चाइल्ड का युद्ध

चाइल्ड का युद्ध
चाइल्ड का युद्ध

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1600 ई. में हो गया था। मुगलों की सत्ता पर औरंगजेब आलमगीर बनकर बैठा था। समय था जब भारत के दक्षिण और पश्चिमी हिस्से के कुछ हिंदू स्वराज मुगलों को धूल चटा चुके थे, लेकिन भारत के काफी हिस्से पर अब भी मुगलों का शासन था। औरंगजेब के शासनकाल में अंग्रेजों ने भी मुगलों को धूल चढ़ाने की कोशिश की थी। आज हम उस युद्ध के बारे में चर्चा करेंगे। इस युद्ध का नाम है चाइल्ड का युद्ध। चाइल्ड के युद्ध को पहला एंग्लो-मुगल युद्ध भी कहा जाता है।

भारत में विभिन्न बंदरगाहों से अंग्रेजों को व्यापार करने की छूट मिली हुई थी। गुजरात, महाराष्ट्र और बंगाल, तमिलनाडु के कुछ बंदरगाहों से अंग्रेज सीधा व्यापार किया करते थे। भारत से रेशम मसाले कपड़े और खनिज का व्यापार बड़ी मात्रा में होता था। खासकर ढाका के मलमल की ब्रिटेन में बहुत मांग थी। अंग्रेज इन तमाम चीजों का व्यापार भारत के बंदरगाहों से करते थे। मुगलों की तरफ से उन पर कोई खास दबाव नहीं बनाया गया था, ना ही उन्हें कोई हिस्सा देना पड़ता था। मुगलों की तरफ से यही नियम था उनके सामान के कुल दाम का 3.5 प्रतिशत कर के रूप में मुगलों को दे देना था।



चाइल्ड ने दिमाग में उपजी बचकानी चाल

समय के साथ धीरे-धीरे भारत में पुर्तगालियों और बच्चों का भी आगमन हो गया। वह भी भारत के व्यापार में पांव पसारने आने लगे। साल 1685 का समय था, जब ब्रिटेन में कप्तान सर जोजिया चाइल्ड एक महत्वाकांक्षी लेकिन मंदबुद्धि कैप्टन हुआ करता था। भारत में पुर्तगालियों के बढ़ रहे व्यापार को देखते हुए उसने मुगल बादशाह औरंगजेब से ब्रिटेन के लिए कुछ विशेषाधिकार की मांग की, ताकि भारत के व्यापार पर उसका एकछत्र अधिकार बना रहे। औरंगजेब ने व्यापार में उसकी एकात्मक सत्ता को स्वीकारने से मना कर दिया। यह देखकर चाइल्ड भी बिलबिला गया और उसकी बेवकूफी कही जाये या बचकानी हरकत, उसने औरंगजेब आलमगीर को चुनौती दे डाली।



दुनिया के सबसे मालदार सल्तनत से पंगा

अब जरा उस समय के औरंगजेब के साम्राज्य की बात करें तो भारत में फल फूल रहा मुगल सल्तनत दुनिया का सबसे समृद्ध और संपन्न अर्थव्यवस्था माना जाता था। भारत के सीमा क्षेत्र में अफगानिस्तान के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र से लेकर ढाका और म्यानमार तक के सभी क्षेत्र आते थे। दुनिया की जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा भारत से उत्पन्न होता था। इसे चाइल्ड का बचपना ही कहा जायेगा या फिर उसकी मूर्खता, कि उसने महज 308 सैनिकों के बलबूते दुनिया के सबसे मालदार, समृद्धि और ताकतवर सल्तनत से लोहा लेने की सोच ली



हालांकि अंग्रेजों को 1603 ईसवी से लेकर अब तक लगातार छोटी-मोटी लड़ाइयों में जीत हासिल हो रही थी। अतिउत्साह का यह भी एक कारण था कि चाइल्ड को लगा कि वह मुगल हुकूमत को पराजित कर देगा। विशेषाधिकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने के बाद चाइल्ड बौखला गया और उसने भारत के समुद्री क्षेत्र में ब्रिटिश पोतें तैयार कर दी। उसने समुंदर में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। ब्रिटिश सेना को आर्डर दिया गया कि ना सिर्फ विदेशी जहाजों को बल्कि मुगलों के जहाजों को भी नजर पड़ते ही लूट लिया जाए, ताकि कोई भी भारत के साथ व्यापार नहीं कर सके।



सनकी औरंगजेब बुरा मान गया गया, सीदी याकूत को आदेश

औरंगजेब खुद क्रूर था, सनकी था, बुरा मान गया। दक्कन के शासक सीदी याकूत को उसने चाइल्ड को परिपक्वता सिखाने भेजा। सीदी याकूत ने अंग्रेजों के मुंबई बंदरगाह पर अचानक रात को 20 हजार सिपाही के साथ हमला कर दिया। तट पर पहुंचते ही उसने लगातार गोले दागना शुरू कर दिये। अंग्रेजों के खेमे में कोहराम मच गया। आतंक मचाने के बाद याकूत ने वहीं डेरा डाल दिया और मुंबई के चारों तरफ घेराबंदी कर दी। यहां तक कि उनके किले में जाने वाले राशन पानी तक को भी रोक दिया। याकूत ने जमकर लूटपाट की और किले के बाहर मुगलिया झंडा गाड़ दिया। ब्रिटिश सिपाही जो पकड़े गए हैं उन्हें काट दिया या फिर गले में जंजीरे पहना कर उसे मुंबई की गलियों में घुमाया गया। अंग्रेजों की हालत उसने पालतू जानवरों से भी बदतर कर दी।



अंग्रेजों ने घुटनों पर गिर कर मांगी माफ़ी

15 महीने तक याकूत की सेना मुंबई के किले को चारों तरफ घेरा डाल कर तैनात रही। किले के भीतर धीरे धीरे राशन खत्म हो गया। महामारी फैल गई। कहां जाता है कि जंग से पहले मुंबई की कुल आबादी 700 से 800 के बीच थी। लेकिन जंग के बाद 60 लोग ही बच पाये। बाकी सभी याकूत की सेना के तलवारों के या फिर फैली महामारी के शिकार हो गए। अंग्रेजों को घुटनों पर गिर कर माफी मांगनी पड़ी। इतिहासकार हैमिल्टन ने लिखा है की चाइल्ड के दूतों को गले और हाथ में बेड़ियां पहनाकर औरंगजेब के सामने फर्श पर गिरा कर धूल चटवाया गया और माफी मांगने को कहा गया। उसके बाद समझौते के तहत एक शांति पत्र पर हस्ताक्षर करवा कर उन्हें माफ किया गया। अंग्रेजों के बहुत गिड़गिड़ाने के बाद औरंगजेब ने उन्हें भारत में व्यापार करने की अनुमति दी, लेकिन चाइल्ड को हमेशा हमेशा के लिए देश से चले जाने का आदेश दिया और फिर दोबारा देश में कदम ना रखने की सख्त हिदायत दी।



इतिहास में अंग्रेजों ने इस युद्ध को छुपाने की बहुत कोशिश की है। यहां तक युद्ध के वास्तविकता उसे अलग अंग्रेज इतिहासकारों ने इसमें खुद को जीता हुआ बताया है। लेकिन टीपू सुल्तान और सिराजुद्दौला के जीत कर भारत पर हुकूमत करने वाले वाले अंग्रेज मुगलों की जूतियों के तले कुचले जा चुके हैं, यह इसे उन्होंने कभी नहीं बताया।

Published By
Prakash Chandra
22-03-2021

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