कहानी दिल्ली की

कहानी दिल्ली की
कहानी दिल्ली की

आज दिल्ली की कहानी में जानेंगे कि, किस तरह दिल्ली के सिंघासन ने भारत के इतिहास में अहम् भूमिका निभाई। एक तरफ दिल्ली का तख़्त पाने के लिए देश में ही कितने युद्ध हुए और उनसे भी ज्यादा विदेशी युद्ध जिन्होंने अपनी नज़रें, इस सोने की चिड़िया पर गड़ा कर रखी थीं। यही वो भारत का इतिहास है जहाँ से सरहिंद के ताज की शुरुआत होती है। दिल्ली पर कब्ज़े का अर्थ पूरे भारतवर्ष पर कब्ज़ा, फिर उसके बाद किसी भी दुश्मन की नज़र दिल्ली के सिंघासन पर न होती |

दिल्ली भारतीय इतिहास का अभिन्न अंग है। दिल्ली की हवाओं में इस देश का गौरवशाली इतिहास छिपा हुआ है । जिसकी साक्षी यही दिल्ली की सरजमीं हो सकती है, जो अपने आप में इस देश के वीरों के खून से अमर है। दिल्ली की शुरुआत महाभारत काल से होती हैं जब पांडवों को दुर्योधन ने वनवास के पश्चात भी सुई की नोक के बराबर राज्य देने से मना कर दिया था। तब पांडवों ने खांडवप्रस्थ लेने का प्रस्ताव रखा। जब वे वहाँ पहुंचे तो एक रेगिस्तान को देख कर भगवान कृष्णा के कहने पर भगवान इन्द्र ने स्वयं इस नगरी का निर्माण कराया और तब से इसका नाम इंद्रप्रस्थ पड़ गया |

इस अद्भुत देवनगरी दिल्ली की नींव राजा ढीलू ने 800 ईसा पूर्व में रखी थी। यहाँ कई राजाओं ने राज किया, परंतु दिल्ली को उसकी पहचान यहाँ के चाहमाना वंश के राजाओं ने दिलायी। दिल्ली पर चाहमाना वंश के राजाओं ने अधिकार किया, इन्ही राजाओं में से एक पृथ्वीराज चौहान थे। जिनका साम्राज्य पूरे भारतवर्ष में था। सन 1180 में लाल कोट पर फतेह हासिल करने के बाद इसका नाम राय पिथोरा किया, जो आज भी राय पिथोरा के किले के नाम से मशहूर है | सन 1192 दिल्ली सल्तनत के लिए इतिहास में एक नया मोड़ लेकर आया, जब मुहम्मद गौरी, जो की राजा पृथ्वीराज से युद्ध के मैदान में 17 बार हार का सामना कर चुका था, लेकिन इस बार राजा जयचंद जो कन्नौज के राजा थे उन्होंने मुहम्म्द गौरी को पृथ्वीराज के विरुद्ध युद्ध करने का प्रस्ताव भेजा और युद्ध में सहायता करने का वचन दिया। एक वर्ष पूर्व ही मुहम्मद गौरी हार का सामना करने के बाद अपने वतन वापिस लौटा था |

इस बार राजा जयचंद के साथ से मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज पर विजय प्राप्त करने में कामयाब हो जाता है। जिसका परिणाम भारत देश को झेलना पड़ता है। राजा जयचंद ने सोचा की गौरी साथ देने के बाद वापिस लौट जायेगा लेकिन गौरी ने कन्नौज पर भी फतेह हासिल की, और कई राज्य जैसे पंजाब, अज़मेर और मेरठ को कब्जे में कर लिया। मुहम्मद गौरी ने विद्रोह करने वालों का दमन किया और गौरी ने कुछ वर्षों तक भारत के साम्राज्य में अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। 15 मार्च 1206 को मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात, इसकी सेना में शामिल क़ुतुबुद्दीन ऐबक, जिसने मोहम्मद गौरी की सारे युद्धों को जीतने में सहायता की, उसका सन 1206 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान के रूप में राज्याभिषेक हुआ |

क़ुतुबुद्दीन ऐबक, गौरी की सेना में ख़रीदा हुआ गुलाम था। कुशल सैन्य क्षमता के कारण ही वह दिल्ली का सुल्तान बना, और ग़ुलाम वंश की स्थापना की। और यहीं से ग़ुलाम वंश की शरुआत होती है। क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने क़ुतुब मीनार की नींव रखी परंतु अपने जीवन काल में उसे पूरा नहीं करवा सका। आज जहाँ क़ुतुब मीनार है, उस समय वहाँ 27 जैन मंदिर थे। उन सबको ध्वस्त करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया। आज भी वहाँ पर हिन्दू धर्म के मंदिरों के अवशेष देखने को मिलते हैं। जो उस समय क़ुतुबुद्दीन ने ध्वस्त करवा दिए थे। आज भी वहाँ पर राजा कुमार गुप्त (गुप्त वंश) के द्वारा स्थापित लौह स्तम्भ है, जिसकी पताका पर स्वयं गरुण देव विराजमान हैं |

