हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध

भारत के वीर योद्धाओं में अगर किसी क्षत्रिय का नाम आता है तो उसमे महान योद्धा महाराणा प्रताप का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है । कहानी भारत की के इस अंक में हम उसी योद्धा की वीरगाथा के बारे में जानेंगे । खुद को अपराजित मानने वाले मुगल सम्राट बादशाह अकबर की विशाल सेना को धूल चटा देने वाले इस वीर योद्धा को आज भी हिंदुस्तान की मिट्टी नमन करती है । उस युद्ध की कहानी, जिसने राणा प्रताप को महाराणा प्रताप बना दिया, उस युद्ध का नाम है - हल्दी घाटी का युद्घ ।



बात सन् 1576 की है । मुगल सल्तनत कूटनीतियों के दम पर भारत भूमि पर साम्राज्य विस्तार कर रहा था। बादशाह अकबर की कुछ दिखाऊ नीतियां छोटे शाषकों को विनम्रता या विवशता पूर्वक अपने राज्य के अधीन करने में लगी हुई थी । राजस्थान के कई राजपूत भी विशाल मुग़लों की सेना के आगे तलवारे रख चुके थे । उस दौर में भी देश की मिट्टी ने कुछ ऐसे सपूत पैदा किये थे, जो इसके गौरव रक्षा की खातिर जान हथेली पर रखते थे । मेवाड़ उन्ही में से एक राज्य था । मेवाड़ के राजा राणा प्रताप ने अकबर के अधीनता प्रस्ताव को ठुकरा दिया । मुगलों के अहंकार के आगे की गयी ऐसी हिम्मत पर बौखलाए अकबर ने मेवाड़ पर हमला करने का फैसला किया। सेनायें कूच कर गयी।



इतिहासकार बताते हैं कि अकबर के पास मेवाड़ की चार गुणी बड़ी सेना थी। कुछ लोगो का कहना है कि महाराणा प्रताप की 5000 हजार की सेना के सामने अकबर की 20000 की सेना थी, तो कुछ का मानना है कि यह आंकड़ा 20 हजार बनाम 80 हजार का था। जो भी सत्य हो,  इतना तो साफ है कि युद्धक सेनाओं का अनुपात 1:4 ही था । तकनीक और युद्ध कौशल की बुनियाद में अकबर यह युद्ध जीत तो गया लेकिन इस सच को आज भी कई विद्वान खारिज कर देते है। महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों की ईट से ईट बजा दी। 



हल्दीघाटी का युद्ध जिस जगह पर लड़ा गया वह दो पहाड़ों के बीच एक घाटी है। यहां की मिट्टी का रंग हल्दी के जैसा पीला है। इसीलिए इस जगह को हल्दीघाटी कहा जाता है । असल मे युद्ध वहाँ नहीं हुआ । महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई जहाँ हुई उस जगह को खमनौर कहा जाता है। लेकिन कहानी की शुरुआत हल्दी घाटी से ही हुई, इसके हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से ही जानते है। दरअसल महाराणा प्रताप की ये योजना थी कि हल्दी घाटी के संकड़े रास्ते में अकबर को विशाल सेना एक बार में आ नहीं पाएगी. और इस तरह उन्हें एक एक कर मारा जाएगा। लेकिन अकबर ने सेनापति के तौर पर मान सिंह को भेजा, जिसे राज्य की भगौलिक परिस्थियों का पूर्व से अंदाजा था। युद्ध के दिन अपने कूटनीति और सैन्य बल के साथ दोनो सेनाए आमने-सामने थी। अकबर की सेना चार गुणी बड़ी और मजबूत थी, जबकि प्रताप की सेना इरादों और युद्ध कौशल से परिपूर्ण ।



युद्ध की शुरू हुआ। राजपूती शमशीरों के मुग़ल अभिमानों के सर उड़ाने शुरू कर दिये। कुछ समय तक मेवाड़ के वीर धुरंधरों ने अकबर की सेना को पानी पिलाये रखा । कहा जाता है कि महाराणा प्रताप के सैनिक काल बनकर बरसे और अकबर की सेना में आतंक की तरह फैल गये। लेकिन अकबर की सेना में हाथियों का भी समूह था और ऊंट के ऊपर तोपें तैनात थी। कुछ समय बीतने के बाद अकबर की सेना हावी होने लगी। उनके बारूदी अस्त्रों के आगे तलवारें कम पड़ने लगी। महाराणा प्रताप युद्ध मे लड़ते हुए जख्मी हो गए। इनका घोड़ा चेतक भी अंततोगत्वा उनका साथ छोड़ गया। मुगल सेना घायल प्रताप पर केन्द्रित थी और लगातार हमले का रही थी। प्रताप के जान की सुरक्षा के लिए उनके सहयोगी झाला मान ने अपनी जान की बाजी लगा दी और वीरगति को प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि जब मुग़ल की सेना प्रताप को उसके मुकुट से पहचानकर उसपर हमलें कर रही थी तब झाला मान ने वो मुकुट प्रताप से लेकर खुद धारण कर लिया था। युद्ध में वह मारा गया और महाराणा प्रताप सुरक्षित निकाल लिए गए। 



अकबर को दूसरे दिन का भी युद्द लड़ना पड़ा, मेवाड़ को हासिल करने के लिय मुगलों को भारी मात्रा में सेनाओं की कुर्बानी देनी पड़ी। हालांकि महाराणा प्रताप के पकड़े जाने पर इतिहासकारों में मतभेद व्याप्त है, कहा जाता महाराणा प्रताप उसके बाद भी कई क्षेत्रों में राजपुती ध्वज के तले राज्य चलाते रहें। लेकिन इतना तो साफ है कि हल्दीघाटी का युद्ध मुग़लों के जीत के अहंकार पर एक करारा प्रहार था, जिसने उसे राजपूति वैभव का पाठ पढ़ा दिया ।

Published By
Prakash Chandra
23-02-2021

Frequently Asked Questions:-

1. हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था ?

सन् 1576 ईस्वी


2. हल्दीघाटी का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य


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