कन्नौज का युद्ध

कन्नौज का युद्ध
कन्नौज का युद्ध

कहानी भारत की इस अंक में हम आपको कन्नौज के युद्ध के बारे में बताने वाले हैं। कन्नौज के युद्ध को बिलग्राम का युद्ध भी कहा जाता है, जो मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच लड़ा गया था। 1540 ईस्वी में हुए इस युद्ध में क्या कुछ हुआ, किस तरह से मुगलों के सामने पठानों ने अपनी बाजी चली और मुगलिया सल्तनत की मजबूत दीवार पर अफ़गानों ने अपनी एक छाप छोड़ दी, उसके बारे में इस अंक में हम चर्चा करेंगे। हम आपको बताएंगे कि क्या है कन्नौज की लड़ाई की कहानी।

मुख्य बिन्दु-

       # युद्ध : हुमायूँ बनाम शेरशाह सूरी

       # वर्ष : मई 1540

       # परिणाम : हुमायूँ बुरी तरह से पराजित, अफगान विजयी

मुगल बादशाह बाबर ने एक के बाद एक कई लड़ाइयां जीतकर भारत में एक मजबूत मुगल सल्तनत की नींव रखी थी। बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं गद्दी पर बैठा। हुमायूं एक असफल शासक था और वह ज्यादातर समय भोग विलास में डूबा रहता था। इसका फायदा ना सिर्फ दुश्मन बल्कि उनके खुद के राज्य के महत्वाकांक्षी लोग उठाया करते थे या उठाना चाहते थे।

चौसा के युद्ध में अफगान शासक शेरशाह सूरी से बुरी तरह से हारने के बाद जैसे तैसे हुमायूं अपनी जान बचाकर भाग खड़ा होता है। उसके परिवार के कई महत्वपूर्ण लोग मारे जाते हैं। उसकी सेना नष्ट कर दी जाती है। दिल्ली की गद्दी पर शेरशाह सूरी की पकड़ मजबूत बनती है। लेकिन हार से बौखलाए हुमायूं को यह बात तनिक भी बर्दाश्त नहीं होता। युद्ध करने को उतावला हुआ हुमायूं फिर से शेरशाह सूरी से युद्ध करने के लिए आ धमकता है। हालांकि हुमायूँ को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि शेरशाह की सेना मुगल सेना के मुकाबले बहुत ज्यादा मजबूत और बड़ी है। इसलिए इस युद्ध को जीतने के लिए हुमायूं ने अपने भाइयों से मदद मांगी। कन्नौज की लड़ाई से पहले हुमायूं अपने भाइयों को मिलाने का प्रयास करता है। लेकिन जैसा कि आपको बताया गया खुद उसके राज्य के महत्वाकांक्षी लोग भी हुमायूं की हारता देखना चाहते थे। इसलिए बजाय हुमायूं की मदद करने के उसके भाई उल्टा उसके युद्ध की रणनीति में रुकावट डालने लगे।

शेरशाह सूरी को इसी मौके का इंतजार था। सही समय देखकर अचानक शेरशाह ने हुमायूं पर हमला बोल दिया। गंगा के दोनों किनारे हुमायूं और शेरशाह की सेना लगभग 1 साल तक युद्ध की तैयारियों का मंथन करती रही। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि शेरशाह एक संगठित सेना के साथ युद्ध को तैयार था, जबकि हुमायूं की सेना दिन प्रतिदिन की खंडित हो रही थी और हुमायूं का साथ छोड़ कर जा रही थी। चौसा की लड़ाई बुरी तरीके से हारने के बाद हुमायूं की सेना को भी अपने शासक पर ज्यादा भरोसा नहीं रहा था। शेरशाह की शक्ति के सामने उन्हें अपनी हार प्रत्यक्ष दिखाई दे रही थी। इसलिए हुमायूं की सेना लगातार उसका साथ छोड़ रही थी। अपनी सेना को टूटते हुए देख कर हुमायूँ ने जल्द से जल्द ही युद्ध करने का फैसला किया था, ताकि कहीं बची हुई सेना भी उसे छोड़कर ना चली जाए।

युद्ध प्रारंभ करना हुमायूँ की मजबूरी थी। उसने आनन-फानन में युद्ध की घोषणा कर दी। गंगा किनारे हुए कन्नौज के युद्ध में शेरशाह सूरी की सेना ने मुगल सेना को बेहद बुरी तरीके से और आसानी से हराया। मई 1540 को हुमायूं की सेना बुरी तरीके से पराजित हुई। जान बचाकर सेना भाग खड़ी हुई। नदी पार करने के दौरान कई सैनिक मारे गए और कई गंगा नदी में डूब गए। अफगान की ताकत दिल्ली तक पहुंच गई और हुमायूं बिना राज्य के राजा बना रहा।

दिल्ली पर शेरशाह सूरी का अधिकार हुआ। हुमायूं जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। इस तरह से बाबर की बसाई गई मुगलिया सल्तनत पर कब्जा करते हुए उसके साम्राज्य को अफ़गानों ने अंशतः ही सही पर अपने कदमों तले रौंद दिया और अगले कुछ वर्षों तक मुगल सल्तनत अफगानों के अधीन रहा। इस तरह से भारत में अफगान साम्राज्य का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ, जिसे फिर लोदी वंश के नाम से जाना जाता है। अकबर के सत्ता संभालने के बाद फिर से मुगल सल्तनत की नींव पड़ी और मुगल साम्राज्य आगे बढ़ा, इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

Published By
Prakash Chandra
13-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. कन्नौज का युद्ध कब हुआ था ?

मई, 1540 ईस्वी


2. कन्नौज का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

हुमायूँ और शेरशाह सूरी


3. कन्नौज के युद्ध का परिणाम ?

हुमायूँ बुरी तरह से पराजित, अफगान विजयी


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