कहानी ग्वालियर की

कहानी ग्वालियर की
कहानी ग्वालियर की

ग्वालियर के किले का एक बेमिसाल इतिहास है, एक ओर जिस किले की दीवारों ने अपनों का प्यार देखा तो वहीं दूसरी ओर इसने दूसरे देश की गद्दारी का सामना भी किया। हमने किलों के लिए लड़ाइयां तो बहुत सुनी हैं, ऐसा ही कुछ इस किले का भी इतिहास है , लेकिन उसके साथ एक राजनैतिक सिलसिला भी है, जो कभी खत्म नहीं होता। जानते हैं एक ऐसी ही बेमिसाल अनसुनी कहानी शरुआत से -

शिलालेखों के अनुसार ग्वालियर में सबसे पूर्व मिहिरकुल का शाशन बताया गया है। इनके पिता का नाम तोरमाण था। कहते हैं कि मिहिरकुल का शाशन कंधार, कश्मीर, उत्तर और मध्य भारत पर था। उनका शाशन 493 से 520 ई. तक था | नौहवीं शताब्दी की शरुआत में गुर्जर प्रतिहार वंश ने ग्वालियर पर शासन किया। सन 1021 में महमूद गज़नी ने ग्वालियर पर पुनः आक्रमण किया और उसे वापस जाना पड़ा। सन 1231 ई. में ग्यारह माह के अथक प्रयास के बाद इल्तुतमिश ने यहाँ अधिपत्य कर लिया। और फिर ग्वालियर पर तेरहवीं शताब्दी तक मुसलमानों का कब्ज़ा रहा। सन 1375 ई. में राजा वीर सिंह को ग्वालियर का राजा घोषित किया गया और उन्होंने तोमर वंश की नींव रखी। उनके शाशन काल में ग्वालियर के रहवासियों के स्वर्णिम दिन रहे।

तोमर वंश के अंतिम शाशक राजा मान सिंह थे। उन्होंने अपने शाशन काल में बहुत से महलों का निर्माण कराया, और अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए भी एक महल का निर्माण कराया जिसका नाम आज के इतिहास में हम सभी गुजारी महल के नाम से जानते हैं। सन 1516 ई. में इब्राहिम लोदी के द्वारा ग्वालियर के किले पर आक्रमण किये जाने के पश्चात, तोमर वंश के आखिरी शाशक राजा मान सिंह ने किले की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया, और तोमर वंश किले को हार गए |

ग्वालियर के किले ने मुग़ल सल्तनत को भी कुछ समय तक स्थान दिया, लेकिन ज्यादा दिन तक मुग़ल परचम ठहर न सका और मराठाओं ने ग्वालियर के किले पर कब्ज़ा कर लिया, और मराठा भी कुछ समय में यह किला अंग्रेजो से हार गए। इस तरह यह सिलसिला सन 1844 ई. तक चलता रहा और आखिरकार सन 1844 ई. में ग्वालियर का यह किला मराठा सिंधिया परिवार को सोंप दिया गया |

ग्वालियर के किले ने सन 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम को देखा है, तो वही इतिहास के पन्नों को अपने स्वर्ण अक्षरों में समेट कर रख दिया। शताब्दियों के इस खेल में ग्वालियर ने एक स्वर्णिम इतिहास को देखा है, जिसमे इस किले की बागडोर राजपूतों से मुग़ल, फिर मुग़लों से मराठा सिंधियाओं के पास से होते हुए अंग्रेजों के हाथ और फिर आखिरकार मराठाओं के हाथ आ गयी |

यह किला अलग-अलग महलों में शामिल है, जिनमें मान सिंह महल, गुजारी महल, तेली का मंदिर, सहस्त्र बाहू मंदिर, करन महल, विक्रम महल, जहांगीर महल, शाहजहां महल और जोहर कुंड प्रमुख है, इस किले का क्षेत्रफल लगभग ३ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, किले के दो द्वार हैं, जिनमें मुख्य द्वार हाथी द्वार है, जो कि उत्तर पूर्वी हिस्से में है और दूसरा बादलगढ़ द्वार है, जो कि दक्षिण पश्चिम में स्थित है |

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