भगवान का अस्तित्व इस मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है इस धरती पर आने वाला हर एक इंसान की जागरूकता है की वो कौन है, इस अनादि काल से मानव यह ज्ञात करने का इच्छुक रहा है की वह कहा से आया है, तो आज इस कहानी भारत की में जानते है की हमारे ऋषि मुनिओ ने भगवान को कैसे जाना | इस अनादि काल में हमारे ऋषि मुनिओ ने घोर तपस्या की और फलस्वरूप मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति की इस भगवान के अस्तित्व को जाना और जन कल्याण हेतु हमेशा अग्रशर रहे, आज के इस कलिकाल में हमारे भगवान को जानने की इक्छा सिर्फ मूर्ति पूजा तक ही रह गयी, सुबह जागने से लेकर रात्री तक सोने की प्रक्रिया में हम कभी अपने पूर्वजो को जानने का अवशर ही नहीं मिला
वास्तव में हमारे ऋषियों द्वारा भगवान शब्द की उत्पत्ति कई हजार सालो पहले हो चुकी है उन्होंने इसका शाब्दिक अर्थ इस प्रकृति को जोड़कर मानव से जोड़ दिया और मानव की आत्मा को परमात्मा से, भगवान शब्द पांच अक्षरों का मेल है इनमे भ , ग , व , अ, न इन शब्दों का अर्थ भ से भूमि , ग से गगन , अ से अग्नि , और न से नीर इन पांच तत्वों से भगवान शब्द की उत्पत्ति हुयी |
हमारे धर्म ग्रंथो और शास्त्रों ने जिनकी ऋषियों ने ऋचाये लिखी उन्होंने गिरी कंदराओं में इसी भगवान की उत्पत्ति ही तो की, उन्होंने ही तो बताया कि इस मानव शरीर से ही भगवान तक पंहुचा जा सकता है उन्होंने अपना पूरा जीवन हिम कि शिलाओं में ही तो बिताया उन्होंने ही तो इस प्रकृति का सम्मान करना सिखाया |
क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
इस चौपाई का अर्थ भी तो यही है यह मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है धरती, जल, अग्नि, आकाश, और हवा , जब तक यह मानव शरीर जीवित है तब बचपन से युवावस्था तक इस मानव शरीर को बनाने में समय निकलता है और फिर शरीर के देह त्याग करने के पश्चात धर्म अनुसार इस शरीर को अग्नि के साथ मिलन हो जाता है और इस शरीर से मुक्ति |
हमारे ऋषियों ने इस मानव शरीर को ही प्रकृति का अंग माना है, इस प्रकृति से उत्पत्ति और इस प्रकृति में विलीन, हमारे पूर्वजो ने हमें इस मानव शरीर की ही तो पूजा करना सिखाया कब हमें जागना है, कब हमें सोना है, हमारी दिनचर्या क्या होना चाहिए हमने आज के समय में आडम्बर का वेश ओढ़ रखा है, हमें अपने आस पास होने के अस्तिव का ज्ञान होना चाहिए |
हम मानव ने ही तो अंतरिक्ष की छलांग लगायी है तरंगो के माध्यम से ही तो हमने एक जगह से दूर विदेश बैठे अपने किसी से वार्ता की, शायद हमारे ऋषि मुनियो ने अपनी साधना के बल पर पहले ही परमात्मा से संयोग कर लिया हो और उन्होंने इन ग्रंथो के माध्यम से मानव को अनुशाशन में रहना सिखाया है |
हमारे ग्रंथो रामायण में भी तो जब इंद्र को अपने सिंघासन का भय सताया तो उसने करुणा भरी पुकार लगाई तो महाराज दशरथ ने धरती से छलांग लगायी अपनी चतुर्गिनी सेना के साथ और उन्होंने इंद्र को शत्रु मुक्त किया कितना बड़ा वैभव रहा होगा हमारे अनादि काल में जिन्होंने अपनी दशो इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया इसलिए तो उनका नाम दशरथ है, हमारे ग्रन्थ हमें बारम्बार संकेत करते है अपनी प्रकृति का सम्मान करने का |
हमारे इस भारत में भगवान ने मानव शरीर के रूप में अवतार लिया जिनमे मर्यादा पुरोषत्तम भगवान श्री राम जिन्होंने मर्यादा की एक मिशाल भारत को दी हमारे ऋषियों में भगवान परशुराम जिनके नाम बड़े सम्मान से भारत जानता है, भगवान श्री शंकराचार्य जिन्होंने इस भारत की धरती पर चार मठो की स्थापना की और धर्म को जीवित रखा |
आज की कहानी में भगवान के अस्तित्व की व्याख्या कुछ शब्दों में नहीं की जा सकती बस इस प्रकृति के सम्मान में मानव विजयी बन सकता है वो स्वयं ही भगवान का रूप है, यही मानव मंदिर है, मानव ही ब्रह्म है जिसने सोहम का उच्चारण किया |