चंदेरी का युद्ध

चंदेरी का युद्ध
चंदेरी का युद्ध

चंदेरी की कहानी आज से 500 वर्ष पूर्व शुरू होती है। ये वह शौर्य की गाथा, जब सन 1528 ईस्वी में चंदेरी की भूमि युद्ध की साक्षी बनने वाली थी । भारत में मुगल आक्रमण इसके इतिहास में नये अध्याय को जोड़ता है। पानीपत की पहली लड़ाई में मुगल बादशाह बाबर का हिंदुस्तान की धरती पर कदम रखना इस बात का संकेत था कि भारत फिर से गुलाम होने वाला था विदेशियों के हाथों। पानीपत और खानवा के युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर भारत में अपना पांव पसारने की रणनीति बना रहा था। मकसद था इस दुश्मनों को कुचल देना और इस मकसद का अगला निशाना था राजा मेदनीराय, जिसके साथ चंदेरी का युद्ध लड़ा गया।

शत्रु मित्र भी शत्रु होता है

खानवा के युद्ध में राणा सांगा के घायल होने के बाद वह युद्ध के मैदान में पीछे हट गया था। बाबर विजयी हुआ। राणा सांगा के साथ जो अन्य राजा युद्ध में बाबर के खिलाफ लड़ रहे थे, वह अब बाबर की आंखों की किरकिरी बने हुए थे। दुश्मन की मदद करने वाला भी दुश्मन होता है, इसी नजर से बाबर उन सब को देख रहा था, जिन जिन ने खानवा के युद्ध में मुगल सेना पर हथियार उठाए थें। चंदेरी के राजा मेदनीराय भी खानवा की लड़ाई में राणा सांगा की तरफ से लड़े थे। राणा सांगा के पीछे हट जाने के बाद मेदनी राय समेत सभी राजा अपने-अपने किलो की सुरक्षात्मक दृष्टिकोण को देखते हुए वापस लौट गए थे। मालवा लौटकर मेदनीराय अपने साम्राज्य की सुरक्षा के प्रति चिंतित रहने लगे थे, क्योंकि उन्हें भी मालूम था, बाबर आज नहीं तो कल पलटकर चंदेरी की तरफ रुख जरूर करेगा। हुआ भी कुछ यही, बाबर ने चंदेरी पर हमला करने का मन बना ही लिया।

चंदेरी पर आक्रमण के थें कई कारण

चंदेरी पर आक्रमण करने के कई अन्य कारण भी थे। शत्रु का ममददगार होने के अलावा चंदेरी उस वक्त काफी संपन्न राज्य था। चंदेरी का किला उस दौर के सबसे सुरक्षित किलो में माना जाता था। इसके अलावा चंदेरी रेशम मार्ग व्यापार के लिए भी एक महत्वपूर्ण शहर था। इस पर आक्रमण करके बाबर इस रास्ते से होने वाले रेशम के व्यापार पर पूरी तरह से नियंत्रण रख सकता था, जो उसके लिए बहुत ज्यादा लाभकारी था।

बाबर ने मेदनी राय को संदेश भिजवाया कि चंदेरी का किला मुगलिया हुकूमत के सामने पेश करे और बदले में बाबर के जीते हुए किसी भी किले को अपना बना ले। अपने स्वाभिमान की लगी बोली से राजा मेदनीराय बिल्कुल भी खुश नहीं हुआ और उसने ना में जवाब दिया। इस इनकार ने मुगल हुकूमत को बहाना दे दिया चंदेरी पर आक्रमण करने का।

एक रात में बीचो-बीच काट डाली पहाड़ी

साल 1528 ईस्वी, बाबर की सेना मेदनीराय के किले पर चढ़ाई करने के लिए चंदेरी के चौखट पर पहुंच चुकी थी। बाबर के लिए यह युद्ध इतना आसान नहीं था। चंदेरी का किला चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ था। बाबर की सेना में बड़ी-बड़ी तोपें और हाथी के लाव-लश्कर थे, जो इस सघन जंगल को पार नहीं कर सकते थें। बाबर यह बात भी अच्छी तरह से जानता था कि अगर वह इस जंगल को पार कर भी जाता है तो जंगल पार करते ही मेदनीराय की मजबूत सेना से उसका सामना होगा और अचानक हुए हमले में हो सकता है कि बाबर की सेना क्षत-विक्षत हो जाए।

