पोरस और सिंकंदर का युद्ध

पोरस और सिंकंदर का युद्ध
पोरस और सिंकंदर का युद्ध

यह युद्ध है इन दो वीरो का जिनका नाम इतिहास के उन स्वर्ण पन्नो में अंकित है। जिनकी गाथा पूरा विश्व जानता है एक ने अपनी मातृभूमि की रक्षा की तो दूसरे ने अपनी मातृभूमि का सीमा विस्तार और नर संहार। एक ऐसी कहानी जिन वीरो का नाम भारत में अमर है, और विदेश में भी। जहाँ इतिहासकारो ने एक अद्भुत युद्ध का वर्णन किया है जिसका उल्लेख इस प्रकार है।

पोरस और सिकंदर में एक बात तो सामान थी वह थी वीरता और साहस। दोनों ही इस धरती पर दैवीय शक्तियों के साथ प्रकट हुए, एक ने यूनान में जन्म लेकर पूर्ण विश्व विजय की कामना की और एक ने इस भारत की भूमि की सौगंध लेकर रक्षा करने की। सिकंदर ने जब पर्शिया को जीत लिया तो उसका नाम यहाँ के लोगो ने अलेक्सेंडर से सिकंदर कर दिया। सिकंदर एक पर्शियन शब्द है जिसका अर्थ रक्षक या रखवाला है। अलेक्सेंडर यूनान देश के मेसोटोनिआ का एक महान सम्राट था।

सिकंदर की विश्व विजय की महत्वाकांक्षा ने यूनान के पास कई देशो को जीता जिनमे ईरान के राजा डरायस का भी नाम है, यही से इसको विश्व विजय कहने लगे। कहते है जब सिकंदर ने भारत की सीमाओं में प्रवेश किया तो वहाँ के कई राजाओ से सीमा पर ही भेट हो गयी जिसका परिणाम सिकंदर की सेना को सहना पड़ा लेकिन सिकंदर ने वहाँ के राजाओ से संधि करने का प्रस्ताव देकर धोके से उन्हें मार दिया। शायद यहाँ के भारतीय राजाओ को छल का ज्ञान नहीं था।

जब सिकंदर भारत की सीमा कंधार तक्षशिला पहुंचा तो वह के राजा आम्भी ने सिकंदर का भव्य स्वागत किया और अपने राज्य में शरण दी। राजा आम्भी, राजा पोरस का शत्रु था। भारत के आपसी मतभेदों और विचारो ने हमेशा विदेशियों को भारत पर आक्रमण का मौका दिया है। राजा आम्भी ने न केवल स्वागत किया अपितु आर्थिक सहायता के साथ सैन्य सहायता भी प्रदान किया। यहाँ राजा पुरु ने सिकंदर के द्वारा भिजवाए गए अधीनता पत्र को अस्वीकार कर दिया बल्कि राजा आम्भी किसी तरह जान बचा कर भागे।

326 ईसा पूर्व में राजा आम्भी की सहायता से सिकंदर झेलम नदी को पार करने में सफल हो जाता है झेलम के इस पार राजा पुरु अपनी सेना के साथ युद्ध लड़ने के लिए तैयार खड़े है, राजा पुरु की सेना में हाथी और कई हज़ार पैदल सैनिक थे वही सिकंदर की सेना में घोड़े और पैदल सैनिक थे जिनकी सहायता से वो युद्ध जितना चाहता था। राजा पुरु ने झेलम नदी के किनारे सिकंदर की सेना को रोक दिया और भारत देश में विदेशी हमले की झेलम माँ साक्षी बनी। आज एक युद्ध का निर्णय होना था जिसका भाग्य इतिहास लिखने जा रहा था।

राजा पुरु की सेना के हाथियों से पहली बार सिकंदर की सेना ने सामना किया था। यह एक बहुत मुश्किल जंग साबित हुयी इस कारण से सिकंदर की सेना में एक आतंक छा गया लेकिन सिकंदर के हौसले पस्त नहीं हुए और अगले दिन के युद्ध में सिकंदर अपने कुछ यूनानियों सिपाहियों के साथ राजा पुरु की सेना में घुस गए और यहाँ राजा पुरु के बेटे ने सिकंदर के घोड़े ब्यूसेफ़ेलस को मार दिया। यह सिकंदर का प्रिय घोडा था, इस युद्ध से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था की सिकंदर कभी युद्ध में नीचे गिर गया हो। इससे सिकंदर की सेना का मनोबल टूट गया था।

कुछ क्षणों के पश्चात राजा पुरु और सिकंदर आमने सामने थे और अपनी तलवार से सिकंदर को मारने ही वाले थे की सिकंदर की हाथ में तलवार न थी और अपने स्वाभिमान के कारण राजा पुरु ने सिकंदर की हत्या नहीं की और सिकंदर के सैनिक वहाँ से सिकंदर को ले गए। कहते है इस युद्ध में माँ झेलम इस बात की साक्षी बनी यह युद्ध आज के (मोंग शहर पंजाब) प्रान्त में स्थित है, उस समय सिकंदर और पुरु में सिकंदर की जीत हुयी लेकिन राजा पुरु (पोरस) की बहादुरी से प्रभावित होकर वो यहाँ से वापिस यूनान चला गया।

यही कुछ कही-सुनी देखि-अनदेखी एक ऐसे ही कहानी जो भारत देश की कहानी में अमर है और जिसको पूरा देश एक वीरता के प्रतीक के रूप में जनता है ऐसे ही एक पोरस और सिकंदर की कहानी जिस पर पूरे विश्व को गर्व है इनकी बहादुरी पर।

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