गुरु का महत्व

गुरु का महत्व
गुरु का महत्व

आज भारत की कहानी में गुरु के महत्व को जानते है कि किस तरह एक गुरु ने कितने ही राजाओ को महान शासक बनाया और भारत को विश्व गुरु | ये कहानी किसी एक गुरु के बारे में नहीं अपितु इस भारत के अस्तित्व को विश्व में अपनी पहचान बनाने में मदद की | गुरु शब्द का अर्थ भारी शब्द से है उसका अर्थ है जो ज्ञान से भरा हुआ हो, तेज से ओत प्रोत हो, जिसके संपर्क से इस जगत का कल्याण हो | गुरु शब्द बृहस्पति से उत्पन्न है, बृहस्पति अपने सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जिसका अर्थ बड़ा होना है |

हमारे इस भारत के इतिहास के सुनहरे पन्नो को सजाने में गुरु की अहम् भूमिका रही है, गुरु ही तो है एक राजा के निर्णय लेने से पहले गुरु से संवाद आवयशक था, उन्ही में से एक कहानी गुरु के रूप में चाणक्य की है, जिसे इतिहास विष्णुगुप्त के रूप में भी जानता है, चाणक्य ही तो थे जिन्हे उस गडरिये में इस भारत देश का भावी सम्राट दिखाई दिया, उन्होंने उनकी माता से कहा अगर ये तेरे पास रहेगा तो ज्यादा से ज्यादा 100-500 भेड़ो का रखवाला बनेगा, इसे मुझे समर्पित कर मै इसे देश का चक्रवर्ती सम्राट बनाऊगा |



आज से कुछ साल पहले हमारे देश के आचार्यो को पता होता था की आगे जाकर ये क्या बनेगा, इसकी कला में रूचि है तो कलाकार बनेगा या संगीत में रूचि है तो संगीतकार बनेगा, गुरु ने ही तो समय का सदुपयोग करना सिखाया, और शिष्य को गुरु के रूप में श्रद्धा करना सिखाया, गुरु शब्द बड़ा विचित्र है दो शब्दों के साथ गु और रु से मिलकर बना है, अपनी आंखे बंद करने से हमें अंधकार नजर आता है, गुरु का अर्थ अंधकार से प्रकाश की और ले जाना है |

गुरु की कृपा से हमें ज्ञान प्राप्त होता है, हमें चक्षु को प्रदान करते है और हमें मुक्त कर देते है जिसको पाकर कुछ और पाने की अभीप्सा नहीं रह जाती, गुरु का संवाद ज्ञान प्रदान करने की महिमा हमारी महाभारत के मैदान में देखने को मिलता है जब महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र को ज्ञान प्रकाश के नेत्र देना चाहा उनके सैनिको ने उन्हें बताया की वे बहुत आवेशित है और कुछ देना चाहते है वैसे गुरु हमेशा देते ही तो है उन्हें लेना कब आता है, तो जब महर्षि ने उन्हें ज्ञान देना चाहा तो उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया गुप्तचरों ने राजा को बताया तो की गुरु आपकी और कल्याण करने आये है और उन्होंने संजय को दिव्या दृष्टि प्रदान करने को कहा |

गुरु ही तो है जिसकी कृपा से बड़े बड़े राजाओ ने युद्ध के मैदान में ज्ञान को प्राप्त कर लिया ऐसे ही एक कहानी जिसमे राजा खट्वांग को युद्ध के मैदान में ज्ञान प्रदान किया जब गुरु को लगा की अब इसकी जान जाने में सिर्फ २.३० घडी शेष रह गयी है, १ घडी में २४ मिनट, २.३० घडी में ६० मिनट लगभग १ घंटे में और वो युद्ध के मैदान में सैनिको की लाश के ऊपर से निकल पड़े उनके वस्त्रो में खून लग गया, और जब राजा खट्वांग ने गुरु को आते हुए देखा तो उनसे रहा न गया और गुरु ने कहा की तेरे पास समय कम है, और मै तुझे ज्ञान देने आया हू तू ज्ञान ले जिसका तू अधिकार है

वैसे गुरु का ज्ञान उसी को मिल पाता है जो उसका पात्र है यह गुरु का अर्थ शिक्षक से ही नहीं है क्युकी वो तो शिक्षा प्रदान करने का अधिकारी है उसके पहले तो मानव की तो पहली गुरु उसकी माता है जो उसको दिनचर्या के सारे काम सिखाती है, जो इस दुनिया के तौर तरीके सिखाती है, ये शिष्य की गुरु के प्रति विश्वास की कहानी है जो हमें इस जीवन से परे पहुँचाती है

इस भारत के इतिहास में तो यूनान से आया सिकंदर की भी कहानी है जब वो वह से चला तो वहां किसी ने कहा भारत जा रहे हो वहाँ से हो सके तो गुरु को ले आना और जब वो जंगल के रास्ते भारत पंहुचा तो एक झोपड़ी में गुरु के पास पंहुचा और आराम करने के लिए बिस्तर माँगा उसने गुरु से कहा की मै बहुत दूर से आया हू और विश्व विजय करने आया हू और फिर विश्व विजय करने के बाद मै आराम करूँगा तो गुरु ने कहा मै तो बिना विश्व जीते ही आराम कर रहा हू एक मेरा बिस्तर लगा हुआ है और एक तुम्हारे जैसे पथिक के लिए जो रास्ते भटक जाते है आओ आराम कर लो

सिकंदर के सामने एक निडर गुरु थे सिकंदर ने शायद अपने डर से बहुत सी जंग जीत ली लेकिन अपने सामने गुरु को देखने के बाद जिसने इस ब्रम्हा को जीता कहते है सिकंदर फिर वही से अपने देश वापिस लौट गया शायद वो यहाँ से गुरु तो न ले जा सका लेकिन ज्ञान को जरूर पा लिया.

केवलं ज्ञान मूर्ति ब्रह्मानंद परम सुखम |

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