जालौर का युद्ध

जालौर का युद्ध
जालौर का युद्ध

भारत की कहानियों में जब भी हम राजस्थानी राजपूतों के गौरव गाथाओं का जिक्र करते हैं तो उसमें कुछ युद्धों का जिक्र स्वभाविक तौर पर सबसे पहले किया जाता है। राजस्थान के उसी गौरव गाथा में सुमार एक युद्ध का नाम है जालौर का युद्ध। कहानी 1310 ईसवी की है, जब दिल्ली के तुर्की शासक अलाउद्दीन खिलजी की सेना भारत के दक्षिणी छोर पर अपना विजय स्तंभ लगा रही थी। उस दौर में भी राजस्थान के कई राजपूत राज्य ऐसे थे, जो खिलजी का आधिपत्य स्वीकार करने को तैयार नहीं थे और व्यवहार और तलवार दोनों अंदाज में जान हथेली पर लिए खड़े थें अपनी राज्य अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए।

मूख्य बिन्दु -




  • युद्ध - जालौर साम्राज्य बनाम अलाउद्दीन खिलजी

  • वर्ष- 1311 ईस्वी

  • परिणाम- जालौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार



अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने 1310 ईस्वी में जालौर पर अपना आक्रमण शुरू किया, लेकिन कहा जाता है इसके पहले भी कई बार जालौर के किले पर बाहरी आक्रांताओं ने हमला कर उसे जीतने की कोशिश की थी और वह बुरी तरह से नाकामयाब रहे थे।  सन 1291-92 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के पूर्वज जलालुद्दीन खिलजी ने भी जालौर पर हमला किया था। लेकिन वाघेलों की सहायता के साथ जालौर के शासक ने उन्हें लोहे के चने चबवा दिए थे। कहा जाता है कि एक संधि के तहत 1305 ईस्वी में जालौर के शासक ने अलाउद्दीन खिलजी के आधिपत्य को स्वीकार किया था और युद्ध ना चुनने का फैसला किया था।



युद्ध की आखिर क्या थी वजह -

अहंकारी अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा ऐसी बातें फैलाई जाने लगी थी कि हिंदुस्तान का कोई भी हिंदू शासक अब उसे नहीं हरा सकता। यह बात हिंदू स्वराज के आत्म स्वाभिमान को चोट करने वाली थी। जिसके कारण जालौर के राजा कान्हड़ देव ने अपने राज्य पर फिर से अपना अधिकार किया। खिलजी का पताका किलो से उतार दिया गया, हिंदू साम्राज्य का पताका राजपूती आन बान के साथ आसमान में लहराने लगा। जालौर से खिलजी का आधिपत्य समाप्त कर दिया गया। अलाउद्दीन खिलजी के जालौर पर आक्रमण की दूसरी अहम वजह यह भी बताई जाती है कि अलाउद्दीन खिलजी की बेटी का दिल जालौर के कान्हड़ देव के बेटे वीरमदेव पर आ गया था। शादी का प्रस्ताव भिजवाने के बाद वीरमदेव ने तुर्की महिला होने की वजह से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। यह बात दिल्ली की सल्तनत पर राज कर रहे अलाउद्दीन खिलजी को तनिक बर्दाश्त नहीं हुई और उसने जालौर पर आक्रमण करने का मन बना लिया।



आक्रमण के बाद खिलजी की शुरुआती शिकस्त -

1310 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा एक सेना की टुकड़ी को जालौर पर आक्रमण करने के लिए भेजी गई। उसे लगा कि छोटी टुकड़ी आसानी से जालौर को जीत लेगी। लेकिन यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी। रास्ते भर में कई जगह पर राजपूती सेना तुर्की की सेना पर जी भर कर टूटी और भारी रक्तपात मचाया। युद्ध खत्म होने के बाद कान्हड़ देव की कुछ सेना अपने राज्य को लौट आई और कुछ सेना विजय का जश्न मनाने के लिए ही युद्ध मैदान के पास ही रुकी । अमावस्या की पहली रात को एक पर्व के रूप में मनाने का फैसला किया गया। जिसमें सभी योद्धा निहत्थे होकर रात्रि में नदी में स्नान कर पूजा पाठ करने वाले थे। अलाउद्दीन की सेना को यह मौका मिला और उन्होंने निहत्थे योद्धाओं पर हमला कर दिया। जिस कारण युद्ध से बचे हुए सारे योद्धा और राजपूती सैनिक मारे गए।

इसके बाद हारी हुई खिलजी सेना ने पलटकर फिर से जालौर पर आक्रमण कर दिया। 7 दिन तक लगातार कोशिश करते रहे, जालौर के किले की एक ईंट भी ना उखाड़ पाए। मौसम खराब हुआ, भयानक आंधी आई और खिलजी सेना को मजबूरन पीछे हटना पड़ा। लेकिन आंधियों से राजपूती तलवारें कहां डरने वाली थी। आठवें दिन द्वार खुला, 8 सेनापतियों के साथ कान्हड़ देव की सेना ने खिलजी की सेना पर आक्रमण कर दिया। हजारों सर धर से अलग कर दिए गए। खिलजी का सेनापति शम्स खान बंदी बना लिया गया। बाकी बची हुई सेना उल्टे पांव भाग खड़ी हुई।



