खानवा का युद्ध

खानवा का युद्ध
खानवा का युद्ध

यह युद्ध भारत के उन युद्धों में से एक है जिन युद्धों में वीरों ने अपने प्राणो की परवाह किये बिना अपनी मातृभूमि की रक्षा अपने प्राणो की आखिरी सांस तक की। एक तरफ जहाँ विदेशियों की मंशा लूट पाट की थी तो वही दूसरी और भारत के गौरव की जिसकी रक्षा का दायित्व भारत की धरा के वीरो पर था। जिन्होंने बड़ी ही बहादुरी से दुश्मनो से मुकाबला किया और उन्हें वीरता का भी परिचय कराया। एक और विदेशी अक्रान्ताओ ने अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, वही भारत के वीरो ने अपनी वीरता का परिचय दिया।

खानवा का युद्ध भारत इतिहास के लिए महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योकि इस युद्ध का परिणाम भारत देश के भविष्य को तय करने वाला था। खानवा का युद्ध क्यों हुआ इसकी शुरुआत कैसे हुयी ? बहुत सारे प्रश्न एक साथ मन में आते है, ऐसे ही इतिहास के पन्नो में ढूढ़ने बैठते है तो पता चलता है कि भारत देश में दिल्ली की गद्दी की लड़ाई एक तरफ भारत में वीर राणा सांगा को थी तो वही दूसरी और बाबर को भी। यह युद्ध बाबर और राणा सांगा के मध्य लड़ा गया था, बाबर को दौलत खान लोदी और राणा सांगा ने न्योता भेजा बाबर को।

राणा सांगा ने अपने राजदूत से यह कह कर निमंत्रण भिजवाया की बाबर दिल्ली पर आक्रमण करके उस समय के तत्कालीन राजा इब्राहिम लोदी को हरा सकता है वही इस निर्णय के अनुसार बाबर इब्राहिम लोदी का ध्यान भटकाने के लिए आगरा पर आक्रमण करेगा। लेकिन योजना के अनुसार विपरीत हुआ यहाँ बाबर ने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण तो किया और पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी की हार हुयी, संधि पत्र के अनुसार राणा सांगा ने आगरा पर आक्रमण नहीं किया। इस बात से बाबर क्रोधित हो गया।

राणा सांगा की सोच के अनुसार राणा सांगा ने सोचा की हर अफगान लूटेरो की तरह बाबर भी यहाँ से धन सम्पदा लूट कर यहाँ से चला जायेगा। लेकिन बाबर के इरादे यहाँ की सरजमीं पर पहुंचते ही बदल गए और उसने अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार और मुग़ल सल्तनत को भारत में फ़ैलाने का निर्णय लिया। जब बाबर ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया तो राणा सांगा को इस बात का ज्ञान हुआ और उन्होंने मुग़ल सल्तनत को उखाड़ फेकने का निर्णय लिया। राणा सांगा को अब एहसास हो गया था की अगर बाबर को भारत की सीमाओं से खदेड़ा नहीं गया तो राणा सांगा के दिल्ली के सपने को पूरा नहीं किया जा सकता। राणा सांगा बाबर को कभी भी दिल्ली का शाशक नहीं मानते थे

अब 16 मार्च 1527 ईस्वी आखिर यह तारीख भी आ गयी जब दोनों राणा सांगा और बाबर की सेनाएं आमने सामने थी। इस युद्ध के शुरू होने से बाबर ने अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए शराब न पीने और मांस न खाने की प्रतिज्ञा ली और बाबर ने अपनी सेना पर से तमगा नामक कर भी हटा लिया था। यहाँ राणा सांगा को अपनी सेना के वीरो के बाहुबल पर भरोसा था। शायद भारत की किस्मत में कुछ और लिखा था।

बाबर ने अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए इस युद्ध को ' जिहाद ' (धर्मयुद्ध) का रूप दे दिया था। राणा सांगा ने युद्ध में मदद लेने के लिए एक पत्र लिखा ' पति पर्वन ' जो राजस्थान के अधिकांश राजाओं को भेजा गया। जिसमे आमेर, बीकानेर, मेड़ता,मारवाड़,सिरोही,चंदेरी, वागड़, ईडर, सादड़ी, सल्युंबर, मेवात के राजाओं के साथ - साथ इब्राहिम लोदी का छोटा भाई महमूद लोदी भी शामिल हुआ। बाबर ने इस युद्ध को जीतने के बाद ' गाजी ' का टाइटल लिया।

युद्ध के कारण :- राणा सांगा और बाबर का राजनीतिक महत्वाकांक्षा का होना ।
राणा सांगा का दिल्ली सल्तनत के आस पास के इलाकों को अपने अधिकार में लेना और अपनी सीमाओं का विस्तार आगरा तक करना।
राजपूत और अफगान का संधि करना जो कि बाबर के लिए घातक सिद्ध हो सकता था।
" बाबरनामा" के अनुसार राणा सांगा का लोदी साम्राज्य के खिलाफ बाबर का साथ ना देना।

बाबर इस जगह का मुआयना पहले ही कर चुका था वह एक खुले मैदान में युद्ध नहीं लड़ना चाहता था। कुछ ही समय में 16 मार्च 1527 ईस्वी को राणा सांगा बाबर की सेना पर भारी पड़ने लगी शायद कुछ घंटे बीतने के बाद बाबर अपनी चाल पर कामयाब होता दिख रहा था कुछ समय बाद बाबर ने अपने आधुनिक हथियारों जिनमे तोपे शामिल थी और बारूद का इस्तेमाल शुरू किया। इस तरह का युद्ध पहले इतिहास में कभी नहीं हुआ था उन तोप के गोलों ने जैसे राणा सांगा की सेना में हलचल मच गया हो। जिन हाथियों से दुश्मन सेना काँप उठती थी, उन्ही हाथियों ने अपनी सेना में ही लोगो को कुचलना शुरू कर दिया।

इस युद्ध में भयानक नरसंहार चालू हो गया क्योकि सेना को संभलने का मौका ही नहीं मिला। इस युद्ध में राणा सांगा भी बुरी तरह से घायल हो गए, सेना में ही कुछ वीर सिपाहियों ने राणा सांगा को युद्ध क्षेत्र से बहार निकलने में सहायता की। इस युद्ध में राणा सांगा की हार और बाबर की जीत हुयी। इस युद्ध से एक बात भारत में स्पस्ट थी की बहादुरी के साथ आधुनिक हथियारों की भी आवश्यकता है।

कहते है राणा सांगा की मृत्यु उन्ही के किसी रिश्तेदार ने जहर देकर कर दी, उस दिन भारत ने एक वीर खोया होगा। ये भारत देश की धरती भी रोयी होगी जब उसका एक वीर काल की नींद सोया होगा। शायद राणा सांगा जीवित होते तो भारत में मुग़ल को सीमा से बहार भेजने की आशा जागृत रहती। गर्व है भारत देश को राणा सांगा जैसे वीर पर

Frequently Asked Questions:-

1. खानवा का युद्ध कब लड़ा गया था ?

16 मार्च 1527 ईस्वी


2. खानवा के युद्ध के परिणाम ?

बाबर की विजय और गाजी नामक उपाधि धारण करना


3. खानवा का युद्ध किनके मध्य हुआ था ?

राणा सांगा और बाबर


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