने तो गया, लेकिन मारे डर के वह भाग खड़ा हुआ। 



दिल्ली तीन दिनों तक बाजीराव के रहमो करम पर जिंदा थी



मुग़लिया हुकूमत की जबड़े तोड़ने वाली मराठा सेना ने सआदत खान को बीच मैदान में घेरा,मगर वह जान बचाकर भाग निकला। 1737 ईसवी में पेशवा बाजीराव ने दिल्ली पर आखिरकार हमला कर ही दिया। महाराष्ट्र से दिल्ली तक की दूरी 10 घंटे कही जाती है। इन रास्ते को बाजीराव ने अपनी वीर मराठा सैनिकों के साथ 48 घंटे में पूरा किया। भारत के इतिहास में यह सबसे तेज युद्ध आक्रमणों में इसे गिना जाता है। मुगलों को सतर्क होने का मौका तक नहीं मिला। बाजीराव पेशवा और युद्ध नीति में माहिर मराठा सेना ने दिल्ली पर हमला कर दिया। उन्होंने दिल्ली में मुगलिया खजाना को जी भर के लूटा और उनका मनोबल और उनकी कमर दोनों तोड़ दी।



दिल्ली की मुगल सल्तनत बेबस और लाचार हो चुकी थी। कहा जाता है कि बाजीराव पेशवा की दरियादिली ही थी कि सल्तनत बच गया। 3 दिन तक दिल्ली की हुकूमत बाजीराव पेशवा के जूते की नोक पर रहे। उसके बाद पेशवा अपने प्राण कहे जाने वाले  पुणे नगर को वापस लौटने लगे, लेकिन रास्ते में उन्हें साजिशों की भनक लग गयी। खबर लगी कि मुगल सम्राट मोहम्मद शाह रंगीला ने निजाम को संदेश भिजवाया और मदद की अपील की है। निजाम बाजीराव से इतनी बार पिट चुका था, कि उसे सामने खड़े होने की हिम्मत भी नहीं थी। फिर भी मुगलिया खून की लाचारी ने मुगल हुकूमत के प्रति अपनी वफादारी निभाई और निजाम दक्कन से अपनी सेना लेकर मोहम्मद शाह रंगीला की मदद करने निकल पड़ा। भोपाल में बाजीराव का सामना निजाम की सेना से हुआ, लेकिन डरे हुए निजाम ने मोहम्मद से मिलने की बात कह कर चुपचाप रास्ता बदल लिया और दिल्ली पहुंच गया। बाजीराव को शक था कि कुछ तो खिचड़ी पक रही है। वह चीमाजी आपा के साथ 10,000 की सेना दक्कन की सुरक्षा में छोड़कर, बाकी सेना के साथ वापस दिल्ली को कूच कर गए।



दिल्ली पहुंचने पर उनका शक सही साबित हुआ। इस बार उन्होंने मुगलों को सबक सिखाने की सोची। इस बार दुश्मन को बख्शने का कोई इरादा नहीं था। मुगलों से फिर युद्ध हुआ मराठा तलवारों ने फिर दिल्ली की जमीन को मुगलों के खून से लाल कर दिया और लाल किले के अंदर मुगलिया ताज को उसकी औकात दिखा दी। मोहम्मद शाह रंगीला परास्त हुआ। कई बार का हारा हुआ निजाम युद्ध छोड़कर भागने लगा और जल्दी जल्दी में उसने संधियों का सहारा लेना शुरू कर दिया। इस बार बाजीराव पेशवा ने उससे कुरान पर हाथ रखकर कसम खिलावायी और संधि की शर्तों को दौहराया। मुगल इतिहास में हिन्दूस्वराज्य द्वारा दी गयी यह सबसे बड़ी करारी और शर्मनाक हार कही जाती है।

Published By
Prakash Chandra
05-04-2021

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