तराइन का युद्ध

तराइन का युद्ध
तराइन का युद्ध

इन युद्धों में एक ओर जहाँ राजा से क्षमा और दया तो दूसरी ओर लुटेरे जिन्होंने क्रूरता की सारी सीमाएं लाँघ दी। एक ओर हमारे भारत के वीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वहीं दूसरी ओर कुछ लालचियों ने भारत के इन्हीं वीरों को धोखा दिया। जिसका परिणाम भारत को कई वर्षों तक सहना पड़ा । आज ऐसे ही एक युद्ध की बात करते हैं, जिसकी कहानी में छिपे हैं कई राज।

एक ऐसे युद्ध की कहानी जिसकी वजह से भारत के इतिहास में एक नया मोड़ आया। यहाँ से भारत के राजनैतिक और आर्थिक मायने बदल गए। यह युद्ध मुहम्मद गौरी और भारत के वीर राजा पृथ्वीराज चौहान के मध्य लड़ा गया। इतिहास यह कहता है कि राजा पृथ्वीराज ने सत्रह बार मुहम्मद गौरी को पराजित किया और मुहम्मद गौरी को जीवनदान भी दिया। इन सब के बावजूद भी मुहम्मद गौरी ने भारत पर अपनी लूट की नजरें गड़ाए रखीं।

सन 1191 ईस्वी में तराइन का प्रथम युद्ध लड़ा गया। तरावड़ी जिसे तराइन के नाम से जानते हैं, आज के करनाल जिले के नीलोखेड़ी तहसील में स्थित है। यहीं पर पृथ्वीराज चौहान का किला भी स्थित है। तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी, राजा पृथ्वीराज चौहान से बुरी तरह पराजित हुआ था। इस युद्ध में भारत के कई वीर राजाओं ने मुग़ल परचम को लहराने नहीं दिया। राजा पृथ्वीराज का साथ दिल्ली के राजा गोविन्द और अन्य राजाओं ने दिया। इस युद्ध के परिणाम में मुहम्मद गौरी और उसकी सेना को बुरी तरह से पराजित होना पड़ा। राजा गोविन्द ने मुहम्मद गौरी को इतनी बुरी तरह से घायल किया की वो मरणासन्न की अवस्था में पहुंच गया। इसी बीच मुहम्मद गौरी का एक घुड़सवार सिपाही मुहम्मद गौरी को युद्ध के मैदान से निकाल कर ले गया। इस युद्ध के परिणाम स्वरुप मुहम्मद गौरी ने जहाँ बहुत से राज्यों को लुटा हुआ था और जिन राज्यों पर आतंक फैलाया हुआ था, वह इस युद्ध के साथ ही समाप्त हो जाता है। परंतु यदि इस युद्ध में, मुहम्मद गौरी को उसका पीछा करते हुए मार दिया गया होता, तो भारत का इतिहास एक स्वर्णिम इतिहास होता।

तराइन के प्रथम युद्ध के पश्चात मुहम्मद गौरी अपने घोर प्रान्त, जो आज के समय में अफगानिस्तान में है, वहाँ वापिस लौट गया और भारत में राजाओं के मध्य चल रही आपसी रंजिशों का फायदा उठाकर एक बार फिर युद्ध की रणनीति तैयार करने लगा। 1 वर्ष के पश्चात कन्नौज के राजा जयचंद ने मुहम्मद गौरी का युद्ध में साथ दिया। कहते हैं कि, राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता, राजा पृथ्वीराज की वीरता और साहस से प्रभावित थीं और जब राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर हुआ तो राजा पृथ्वीराज ने उनका अपहरण कर लिया और उनसे गन्धर्व विवाह कर लिया। जिसके परिणाम स्वरूप कन्नौज के राजा जयचंद को अपमान सहना पड़ा, और उन्होंने राजा पृथ्वीराज चौहान से अपने अपमान का प्रतिशोध लेने की ठानी।

सन 1192 में तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ और एक बार फिर से तराइन का मैदान राजा पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के युद्ध का साक्षी बना। इस युद्ध के परिणाम से भारत का भविष्य तय था। जो भी जीतेगा वो सरहिंद का ताज पहनेगा, और इस बार जहाँ एक ओर राजा पृथ्वीराज की सेना में 3000 हाथी, 3,00,000 घुड़सवार और पैदल सेना शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर मोहम्मद गौरी की सेना लगभग 1,20,000 सैनिकों के साथ शामिल हुयी। इस युद्ध की रणभूमि में कन्नौज के राजा जयचंद ने राजा पृथ्वीराज का साथ न देना चुना और गौरी का साथ दिया। इस युद्ध के शुरुआत में राजा पृथ्वीराज की सेना ने मुहम्मद गौरी की सेना को पीछे धकेल दिया, परंतु पीछे से गौरी की सेना की एक टुकड़ी ने उन्हें घेर लिया। और कुछ ही पल में एक जीत हार में बदल गयी।

इस युद्ध के परिणाम में गौरी, पृथ्वीराज को अपने साथ घोर ले गया, और वहाँ पर गौरी के द्वारा पृथ्वीराज को कई शारीरिक यातनाएं दी गयीं। जिनमें गौरी ने राजा पृथ्वीराज चौहान की आंखे फोड़ दीं। जब इसकी सूचना चंदबरदाई, पृथ्वीराज के मित्र को मिली, तब उन्होंने अपनी चतुराई से शब्दभेदी बाण की विद्या से राजा पृथ्वीराज चौहान की सहायता की और इस प्रकार मुहम्मद गौरी का अंत राजा पृथ्वीराज के हाथों होता है।

इस तरह यह तराइन का युद्ध, भारत के स्वर्णिम पन्नों में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। इस युद्ध के परिणाम में कुछ वर्षों तक दिल्ली पर रुकने के पश्चात, उसका एक सिपाही क़ुतुबुद्दीन ऐबक का दिल्ली की राजगद्दी पर आरूढ़ होता है। और यहीं से भारत के इतिहास में गुलाम वंश की शुरुआत होती है। काश राजा पृथ्वीराज चौहान ने कभी गौरी को मार दिया होता तो भारत का इतिहास कुछ और होता। परंतु फिर भी हमें गर्व है अपने भारत के वीरों पर।

Frequently Asked Questions:-

1. तराइन का प्रथम युद्ध कब लड़ा गया था ?

सन 1191 ईस्वी में


2. तराइन का युद्ध किनके मध्य हुआ था ?

राजा पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी


3. तराइन के प्रथम युद्ध के परिणाम ?

मुहम्मद गौरी की पराजय


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