कहानी ओरछा की

कहानी ओरछा की
कहानी ओरछा की

यह कहानी आज से लगभग ५०० साल पहले शुरू होती है ये उस किले की कहानी है जो महारानी लक्ष्मीबाई के गढ जो आज के दौर के झाँसी जिले से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है इस किले का स्वप्न बुंदेला शाशक रूद्र प्रताप ने देखा था, वो सन १५०१ और १५३१ के बीच शिकार के दौरान इस जगह पर आये और उन्होंने अपनी राजधानी कुंदर गढ से ओरछा आने का निर्णय लिया, उन्होंने यह जगह अत्यंत सुरक्षित महसूस हुयी | कहते है उनके ओरछा राजधानी आने से पहले एक गाय को शेर के पंजड़ो से बचाने के दौरान वे स्वर्गवासी हो गए, उनके इस स्वप्न को उनके जाने के पश्चात उनके पुत्र भारती चंद ने १५३१ से १५५४ तक कराया फिर उसके पश्चात मधुकर शाह जिनका जिनका राज्यकाल १५५४ से १५९२ तक रहा उन्होंने इस स्वप्न को साकार कर के ओरछा राजधानी आने का निर्णय किया |

कुछ समय पश्चात ही बुंदेलों के ओरछा राजधानी आते ही मुग़ल शाशक अकबर ने आक्रमण कर दिया शुरुआत में बुंदेलों ने मुगलो को पछाड़ कर रख दिया पर बुंदेलों की सेना ज्यादा देर तक मुकाबला न कर स्की आखिर मधुकर शाह को मुगलो के साथ संधि करनी पड़ी |

ओरछा में चतर्भुज मंदिर का स्थापत्य मधुकर शाह ने १६वी शताब्दी में कराया जो आज रामराजा मंदिर के नाम से विख्यात है शुरुआत में यह मंदिर शाह की पत्नी का महल था जिनका नाम इतिहास के पन्नो में महारानी गणेश कँवर था शाह की पत्नी महारानी गणेश कँवर सरयू नदी के किनारे भगवान राम की भक्ति करती थी, कहते है भगवान राम की कृपा से महारानी गणेश कँवर को भगवान राम के साथ ओरछा आना है |

महारानी के साथ शर्त यह थी कि महारानी को भगवान राम की मूर्ति के साथ पैदल चल कर आना है एक बार मूर्ति स्थापना के पश्चात उसको एक स्थान से दूसरे स्थान नई ले जाया जा सकता है जब वो ओरछा पहुंची तो तब तक मंदिर का निर्माण पूर्ण नहीं हुआ था तो उन्होंने इन्हे अपने महल में स्थापित कर दिया उसके बाद मंदिर निर्माण के पूरा होने के बाद उन्होंने भगवान की मूर्ति को ले जाने का प्रयास किया परन्तु सफल नहीं हुआ और रानीमहल मंदिर में परिवर्तित हो गया |

मंदिर निर्माण पूर्ण होने के पश्चात उन्होंने भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की जो चतर्भुज रूप में है, रामराजा मंदिर बुंदेलखंड के गौरव को बढ़ाता है

तत्पश्चात मधुकर शाह के पुत्र राम शाह ने शाशन किया उनके पश्चात जहांगीर ने शाशन किया १६०५ से १६२७ उन्होंने राम शाह को किले से निकल दिया और वह का शाशन बीर सिंह को दिया गया |

मुग़ल दरबार में बीर सिंह एक महान शाशक था जिसने तदनन्तर बहुत से मंदिरो का निर्माण कराया जिनमे से लक्ष्मीनारायण मंदिर उनमे से एक है उसके बाद दतिया महल और बहुत से धर्मशाला और हौज़ का निर्माण कराया |

वास्तव में बीर सिंह का राज्य ओरछा के इतिहास में सुनहरे पन्नो में अंकित है और आज की २१वी शताब्दी में रामराजा मंदिर के नाम से पूरे भारत में विख्यात है

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