क्षत्राणियों के जौहर ने बाबर का तोड़ा गुरुर

उधर मेदनीराय निश्चिंत होकर बैठा था। उसे लग रहा था कि घने जंगलों और उनकी पहाड़ियों की दुर्गम रास्तों को पार करते हुए बाबर की सेना चंदेरी नहीं पहुंच पाएगी। लेकिन वह मुगल थे, जो भारत को लूटने आए थे और लुटेरों के लिए क्या दुर्गम, क्या आसान। बाबर ने रातों-रात अपनी सेना से कहकर एक पूरी पहाड़ी कटवा डाली और एक रास्ता बना दिया, जिसके सहारे उसकी तोपें और हाथी बड़ी ही आसानी से चंदेरी पहुंच सकते थे। रातो रात एक ऊंचे पहाड़ को बीचो-बीच काट देना कल्पना से परे था। अगली सुबह जब मेदनीराय जागे तो उन्होंने बाबर की विशाल सेना को अपने किले के ठीक सामने पाया। यह देख कर खुद मेदनी राय भी चौंक गया । पर अब युद्ध के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। चंदेरी के राजपूतों को अपनी तलवार युद्ध भूमि में फिर से वीरता के अनुरूप प्रमाणित करना था। युद्ध की घोषणा हो गई। मेदनीराय की सेना बाबर की सेना के सामने काफी छोटी थी, जाहिर तौर पर हार सुनिश्चित थी, लेकिन स्वाभिमान के आगे हार जाना राजपूतों को कभी भी स्वीकार नहीं था। चंदेरी महल के सेनाओं ने अपनी क्षत्राणियों को आखरी बार अलविदा कहा और मैदान की तरफ कूच कर गये।

भयानक युद्ध हुआ । चंद राजपूतों ने बाबर की सेना में आतंक मचा दिया। एक राजपूत ने दस-दस मुगलो के सर काटे, लेकिन आखिरकार बाबर की विशाल सेना के आगे कम पड़ते चले गये। मेदनीराय को बंधक बना लिया गया। चंदेरी किले की क्षत्राणियों ने जौहर का आयोजन किया। एक विशाल अग्निकुंड बनाकर सभी क्षत्राणियां उस पवित्र अग्नि में समाहित हो गई,ताकि दुश्मन उनके स्वाभिमान को हाथ भी न लगा सके। कहा जाता है कि जब बाबर किले में पहुंचा तब किले में कुछ भी नहीं था। खाली वीरान पड़े किले को देखकर बाबर इतना बौखला गया, कि उसने पूरे किले को तोड़ देने का आदेश दिया और खाली हाथ चंदेरी से लौटा। युद्ध में बाबर को सिवाय नुकसान के कुछ हासिल नहीं हुआ। सेना, समय और संपदा तीनो का नुकसान, सिर्फ नुकसान....और कुछ नहीं।

मेदनी राय को कुछ दिनों तक बंद रखने के बाद बाबर ने उनसे संधि पत्र पर हस्ताक्षर करवाया। चंदेरी को अपने अधीन कर लिया।

यह थी साल 1528 ईस्वी में लड़े गए युद्ध चंदेरी की कहानी, जिसने राजपूती तलवारों की शान में एक और अध्याय अपनी तरफ से आज भी जोड़ रखा है।

Frequently Asked Questions:-

1. चंदेरी का युद्ध कब हुआ था ?

सन 1528 ईस्वी


2. चंदेरी के युद्ध का परिणाम ?

बाबर की विजय


3. चंदेरी का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

राजा मेदिनीराय और बाबर के मध्य


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