चित्तौड़ का युद्ध

चित्तौड़ का युद्ध
चित्तौड़ का युद्ध

राजस्थान और राजपूत वीरता को नमन करते अध्याय में एक और बड़ा अध्याय है चित्तौड़ । खिलजी वंश के शासकों का चहेता चित्तौड़ । कारण भी बेहद महत्वपूर्ण , और वो ये कि राजस्थान का मेवाड़ दिल्ली की आँखों में दिन रात चुभता था । हिंदुस्तान के लगभग भूभाग को जीत लेने के बाद भी विदेशी आक्रांताओं की कई पीढ़ियाँ इस छोटे से प्रदेश को जीत पाने में असफल रही थी। जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की गद्दी पर बैठा तब उसने भी चित्तौड़ पर अधिकार करने का लक्ष्य रखा । आगे क्या हुआ, किन परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी गयी, उनसब पर आज "चित्तौड़ के युद्ध" में चर्चा करेंगे ।

मुख्य बिन्दु -




  • युद्ध - रत्न सिंह बनाम अलाउद्दीन खिलजी

  • वर्ष - 1303 ई

  • परिणाम - अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर कब्जा



कौन थें राजा रावल रत्न सिंह -



राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ के प्रतापी राजा रावल समरसिंह के पुत्र थे । बेहद महत्वाकांक्षी और शासकीय गुण होने के कारण समरसिंह ने उन्हें चित्तौड़ का राजा बनाया । यह 1302 ई की बात है जब राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ के राजा बनाए गए । उनका यह कार्यकाल बहुत ही छोटा रहा । कारण रह की दिल्ली में बैठे खिलजियों की नजर चित्तौड़ पर पहले से थी और अब जब तात्कालिक शासक अलाऊद्दीन खिलजी ने पुरखो के सारे अधूरे कार्य पूरे करने का निर्णय लिया तो उसमे पहला स्थान चित्तौड़ विजय का ही आता था । इसके पहले इल्तुतमीश, नसीरुद्दीन मोहम्मद और बलबन ने भी चित्तौड़ पर अपनी पूरी सैन्य क्षमता के साथ धावा बोला था लेकिन हार कर वापस लौट गया । चित्तौड़ पर तक किसी भी आक्रांता के कब्जे में नहीं आ पाया था । मौर्य सम्राट चित्रांगद द्वारा बनवाया गया चित्तौड़ का किला अपनी बनावट और युद्ध दृष्टि से बेहद सुरक्षित माना जाता था ।



क्या थी चित्तौड़ पर चढ़ाई की वजह -



इस सवाल के जवाब में मतांतर देखने को मिलता है । कुछ इतिहासकारों की माने तो वो इसे दिल्ली सल्तनत के शहँशाह अलाउद्दीन खिलजी का महत्वकांक्षी कदम मानते हैं, वही एक दूसरी कहानी बताती है कि खिलजी को राजा रावल रत्न सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी पर मोह था। शेरशाह सूरी के राज में यानि 1540 ई में लिखी गयी "पद्मावत " भी इसी वजह की पुष्टि करता है । अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रत्न सिंह को संदेश भेजवाया था कि अगर वो रानी पद्मिनी उसे सौंप देता है तो वह युद्ध नही करेगा । राजा रत्न सिंह उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा देते है । खिलजी आक्रमण कर देता है ।



खिलजी का पद्मिनी के बारे में जानना भी किसी राजदरबारी की गद्दारी को इंगित करता है । राजा रावल रत्न सिंह और अलाउद्दीन खिलजी की सेना के बीच भीषण रण संग्राम होता है । युद्ध का आँखों देखा हाल लिखने वाले अमीर खुसरो अपनी रचना "खजाईन-उल-फ़ुतूह" में स्पष्ट लिखते है कि इस युद्ध में प्रतिदिन 30 हजार सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था । रत्न सिंह की सेना भी भी भीषण रक्तपात मचाया था । शुरुआती दिनों में खिलजी कि सेना के भी पैरो तले जमीन खिसक गयी थी । खिलजी ने कूटनीति का सहारा लिया । उसने चित्तौड़ के किले को घेर कर रखने की सलाह दी । बाहर से किसी भी तरह की मदद का आना बंद हो गया । खाद्यानों की कमी होने लग गई । प्रजा को भूख से तड़पता देख कर राजा रावल रत्न सिंह को जंग के मैदान में उतरना पड़ा ।



राजा रत्न सिंह और अलाउद्दीन खिलजी अब मैदान में आमने सामने थे। जमकर युद्ध हुआ । खिलजी की जमकर धुनाई हुई , लेकिन खिलजी की कपट ने फिर अपना रंग दिखाया । राजा रावल रत्नसिंह के पीठ पर वार करवाया गया, और फिर उनपर वार पर वार किए गए । 1303 में लड़े गए इस युद्ध में राजा रत्न सिंह वीरगति को प्राप्त हुए । अलाउद्दीन खिलजी फिर भी हार गया । कहानिकारों के मुताबिक जिस उद्देश्य के लिए उसने चित्तौड़ के किले पर आक्रमण किया था, उसे वह आखिरी दम तक नसीब नहीं हुआ। महारानी पद्मावती ने राजपूताना की बाकी स्त्रियों के साथ चित्तौड़ का पहला जौहर किया ।



इस तरह से आखिरकार चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी ने कब्जा किया । भारत की कहानियों में मेवाड़ और चित्तौड़ का अपना अलग स्थान है जो राजस्थानी वीरता और पराक्रम के साथ साथ आत्मगौरव की गाथा को हमेशा जीवित रखता है ।

Published By
Prakash Chandra
27-01-2021

Frequently Asked Questions:-

1. चित्तौड़ का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

राजा रत्न सिंह और अल्लाउद्दीन खिलजी


2. चित्तौड़ के युद्ध का परिणाम ?

अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर कब्जा


3. चित्तौड़ का युद्ध कब हुआ था ?

1303 ई.


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