कहानी गोलकोंडा की

कहानी गोलकोंडा की
कहानी गोलकोंडा की

गोलकोंडा किला एक भव्य इमारत है जिसकी पहचान कोहिनूर भी बताता है जब जब कोहिनूर हीरे का जिक्र होता है तब गोलकोंडा की खदान भी याद आती है यही से कोहिनूर हीरे को खोजा गया था जिस तरह कोहिनूर हीरा इसकी शान को बढ़ाता है उसी तरह इस किले का इतिहास भी पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त है |

गोलकोंडा को मनकल के नाम से भी जानते है गोलकोंडा किले के निर्माण की नींव सबसे पहले काकातिया ने कोंडापल्ली किले की तर्ज पर पश्चिमी रक्षा के हिस्से के रूप में की थी | आज के समय में गोलकोण्डा दुर्ग तेलंगाना के हैदराबाद शहर में स्थित है गोलकोण्डा किले की नींव सन 1143 ईस्वी में वारंगल के राजा द्वारा राखी गयी थी, इस किले का पुनर्निर्माण रानी रुद्रमा देवी और उनके पुत्र प्रतापरुद्र ने कराया, चौदहवी और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य बहमनी शाशको ने किलेबंदी कराई बाद में क़ुतुब वंश के द्वारा 5 किलोमीटर की परिधि में इसका निर्माण कराया गया |

1538 के समय लगभग बहमनी शाशन पूरी तरह से कमजोर हो गया था उस समय सुल्तान कुली क़ुतुब उल मुल्क ने क़ुतुब वंश की गोलकोण्डा में शुरुआत हुयी,क़ुतुब शाशको द्वारा ग्रेफाइट पत्थरो से इस किले का जीर्णोद्धार कराया क़ुतुब शाही शाशन का अंत सन 1687 में हुआ जब औरंगजेब ने यहाँ आक्रमण करके कब्ज़ा कर लिया |

गोलकोण्डा किले का मुख्य द्वार पूर्वी दरवाजा है इसका नाम बाला हिसार दरवाजा है इस किले के दरवाजे के ऊपरी हिस्से में मोर की आकृति है जो की एक कलाकृति की एक बेमिसाल छाप है ये आकृतिया इस बात की साक्षी है कि यह किला हिन्दू राजाओ के द्वारा बनवाया गया, इस किले के आगे कुछ फुट ऊँची एक दिवार है जो उस समय दुश्मन की सेना को सीधे दरवाजे पर आक्रमण करने से रोकती है |

इस किले के दरबार हॉल से सीधे पहाड़ी से नीचे शहर की ओर एक गुप्त सुरंग जाती है, ऐसा माना जाता है की किले से एक सुरंग सीधे चारमीनार की ओर खुलती है गोलकोण्डा किले की बाहरी दीवार से 1 किलोमीटर के दायरे में क़ुतुबशाही शाशन के द्वारा बनाये हुए किले मौजूद है जो की इस्लामिक पद्धति में बने हुए है इस किले के दरवाजे नुकीले ओर धारदार लोहे के काटों से सुसज्जित है जो की इस किले की रक्षा करती है गोलकोण्डा किला 11 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है |

सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में रुई के कारखानों की शुरुआत यही गोलकोण्डा से हुयी, सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में रुई के कारखानों की शुरुआत यही गोलकोण्डा से हुयी गोलकोण्डा किले की कलाकृति इंजीनियरिंग का एक नायाब उदाहरण है उस समय भी इतने बड़े छेत्रफल में किले का निर्माण कराना इतना आसान नहीं था, आज प्रत्येक शाम के यहाँ भारत की कहानी का सचित्र वर्णन चलचित्र और फव्वारे के साथ होता है यहाँ पर्यटन की दृष्टि से घूमने के लिए एक उपयुक्त स्थान है जो भारत के इतिहास को सचित्र दर्शाता है |

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