सन 1210 ईस्वी में, लाहौर में चौगान खेलते वक़्त घोड़े से नीचे गिर पर, वही तुरंत क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो जाती है। क़ुतुबुद्दीन की मृत्यु हो जाने से क़ुतुबुद्दीन के पुत्र आराम शाह को दिल्ली का सुल्तान बनाया गया। परंतु सन 1211 ईस्वी में क़ुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम और दामाद इल्तुतमिश जो उस समय बदायूं शहर का गवर्नर था, उसने दिल्ली पर आक्रमण करके आराम शाह को तख़्त से हटा दिया और दिल्ली का सुल्तान बन गया। इल्तुतमिश की मृत्यु उस समय हो जाती है जब वह बामयान पर आक्रमण की तैयारी करता है और 20 अप्रैल को वापिस आ जाता है। यह चढाई असफल रहती है। 30 अप्रैल 1236 को उसकी मृत्यु हो जाती है | उसके पश्चात उसके पुत्र रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को दिल्ली का सुल्तान बनाया जाता है, उनका शाशन काल केवल 7 माह तक ही रह पता है |

रजिया सुल्तान, इल्तुतमिश और तुरकन खातून (क़ुतुबुद्दीन ऐबक की बेटी) की बड़ी बेटी थी | उन्होंने अपने भाई रुकनुद्दीन फ़िरोज़ को तख़्त से हटाकर स्वयं राज किया। सन 1238 और 1239 में लाहौर के सुल्तान मलिक इज़्ज़ुद्दीन कबीर खान अयाज़ ने रजिया के खिलाफ विद्रोह किया जिसका परिणाम सुल्तान को हार का सामना करना पड़ा और रजिया ने लाहौर से हर साल कुछ रूपए इक्ता के रूप में इख्तियारुद्दीन को देने के लिए कहा। यहाँ रजिया के खिलाफ इख्तियारुद्दीन अल्तुनिआ जो की एक खास दिल्ली सल्तनत का गुलाम था | जब रजिया लाहौर मोर्चे पर थी तब इख्तियारुद्दीन ने तबारहिंद में रजिया के खिलाफ विद्रोह कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप रजिया ने उनका दमन करने के लिए उन पर आक्रमण किया लेकिन इस बार रजिया का साथ किस्मत ने नहीं दिया, इस बार रजिया को हार का सामना करना पड़ा और उसे जेल में दाल दिया गया |

सितम्बर 1240 में रजिया और इख्तियारुद्दीन का निकाह होता है। लेकिन कुछ समय बाद सुल्तान मुइज़ुद्दीन बहराम ने इन पर आक्रमण कर दिया, जिसमे रजिया को हार का सामना करना पड़ा और 14 अक्टूबर 1240 को वह, कैथल की संधि करने के लिए मजबूर हो जाते हैं, और 15 अक्टूबर 1540 को रजिया की मृत्यु हो जाती है। इस तरह रजिया का शाशन काल 1236 से 1240 तक था, इसके बाद गुलाम वंश का समय 1290 तक रहा। जिसने 11 सुल्तान दिए।

मुइज़ुद्दीन कैकाबाद और उसके पुत्र शम्सुद्दीन कायुमर्स की मृत्यु क्रमशः 3 फरवरी 1290 और 13 जून 1290 को जलालुद्दीन फ़िरोज़ खलजी ने आक्रमण करने के बाद कर दी, उसके पश्चात यही से गुलाम वंश का समय समाप्त होता है, और खिलज़ी वंश का समय शुरू होता है, जो की खिलज़ी वंश की नींव रखता है | खिलजी वंश का शाशनकाल 1320 ईस्वी तक ही रहा, अल्लाउद्दीन खिलज़ी जलालुद्दीन का भतीजा और दामाद था दक्कन से जीतने के बाद वह दिल्ली वापस आता तो है लेकिन जल्लालुद्दीन की हत्या कर देता है और स्वयं को दिल्ली का सुल्तान बना देता है।

अल्लाउद्दीन की फौज में से पहली बार मालिक काफूर की सेना ने वारंगल पर हमला करके कोहिनूर हीरे को हासिल कर लिया था। मालिक काफूर अल्लाउद्दीन का बेहद खास था। जिस समय 1310 ईस्वी में आक्रमण किया तब वारंगल में काकतिया सभ्यता का शाशन था। सन 1316 में अल्लाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात सन 1320 में खुसरो खान जो की हिन्दू थे, अल्लाउद्दीन की प्रताड़ना से बचने के लिए उन्होंने इस्लाम कुबूल किया था। सन 1320 में दिल्ली के कुलीनतंत्र में शामिल लोगों ने ग़ाज़ी मलिक को न्योता भेजा।

