आनंदपुर साहिब का युद्ध

आनंदपुर साहिब का युद्ध
आनंदपुर साहिब का युद्ध

17वीं शताब्दी के अंत तक मुगलों को भारत की सरजमीं पर हुकूमत करने के लिये दिन-रात खून के आंसू रोने पड़ रहे थें। हर तरफ से विद्रोह का बिगुल बज चुका था। दक्षिण में छत्रपति शिवाजी महाराज, पूर्व में लचित बोरफुकान, पश्चिम के राजस्थानी राजपूत और सिंध क्षेत्र में सिखों ने भी मुगलों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर लिया था। कहानी भारत की के इस अंक में हम आपको सिखों से मुगलों की होने वाले भीषण लड़ाई के बारे में बताने वाले है।

गुरु अर्जन देव की मौत के बाद से पनपी दुश्मनी

मुगलों और सिखों के बीच एक अहम लड़ाई 1780 में आनंदपुर साहिब में लड़ी गई थी। सिख धर्म को शांतिप्रिय संप्रदाय माना जाता था। बेवजह किसी पर भी किसी भी तरह का हमला ना करना सिखों की फितरत थी। उन्होंने आजीवन दुनिया की सेवा की है और मानवता को सबसे ऊपर रखा है। अकबर के शासन काल के गुरु अर्जन देव की मौत के बाद सिखों और मुगलों के बीच की दुश्मनी पनपने लगती है। औरंगजेब के शासनकाल में मुगलों की निर्मम साम्राज्यवादी नीतियों की वजह से गुरु तेग बहादुर सिंह को मार दिया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे और उनकी मृत्यु से यह स्पष्ट हो जाता है कि अब समाज सेवा और मानवता की रक्षा के साथ-साथ आत्मसुरक्षा के नजरिए से भी सिखों को खुद को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि उन पर कोई बाहरी शक्ति आक्रमण न कर सके। इन्हीं सवालों पर मंथन करते हुए सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।



खालसा पंथ सैनिकों का एक जत्था था, जो हिंदुत्व और अन्य सभी धर्मों की सुरक्षा के कार्यों में और सेवा के कार्यों में लिप्त रखता था। ये सेवक के भेष में योद्धा हुआ करते थे, जिनका काम अपनी अपने विस्तार, संरक्षण और सुरक्षा के पायों को मजबूत करना था। सिखों के सेवा भाव से प्रसन्न होकर बाकी दुनिया से उन्हें काफी समर्थन मिला। दूर दूर के राज्यों से, यहां तक कि भारत के बाहर से भी उन्हें चंदा मिलने लगा। लोग जुड़ने लगे और खालसा पंथ लगातार मजबूत होता चला गया।



स्थानीय शासकों ने की मूर्खता और गद्दारी

यह बात स्थानीय राजाओं को खटक गई। स्थानीय राजा अपनी मंदबुद्धि की वजह से गुरु गोविंद सिंह और खालसा पंथ की मंशाओं को नहीं समझ सकें और मुगलों से जा मिले। इस बात की सूचना औरंगजेब को मिली, जो उस समय मुगल बादशाह था और दक्कन विजय में लगा हुआ था। औरंगजेब को जब पता चला कि एक सेना भारत के पश्चिमी छोर पर मजबूती के साथ खुद का विस्तार कर रही है तो उसने उसे रोकने के लिए योजना बनाना प्रारम्भ कर दिया।  सेनापति दीन बेग और पाईंदे खान के नेतृत्व में औरंगजेब ने 10हजार सेना के विशाल समूह को आनंदपुर साहिब की तरफ रवाना कर दिया, ताकि खालसा पंथ को रोका जा सके। सिखों के प्रभाव और वीरता को उसने देखा था। तेग बहादुर का खौफ तब भी उसके जहन से गया नही था। उसे दर था कि खालसा पंथ उनके मुग़ल सल्तनत को नेश्नाबूत ना कर दे। इसलिये उसने आनन फानन में 10 हजार सेनाओं का एक समूह रवाना किया।



बिना लड़े ही भाग खड़ी हुई मुग़ल सेना

आनंदपुर साहिब के समीप मुगलों की सेना का सामना खालसा पंथ के सिख वीरों से हुआ। पाईंदे खान को अपने लश्कर के साथ सामने देख कर गुरु गोविंद सिंह मुस्कुराते अपनी महज एक हजार रणबांकुरों का नेतृत्व कर रहें थें। पाईंदे खान को अंदाजा ही नहीं था, कि बिना रक्तपात के उसकी सेना उलटे पाँव भागने वाली थी। मानवता की रक्षा करने वाले सिखों ने एक बार फिर से रक्तपात रोकने की पहल की। गुरु गोविंद सिंह ने पाईंदे खान को एक सुझाव संदेश भिजवाया कि जब युद्ध करना है तो हम दोनों आपस में लड़ लेते हैं। युद्ध में इन हजारों सैनिकों के खून का क्यों बहाना। पाईंदे खान मान गया और वह सिंह जैसे बलशाली और चतुर गुरु गोविंद सिंह से लड़ने चला आया।



कहा जाता है कि जब पाईंदे खान लड़ने आया तो उसके शरीर पर ऊपर से लेकर नीचे तक मजबूत कवच की परत थी, जिसको किसी भी हथियार से भेद पाना नामुमकिन था। गुरु गोविंद सिंह समझ गये कि इसे परास्त करने के लिये वह जगह ढूंढ नहीं होगी, जहां से वार किया जा सके और वह मौत का पूरक हो। घंटों लड़ाई हुई। दोनों ने एक दूसरे पर जमकर वार किया। जख्मी भी हुए, लेकिन आखिरकार गुरु गोविंद सिंह ने एक ऐसा तीर मारा, जो पाईंदे खान के कान के पास के मुकुट में छेद में घुस गया। पाईंदे खान वहीं रणभूमि में छटपटाता हुआ गिरकर ढेर हो गया। युद्ध भूमि में अपने प्रमुख सेनापति को धराशाई देखकर मुगल सेना भाग खड़ी हुई और जो बच गए उनकी कसर सिख सैनिकों ने उन्हें खदेड़ कर पूरी कर दी।



इस तरह से आनंदपुर साहिब के युद्ध में मुगलों को सिखों ने भी खदेड़ दिया। इतिहासकारों की किताबों में मुगल हमेशा से अविजीत बताए गये हैं, जबकि हकीकत यह है मुगलों को भारत के हर कोने से कभी-ना-कभी, किसी न किसी ने दौड़ा दौड़ा कर खदेड़ा जरूर है।

Published By
Prakash Chandra
25-03-2021

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