सूरत का युद्ध

सूरत का युद्ध
सूरत का युद्ध

भारतीय इतिहास को और भारत के वीर योद्धाओं को मुगल इतिहासकारों ने कभी भी महिमामंडित नहीं किया है। जहां तक कोशिश की है कि उन्हें खराब या बुरा या कमतर ही बताया है। इसी कड़ी में एक नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का भी आता है, जिनकी वीरता की मिसाल दुनिया मानती है, लेकिन मुगल सल्तनत के इतिहासकारों ने कभी इस बात को स्वीकारते हुए अपनी कलम नहीं चलायी है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण है शिवाजी द्वारा सूरत पर चढ़ाई करना, जिसको मुगलों ने एक लूटपाट की तरह इतिहास में लिखा है। मुगलों की मंशा से हर कोई वाकिफ था और आज सब को यह मालूम है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने किस मंशा से सूरत पर चढ़ाई की। मुगलों ने इस लड़ाई को बड़े ही हीन भावना के साथ उल्लेखित किया है। ‘कहानी भारत की’ के इस अंक में हम आपको “सूरत के युद्ध” के बारे में बताने जा रहे हैं।

मुख्य बिंदु:




  • युद्ध: दरअसल यह युद्ध नहीं, बल्कि मुगल खजाने पर विजय की कहानी है।

  • वर्ष: जनवरी, 1664

  • परिणाम: सूरत पर शिवाजी की धाक में बढ़ोतरी, मुगलों में हडकंप



अब तक आपने शिवाजी के लगातार बढ़ते वर्चस्व के बारे में पढ़ा है। एक के बाद एक मुगल सल्तनत और आदिलशाह की सेना के ताबूतों पर कील ठोकते हुए शिवाजी आगे बढ़ रहे थें और भारत में मराठा साम्राज्य विश्व हिंदू स्वराज्य के उद्देश्य के साथ बढ़ता जा रहा था। कोई रोकने वाला नहीं था। किसी भी सल्तनत में यह हिम्मत नहीं थी कि शिवाजी के वीर मराठा सेना के सामने एक दिन भी टिक जाये। एक के बाद एक प्रतापगढ़, कोल्हापुर और पावनखिंड का युद्ध जीतने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज भारत में मुगल, आदिलशाह और ब्रिटिश हुकूमत के सामने एक समानांतर साम्राज्य खड़ा कर चुके थे। इसका मुकाबला करने की हिम्मत एक साथ तीनों की भी नहीं थी।



बढ़ी ताकत, तो दुश्मनों ने मिलाया हाथ

ताकत जब बढ़ती है, तो दुश्मन भी बढ़ते हैं। 1660 में विशालगढ़ के किले में सुरक्षित पहुंचने के बाद शिवाजी ने अपना साम्राज्य चलाना शुरू किया। तभी भारत में आदिलशाही सेना, मुगल सल्तनत और पुर्तगालियों ने हाथ मिला लिया ताकि शिवाजी को रोका जा सके। इस बीच सत्ता बदल गई थी। मुगल बादशाह औरंगजेब दिल्ली के सल्तनत पर काबिज हो चूका था। उसने भी छत्रपति शिवाजी महाराज को रोकने के लिए भरसक प्रयास किये। हालांकि औरंगजेब ने खुद माना है कि छत्रपति शिवाजी महाराज से भिड़ जाना उसके जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी। इसमें उसका सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ और कुछ भी नहीं।



औरंगजेब ने शिवाजी को रोकने के लिए शाइस्ता खान को भेजा। शाइस्ता खान एक बेहद आक्रामक और क्रूर सेनापति था। भारत में उसके नाम का खौफ चलता था, लेकिन जब मुकाबला शिवाजी महाराज से हो तो शिवाजी के अलावा किसी की नहीं चलती। शाइस्ता खान ने शिवाजी के राज्यों को लूटना और उस पर कब्जा करना शुरू कर दिया। किलो को जीते हुए शाइस्ता खान ने पुणे भी जीत लिया, जहां शिवाजी का जन्म हुआ था। आख़िरकार शिवाजी ने शाहिस्ता खान को रोकने के लिए अपनी तलवार उठाई।