ग़ाज़ी मालिक ने दिल्ली पर आक्रमण करके खुसरो खान को मार दिया और खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया। सत्ता में आने के पश्चात ग़ाज़ी मालिक ने अपना नाम गयासुद्दीन तुग़लक़ रखा, और यहीं से तुगलक वंश का शाशनकाल आरम्भ होता है। तुगलक वंश का शाशनकाल दिल्ली सल्तनत पर सन 1320 से सन 1413 ईस्वी तक था। तुगलक वंश के अंतिम शाशक नसीरुद्दीन महमूद शाह तुग़लक़ थे, नसीरुद्दीन के शाशन में तैमूर लांग ने 1398 ईस्वी में आक्रमण किया और इस तरह से तुगलक वंश का अंत हो गया। नसीरुद्दीन तुगलक आमिर मल्लू इक़बाल के प्रभाव में थे। आमिर मल्लू इक़बाल ने पंजाब में आक्रमण किया जिससे उसे हार का सामना करना पड़ा। यहाँ से नसीरुद्दीन तुगलक, दौलत खान लोदी के साथ वापस दिल्ली आया और उसकी मदद से दिल्ली को स्थापित किया। नसीरुद्दीन तुगलक की फरवरी 1413 में मृत्यु हो जाती है और दौलत खान अगले 1 वर्ष तक सल्तनत पर राज करता है।

सन 1414 में ख़िज़्र खान ने दिल्ली पर आक्रमण करके सल्तनत पर अधिकार किया और सैय्यद वंश का अधिपत्य किया। सैय्यद वंश का शाशनकाल 1451 तक रहता है जब सैय्यद वंश का आखिर सुल्तान अल्लाउद्दीन जिसका दूसरा नाम आलम शाह था उसने सिंघासन त्याग दिया और बदायूं चला गया। 19 अप्रैल 1451 को बहलोल लोदी ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया और यहाँ से लोदी वंश की कहानी आरम्भ होती है।

बहलोल लोदी, मालिक सुल्तान शाह लोदी (पंजाब में सरहिंद का शाशक) का भतीजा था। लोदी वंश का शाशन काल सन 1481 से 1526 तक रहा। लोदी वंश के आखिरी सुल्तान इब्राहम लोदी था जिसका शाशन काल सन 1517 से सन 1526 तक रहा। सन 1526 ईस्वी में बाबर ने दिल्ली पर आक्रमण किया और इस आक्रमण ने भारतवर्ष के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। यहाँ से भारत में लोदी वंश का अंत होता है और मुग़ल सल्तनत का आरम्भ।

मुग़ल सल्तनत का शाशन सन 1526 से सन 1540 तक रहा। इसके पश्चात सन 1540 से सन 1555 सूर वंश का शाशन रहा सूर वंश की स्थापना शेरशाह सूरी ने की थी। शेरशाह की मृत्यु कालिंजर के किले में हुई थी जो आज बुंदेलखंड में स्थित है। सन 1556 ईस्वी में राजा हेमू का शाशन रहा वो एक शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। लेकिन भारत के भाग्य को कुछ और मंजूर था। हेमू की पानीपत के मैदान में सन 1556 में बाबर के द्वारा मृत्यु होने से ,मुग़ल पूरी तरह से भारतवर्ष पर प्रभावी हो गए। मुग़ल सल्तनत दिल्ली के लिए कला की दृष्टि से उतना ही सुन्दर था, जिसमे बाबर के पुत्र हुमांयूँ ने शाशन किया। मुग़ल सल्तनत के शक्तिशाली शाशक अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शाहजहाँ ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली की और शाहजहानाबाद का निर्माण कराया, शाहजहाँ के काल में बहुत से खूबसूरत और नायाब कलाकारी देखने को मिलती है।

मुग़ल सल्तनत का शाशन सन 1556 से सन 1757 तक रहा। उसके बाद मुग़ल शक्ति कमजोर हो गयी। उसके पश्चात मराठाओं ने दिल्ली पर राज किया। सन 1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया और अंतिम मुग़ल शाशक बहादुर शाह जफ़र को सिर्फ सिंघासन पर आसीन किया। सन 1857 के भारत वर्ष में विद्रोह ने बहादुर शाह जफ़र को बादशाह घोसित कर दिया लेकिन कुछ समय पश्चात अंग्रेजी सेना ने फिर से अपने अधिकार में ले लिया। और यहाँ से अंग्रेजों ने पूरे भारतवर्ष पर सन 1947 तक राज किया।

ऐसा ही कुछ अनसुना और रहस्यमयी इतिहास रहा है दिल्ली का। जिस पर भारत के वीरों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया और भारत के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कर दिया। हम ऐसे ही अपने इतिहास के वीरों को नमन करते हैं। जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपनी अहम् भूमिका निभाई।

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