गलत इतिहास परोसने की साजिश-

अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी तुर्किश इतिहासकारों ने इस घटना को एक अलग तरीके से पेश किया है। उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की रखैल गुल बिहिस्थ का जिक्र किया है और यह बताया है कि गुल बिहिस्थ के नेतृत्व में सेना उस वक्त जालौर पर आक्रमण करने गई थी। वह बेहद कमजोर शासिका थी और बाद में उसका पुत्र भी बेहद कमजोर शासक हुआ। इस वजह से खिलजी की सेना हार गई। करारी हार को छुपाने के लिए इतिहास का यह पन्ना एक बहाना मात्र लगता है, क्योंकि समकालीन इतिहास में गुल बिहिस्थ का कोई और जिक्र कहीं नहीं मिलता।



निराश खिलजी का पुनः आक्रमण-

अलाउद्दीन खिलजी ने फिर से आक्रमण करने का फैसला किया और इस बार अपने सर्वश्रेष्ठ सेनापति मलिक कमाल अल गुर्ग को कान्हड़ देव का साम्राज्य हथियाने के लिए भेजा। दिल्ली से चली विशाल सेना को अपनी तरफ बढ़ता हुआ देख कान्हड़ देव ने एक नई रणनीति बनाई। अपने दो महत्वपूर्ण सेनापति मलादेव को बदी से और वीरमदेव को भद्रजून से दिल्ली की सेना पर आक्रमण करने के लिए भेजा। दोनों ने दिल्ली से आ रही खिलजी की विशाल सेना को जमकर हानि पहुंचाई लेकिन रोकने के बजाए रफ्तार धीमी करने में ही सफल हो सकी, यानी दिल्ली से जालौर की तरफ बढ़ रही विशाल सेना बेशक धीमी गति से लेकिन लगातार जालौर की तरफ बढ़ती रही।

कान्हड़ दे प्रबंध द्वारा रचित पदमनाभन के अनुसार गुर्ग की सेना जब जालौर के समीप पहुंची, तब कान्हड़ देव ने मलादेव को एक बार फिर से सेना पर टूट पड़ने का आदेश दिया। पहली बार के आक्रमण में ही गुर्ग सेना और दूसरी तरफ से लड़ रही मलिक निजामुद्दीन की सेना पीछे धकेल दी गई। एक बार फिर से जालौर सुरक्षित हो चला, लेकिन कहा जाता है ना, राजपूत जब भी हारे हैं अपने और अपनों की गद्दारी की वजह से हारे हैं।



बीका की गद्दारी -

इतिहासकार बताते हैं विजय सुनिश्चित दिखाई दे रही थी। तभी दहिया राजपूत बीका नाम के राजद्रोही ने राज्य का सिरमौर बनने के लालच से मलिक कमाल अल दिन गुर्ग को किले में प्रवेश का गुप्त रास्ता बता दिया। योजनाएं एक बार फिर से धराशाई हो गई। बीका की पत्नी हीरादेवी को जब इस बात का पता चला तो उसने इस गद्दारी का बदला लेते हुए अपने पति बीका की हत्या कर दी और फौरन जाकर कान्हड़ देव को इस बात की सूचना दी। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। खिलजी की सीना गुप्त रास्ते से प्रवेश कर चुकी थी। और कोई रास्ता शेष नहीं था। राजपूती सेना पूरे अस्त्र-शस्त्र के साथ अपनी आखिरी लड़ाई लड़ने को तैयार थी और महिलाएं जौहर की आग के सामने उन्हें अंतिम विदा देने के लिए तिलक लगा रही थी। जालौर की सेना, जालौर के सामंत, राजा कान्हड़ देव, युवराज वीरमदेव समेत पूरी प्रजा अपनी खून की आखिरी बूंद तक खिलजी की सेना से लड़ी और उनका मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन अपने जीते जी उन्होंने दुश्मनों को अपने राज्य की मिट्टी पर अधिकार नहीं करने दिया, घुटने नहीं टेके। भारत की कहानियों में जालौर की कहानी का जिक्र बड़े ही गर्व और शान के साथ किया जाता है। इस तरह से जालौर का युद्ध खत्म हुआ। खिलजी की सेना ने जालौर के किले पर कब्जा किया।

Published By
Prakash Chandra
07-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. जालौर का युद्ध कब हुआ था ?

1311 ईस्वी


2. जालौर का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

जालौर साम्राज्य और अलाउद्दीन खिलजी


3. जालौर के युद्ध का परिणाम ?

जालौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार


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