अलाउद्दीन खिलजी के बारे मे अब तक आप कई कहानियाँ पढ़ चुके हैं । अलाउद्दीन खिलजी के महत्वाकांक्षी साम्राज्यवादी नीतियों का अंजाम समस्त भारतवर्ष को क्रूरता के साथ झेलना पड़ रहा था । पश्चिम से आने वाला वो पहला शासक था जिसने साम्राज्यवादी नीति को इतनी क्रूरता के साथ अपनाया था कि किसी भी नरसंहार से पीछे नहीं हटता था । रणथंभोर और चित्तौड़ के बाद अब बारी थी गुजरात फतह की । सन् 1298-99 ई के बीच अलाउद्दीन ने अपनी एक विशाल सेना को गुजरात जीतने के लिए भेजा । आगे क्या हुआ, हम आपको कहानी भारत की के इस अंक में बताने जा रहे हैं ।
मुख्य बिन्दु -
कहा जाता है कि चित्तौड़ और रण]थंभोर जीतने के बाद अलाउद्दीन खिलजी का आतंक चारो ओर फैल गया थे । हर जिस भी राज्य को उसकी सेना जीतती थी, वहाँ नरक कर देती थी । कुछ यही हश्र गुजरात का भी होने वाला था ।
गुजरात फतह महत्वपूर्ण क्यों ?
गुजरात पश्चिमी हिंदुस्तान का महत्वपूर्ण बन्दरगाह हुआ करता था । ईरान और अरब से होने वाले घोड़े का व्यापार गुजरात के बन्दरगाहों से हुआ करता था । सूरत, भड़ौच, कैम्बे और खंभात उस दौर के सबसे प्रभावशाली और व्यस्त बन्दरगाह हुआ करते थे । व्यापारिक दृष्टिकोण से गुजरात के इन बन्दरगाहों पर जिसका भी आधिपत्य होता, पश्चिमी देशों से उसका सीधा संपर्क होता था । संपन्नता इसिस मार्ग से भारत में प्रवेश कर रही थी । अलाउद्दीन की नजर में यह काफी समय से था । इसलिए उसने राजा बनने के बाद गुजरात जीतने की लिए रणनीतियाँ बनानि शुरू कर दी थी ।
कैसे शुरू हुआ गुजरात अभियान ?
भारतीय वीर सूरमाओं ने जब भी विदेशी आक्रांता के आगे घुटने टेके है तो उनके पीछे एक सामान्य वजह रही है गद्दारी । भारतीय वीरों को हमेशा छल कपात और भीतरघात का सामना करना पड़ा है । किसी ने किसी अपने ने ही उन्हें धोखा दिया है जिसकी वजह से यह भारत सदियों तक गुलाम रहा । चाहे वो गौरी के जमाने मे पृथ्वीराज चौहान हो या कर्ण बघेल के जमाने में उन्ही का मंत्री माधव ।
माधव का विश्वासघात
अलाउद्दीन खिलजी जब गुजरात अभियान की तैयारी कर रहा था जब गुजरात के राजमहल में भी षडयंत्रों का खेल शुरू था । गुजरात के राजा कर्ण बघेल की सुखी जनता पर अपना कब्जा उन्ही का विश्वासी मंत्री माधव करना चाहता था । कहा जाता है कि खिलजी के अभियान की सूचना मिलते ही उसने खिलजी की मदद करने शुरू कर दिये और महल संबंधी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दुश्मन खेमे को दी । अलाउद्दीन खिलजी ने 1299 में भारी सेना के साथ उसे दो टुकड़ियों में गुजरात पर हमला करने के लिए भेजा। सेना की दो टुकड़ियों का नेतृत्व खिलजी के दो सेनानायक उलुंग खान और नुसरत खान कर रहा था । खिलजी की रक्त पिपासु सेना गुजरात की छोटी सेना पर टूट पड़ी और कई लाशों की चिता जलाने के बाद आखिरकार गुजरात पर खिलजी के सेना की विजय हुई । राजा कर्ण बघेल पुरोहितों के सलाह को मानते हुए अपनी पुत्री देवलदेवी को लेकर गुप्त रास्ते से प्राण बचाकर भाग निकले और देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव के राज्य में शरणार्थी हुए । कर्ण बघेल कि पत्नी कमादेवी को खिलजी की सेना ने बंदी बना लिया और उसे दिल्ली ले आए । दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने कमलादेवी से ब्याह रचा कर उसे "मालिका-ए-जहाँ" की उपाधि से नवाजा ।
तन धन और दास की लूट -
गुजरात जीतना खिलजी के लिए सोने की लंका जीतने जैसा था । जानकार बताते हैं कि गुजरात अभियान में सफल होने के बाद खिलजी के राजस्व में अभूतपूर्व वृद्धि हुई । राजा कर्ण बघेल की पत्नी को अपनी पटरानी बनाने के साथ साथ अरबों रुपए की संपत्ति तो हाथ लगी ही, उसके अलावा मालिक कफूर जैसा वफादार भी अलाउद्दीन खिलजी को प्राप्त हुआ, जिसने चित्तौड़ युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । कहा जाता है कि सैनिकों को भी लूटपाट से काफी धन की प्राप्ति हुई, जिसको लेकर मुहम्मद शाह ने कड़े निर्णय भी लिए ।
गुजरात विजय के बाद खिलजी की सेना ने सूरत, कैम्बे और सोमनाथ में भी भारी तबाही और लूटपाट की । जैसलमर के किले को वो चढ़ाई करते वक़्त ही लूट चुके थे । गुजरात जीतने के बाद उत्तर भारत में लगभग सम्पूर्ण रूप से अलाउद्दीन खिलजी का परचम बुलंद हो गया । मंगोलो के साथ भी उसकी कई लड़ाइयाँ है, जिसमें वह विजयी रहा । भारत में मुग़लराज आने से पहले यहाँ के मूल राजाओं को खिलजी ने हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । अंशतः सफल भी हुआ और एक राजा एक तौर पर नहीं बल्कि एक सनकी आक्रांता के तौर पर जाना गया ।
Published By
Prakash Chandra
29-01-2021
Frequently Asked Questions:-
1. गुजरात का युद्ध किनके बीच हुआ था ?
राजा कर्ण बघेल और अलाउद्दीन खिलजी
2. गुजरात का युद्ध कब हुआ था ?
1298-1304 ई.
3. गुजरात के युद्ध का परिणाम ?
कर्ण बघेल की पराजय, गुजरात पर अलाउद्दीन का कब्जा