कहानी खजुराहो की

कहानी खजुराहो की
कहानी खजुराहो की

खजुराहो की कहानी अपने आप में एक दिलचस्प कहानी है, खजुराहो उत्तर भारत में छतरपुर ज़िले से ५० किलो मीटर की दूरी पर है यह आज के समय में हिन्दू कलाकृति की बेमिशाल छाप है खजुराहो मंदिर को देखने के लिए विदेशो से यहाँ आते है, इस मंदिर की खास वजह यह की मूर्तियाँ है जो की नगारा शैली में भी हुयी है, खजुराहो मंदिर की शुरुआत ९५० से १०५० ईस्वी के मध्य चंदेल वंश के समय में हुयी, कहते है १२ शताब्दी तक यहाँ ८० मंदिर २० वर्ग किलोमीटर तक बने हुए थे, आज के समय में २५ मंदिर ६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जो की उत्तर भारत की शान को शोभायमान कर रहे है |

खजुराहो मंदिर की शुरुआत हिन्दू और जैन धर्म के एकता का प्रतीक है, जो की विश्वास और सम्मान को बढ़ता है, खजुराहो मंदिर शाशन के शक्ति और पराक्रम का एक उज्ज्वलित विचार है, जो की बाद में बुंदेलखंड राज्य के नाम से चर्चित हुआ, इन मंदिरो का निर्माण राजा यशोवर्मन और राजा धांगा के समय में हुआ, यह आज के समय में महोबा से लगभग ५७ किलोमीटर की दूरी पर है, जो की चंदेल वंश की राजधानी थी , उनके राज्य को जिझोति के नाम से विख्यात है आज के समय में कुछ नाम विस्मृत हो चुके है, लेकिन ये आज भी इस भारत की शोभा को शोभायमान कर रहे है |

पारसी इतिहासकार अबू रिहान के अनुसार महमूद गजनी ने कालिंजर के किले के साथ यहाँ भी आक्रमण की कोशिश की जो की असफल रही, यहाँ के हिन्दू राजाओ ने फिरौती के तौर पर महमूद गजनी को आक्रमण न करने और यहाँ से जाने के लिए कहा और यहाँ शांति कायम की पारसी इतिहासकार के मुताबिक खजुराहो जाजाहुति की राजधानी थी |

१२वी शताब्दी तक सब कुछ ठीक था लेकिन १३वी शताब्दी में कुछ लुटेरे भारत की धरती पर नजर गड़ाए हुए थे, दिल्ली सल्तनत के तख़्त हासिल करने के बाद मुस्लिम शाशक कुतुबुद्दीन ऐबक ने चंदेल वंश पर आक्रमण किया और अपने कब्जे में कर लिया, मोरक्को दार्शनिक ने १३वी शताब्दी में इन मंदिरो का भ्रमण किया और कजरा कह कर बुलाया बहुत से मुस्लिम शासको ने १३वी से १८वी शताब्दी तक यहाँ कई बार आक्रमण किये |

खजुराहो मंदिर में यहाँ की खासियत यहाँ की नगारा शैली के साथ साथ कंदरिया महादेव मंदिर है, कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण राजा विद्याधर के समय में हुयी, राजा विद्याधर एक महान और शक्तिशाली राजा थे जिन्होंने महमूद गजनी को परास्त कर उसे वापिस गजनी को १०१९ ईस्वी जाने के लिए मजबूर कर दिया, और महमूद गजनी ने १०२२ ईस्वी के समय में कालिंजर के किले को जितने के लिए राजा विद्याधर से दोबारा युद्ध हुआ जिसका परिणाम महमूद गजनी जीत तो न सका लेकिन कुछ उपहार और लेन देन के साथ वापिस जाना पड़ा, और राजा विद्याधर ने इस मंदिर का निर्माण शुरू कर उसे अपने परिवार को जीत का प्रतीक स्वरुप निर्माण कराया |

इस मंदिर के के चारो तरफ नगारा शैली में मूर्तियों का निर्माण है जो की अलग अलग योग की मुद्रा को दर्शाता है, जिसका संकेत सिर्फ महादेव की आराधना ही करना नहीं बल्कि महादेव की आराधना से पहले अपने मन को स्वच्छ करना है, यहाँ महादेव की मूर्ति की लम्बाई १०२ फ़ीट (३१ मीटर )है, कहते है यहाँ हर मार्च और अप्रैल महीने में बहुत से शिव भक्त आते है और बहुत से साधु जो यहाँ पर महादेव का ध्यान करते है, इन मूर्तियों के निर्माण में यही संकेत करता है की योग के माध्यम से अपने मन को ईश्वर को समर्पित कर देना, आज के समय में कंदरिया महादेव मंदिर अपने आप में भव्य शोभायमान है |

कंदरिया महादेव मंदिर उत्तर भारत में आज एक पर्यटक स्थल है, जो उनेस्को (UNESCO) United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization विश्व विरासत में अपना नाम एक शांति के प्रतीक के रूप में विख्यात है |

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