कहानी पृथ्वीराज चौहान की

कहानी पृथ्वीराज चौहान की
कहानी पृथ्वीराज चौहान की

कहानी एक ऐसे वीर योद्धा की जिसने अपने जीवनकाल में बहुत से युद्ध लड़े और और अपनी बहादुरी से दुश्मन को परास्त किया अपितु कई बार उसे क्षमादान दिया, कहानी एक ऐसे ही भारत के वीर की, पृथ्वीराज चौहान जिसका उपनाम राय पिथोरा था , राय पिथोरा आज के दिल्ली में राय पिथोरा के किले के रूप में जिर्णो अवस्था में उपस्थित है उनका जन्म चाहमाना वंश के राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरदेवी के यहाँ गुजरात में हुआ |

राजा सोमेश्वर को उनके रिश्तेदार उन्हें चाहमाना दरबार में ले आये | वह पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर को पृथ्वीराज द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उनको राजा बनाया गया जब पृथ्वीराज 11 वर्ष के थे तब उनके पिता विक्रम सम्वत के अनुसार 1234 में स्वर्गवासी हो गए, तब पृथ्वीराज को उनकी माता के संरक्षण में ताजपोशी की गयी | चाहमाना दरबार उस समय के अजयमेरु राजस्थान में है, जो की आज के अजमेर शहर के नाम से जानते है, पृथ्वीराज ने अपने शुरुआती दौर में ही अपने पडोसी राज्यों से युद्ध लड़े, वे बचपन से ही युद्धनीति और राजनीती में कुशल थे | उन्होंने अपने विरोधियो से युद्ध लड़ने के बाद अन्य राज्यों पर आक्रमण किया और अपने राज्य की सीमा विस्तार किया |

पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड में महोबा के निकट चन्देलों को युद्ध में चुनौती दी और इसी युद्ध में आल्हा और उदल दो भाई बुंदेलखंड की शान ने महोबा को बचाने के लिए उदल ने अपने प्राण गवा दिए | जब इस बात का पता आल्हा को ज्ञात हुआ तो आल्हा ने सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और अगले ही कुछ छड़ों में आल्हा और पृथ्वीराज आमने सामने थे आल्हा ने पृथ्वीराज को अपने गुरु गोरखनाथ के कहने पर छोड़ दिया और पृथ्वीराज को वापिस जाना पड़ा | इन युद्धों के पश्चात् पृथ्वीराज ने गुजरात का रुख पकड़ा जिनमे पृथ्वीराज का सामना गुजरात के शाशक भीम द्वितीय से हुआ जिसमे पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा और पंजाब की और वापिस अपनी सेना के साथ वापिस आ गए |

राजा पृथ्वीराज की तेरह रनिया थी जिनमे से कुछ प्रमुख रानियाँ जिनमे जम्भावती, इच्छनी, यादवी शशिव्रता, हंसावती और संयोगिता है | उनका प्रथम विवाह जब वे 11 वर्ष के थे तब हुआ उसके पश्चात कई और रानियों से विवाह हुआ जब वे 36 वर्ष के हुए तब उनकी कीर्ति और वीरता से प्रभावित होकर राजकुमारी संयोगिता उनसे प्रेम करने लगी और इन बातो से उनके पिता कन्नौज के राजा जयचंद ने उनका स्यंवर रचाया जिससे राजा पृथ्वीराज को जब ये बात ज्ञात हुयी तो उन्होंने राजकुमारी संयोगिता को भरे दरबार में से अपहरण कर लिया और उनसे गन्धर्व विवाह करने के पश्चात उन्हें रानी बनाया और इस तरह भारत के इतिहास में एक प्रेम कहानी सुनहरे पन्नो में दर्ज हुयी |

इस विवाह के पश्चात राजा पृथ्वीराज और राजा जयचंद के राजनैतिक सम्बन्ध बिगड़ गए और इसका असर भारत के इतिहास को एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी पृथ्वीराज ने कई युद्ध लड़े जिनमे से एक तराइन का युद्ध महत्वपूर्ण युद्ध रहा 1182 में पृथ्वीराज का युद्ध पहली बार सतलज के मैदान में मुहम्मद गौरी से हुआ जिसका परिणाम मुहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा उसके पश्चात सूर नामक सामंत प्रत्येक वर्ष कर लेने जाता था |

उसके पश्चात पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को 17 बार युद्ध के मैदान में परास्त किया और बार बार मुहम्मद गौरी हरने के पश्चात् अपने देश वापिस चला जाता शायद इस बार गौरी ने चालाकी से इस बात का फायदा उठाया और उसको ज्ञात था की पृथ्वीराज चौहान की कन्नौज के राजा जयचंद से सम्बन्ध ख़राब है और इस बार उसने फिर से आक्रमण किया और तराइन का द्वितीय युद्ध भारत के इतिहास में निर्णायक साबित हुआ, इस बार मुहम्मद गौरी अपनी सेना के साथ फिर भारत पर आक्रमण करने के लिए तैयार हुआ इस बार पृथ्वीराज चौहान ने खतरे को भांपते हुए अन्य राज्यों से सहायता के लिए आग्रह किया बहुत से राजाओ ने अपनी सैन्य टुकड़ी गौरी से युद्ध के लिए भेज दी |

इस प्रकार सन 1192 में तराईन की धरती पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के युद्ध की साक्षी बनी जो धरती वीरो के खून से सन गयी और इस युद्ध ने भारत के इतिहास में मोड़ लाया कहते है कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता से गन्धर्व विवाह के कारण राजा जयचंद ने पृथ्वीराज का साथ न दिया और इस बार पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा, शायद राजा जयचंद के साथ देने से इस युद्ध का पलड़ा कुछ और होता |

पृथ्वीराज की मृत्यु के विषय में कहते हैं कि मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज को हारने के पश्चात अपने साथ गजनी वापिस ले कर गया और वहाँ पर मुस्लिम धर्म कुबूल करने के लिए कहा जिसका विरोध करने पर पृथ्वीराज को कई शारीरिक यातनाओ का सामना करना पड़ा जिसमे गौरी ने सम्राट कि आँखे फोड़ दी जिससे उन्हें दिखना बंद हो गया ये सारे समाचार पाकर उनके मित्र चंदरबाई जो कि उस समय जम्मू के राजा से संधि के लिए निकले थे वे वापिस आने पर गजनी गए और गौरी को अपनी वाक्पटुता से समझा कर पृथ्वीराज से मुलाकात की उसने गौरी से कहा की सम्राट अंधे होने के बाद भी शब्दभेदी बाण चलाने में समर्थ है इस करतब को दिखाने के लिए कहा गया और चंदबरदाई ने एक श्लोक के माध्यम से पृथ्वीराज की सहायता की |


"चार बांस चौबीस गज, अङ्गुल अष्ट प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥"


और पृथ्वीराज ने एक ही बाण से गौरी के मस्तक को भेद दिया और इसके पश्चात चंदबरदाई ने अपनी कतार से स्वयं और पृथ्वी की जान गवाई शायद जीवित रहते तो मुग़ल सैनिको से मरना होता उससे अच्छा अपनी इच्छा से गजनी में प्राण त्याग दिए |

इस प्रकार इस भारत देश की धरती ने एक वीर सपूत को खो दिया और इतिहास के पन्नो में शायद एक और मुगलिया सल्तनत की विजय का चिन्ह जुड़ गया |

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