शाइस्ता खान की उँगलियां काट कर भगाया

1663 इस्वी में शाहिस्ता खान एक शादी समारोह में जब अय्याशियां कर रहा था। तभी शिवाजी ने उस पर हमला कर दिया। भीषण मार-काट के बाद शिवाजी ने शाइस्ता खान के बेटे को वहीं मौत के घाट उतार दिया। मुग़ल सेना की लाशें बिछा दी गयी। शाइस्ता खान की तीन उंगलियां काट दी। जान बचाकर संहिता का भाग खड़ा हुआ और उसके बाद जिंदगी में दोबारा कभी भी वह शिवाजी के सामने उनसे टकराने की हिम्मत नहीं कर सका। शाइस्ता खान को वापस बुलाकर उसे बंगाल की सुबेदारी सौंप दी गयी।  



लेकिन लगातार चारो तरफ की स्थिति विकट होती जा रही थी। किसी भी युद्ध को किसी भी आंदोलन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। धन के अभाव में लड़ाइयां मुश्किल होती चली जाती हैं। शिवाजी ने धन संग्रह की योजना बनाई, और उस दौर के सबसे संपन्न राज्य और मुगल हुकूमत के खजाने को लूटने का निर्णय लिया। उस वक्त गुजरात का सूरत मुगलों और पुर्तगालियों के संरक्षण में था। समुद्र के किनारे बसा शहर व्यापारिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था और भारत के सबसे संपन्न राज्यों में गिना जाता था। उस पर मुगल का कब्जा था। शिवाजी महाराज ने सूरत पर हमला कर दिया और मुगलिया खजाने को लूट लिया।



मुगल इतिहासकारों का दोहरापन

मुगल इतिहासकारों ने इसे बेहद गलत ढंग से प्रस्तुत किया है। शिवाजी को एक लुटेरे की तरह प्रदर्शित करने की कोशिश की है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था। आक्रमण करने से पहले शिवाजी ने सूरत के व्यापारियों से संधि करने की कोशिश की थी। सबको बुलाकर समझाया था। अपनी बात समझाई थी लेकिन मुगल हुकूमत के वफादार और देश के गद्दार व्यापारियों ने शिवाजी का साथ देने से इनकार कर दिया था। शिवाजी को आखिकार सूरत पर आक्रमण करना पड़ा, लेकिन आक्रमण के साथ ही उन्होंने अपनी सेना को यह सख्त हिदायत दी थी कि किसी भी महिला और बच्चो या आम नागरिक पर कोई हमला नहीं किया जाए। उन्होंने किया  भी नहीं। सूरत पर किए गए हमले में सिर्फ और सिर्फ मुगलिया खजाना लूटा गया।



पुर्तगाली कोठियां लूटी गई। ब्रिटिश अड्डे को लूटने के दौरान रास्ते में एक विदेशी चर्च पड़ा, जिसको मराठा सैनिकों ने हाथ तक नहीं लगाया। ये भारत के स्वाभिमान की एक झलक थी, जो गद्दारों की कलम को कभी समझ नहीं आयी। शिवाजी ने सूरत को दो बार लूटा और जब तक दिल्ली से औरंगजेब की सेना सूरत पहुंचती, तब तक शिवाजी खजाना लूट कर वापस अपने मराठा साम्राज्य में सुरक्षित पहुंच गए। यह थी सूरत की कहानी। शिवाजी के सूरत आक्रमण के बाद वो और भी प्रसिद्ध हो गए। उनकी चर्चा समंदर पर के देशों में भी की जाने लगी।

Published By
Prakash Chandra
12-03-2021

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