सरायघाट का युद्ध

सरायघाट का युद्ध
सरायघाट का युद्ध

भारत में मुगलों के आतंक का सामना जहां उत्तर-पश्चिम भारत में महाराणा प्रताप व राजस्थान की राजपूती सेना कर रही थी, तो वहीं दक्षिण में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलिया हुकूमत की धज्जियां उड़ाई थी। मुगलों को मौत के घाट उतारने के लिए हिंदू स्वराज्य का बच्चा-बच्चा तत्पर था और किसी भी तरह से स्वतंत्र भारत भूमि को बाहरी आक्रमण कर्ताओं से मुक्त कराना चाहता था। भारत के उत्तर-पूर्वी कोने पर भी हिंदू स्वराज्य की सेना अपने स्तर से मुगलों के मंसूबों को नाकाम करने में लगी थी। उत्तरपूर्व में विद्रोह का नेतृत्व कर रहे थें लचित बोरफुकन। 'कहानी भारत की' के इस अंक में हम आपको भारत के उत्तर पूर्वी राज्य असम में होने वाले सराय घाट के युद्ध के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने रातोरात 4000 मुगल सेनाओं के प्राण लेकर अपने मातृभूमि की रक्षा की।

पहले भी हार चुकी थी मुगलसेना

सराय घाट असम में गुवाहाटी के ब्रह्मपुत्र नदी का हिस्सा है। 1671 ईस्वी में इसी जगह पर सेनापति बोरफूकन के नेतृत्व में अहोम हिंदू साम्राज्य ने मुगलों को धूल चटाई थी। गुवाहाटी के आसपास पूरे क्षेत्र में फैले इस साम्राज्य का वर्चस्व इतना था कि मुगलिया सेना कई दफा इसको जीतने आयी और उल्टे पांव रहम की भीख मांगते हुए भाग खड़ी हुई।



1667 में भी अहोम हिंदू साम्राज्य ने औरंगजेब को चुनौती देती थी और औरंगजेब के कब्जे से गुवाहाटी का ईटाकुली किला छीन लिया था। औरंगजेब की सेना बुरी तरीके से हार गई थी और उसके बाद औरंगजेब बिलबिला गया था। उस किले को वापस हासिल करने के लिए 1671 ईसवी में फिर से मुगल सेना ने होम हिंदू साम्राज्य की तरफ कदम बढ़ाये, लेकिन लचित के नेतृत्व ने उन बढ़े हुए कदमों को काटकर ब्रह्मपुत्र नदी में बहा दिया।



कहा जाता है की औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र राम सिंह के नेतृत्व में 70000 सैनिकों की भारी-भरकम फौज अहोम साम्राज्य को जीतने के लिए भेजी थी। फौज में 30,000 पैदल सैनिक, 15000 तीरंदाज, 18000 घुड़सवार, 5000 बंदूकची, 1000 तोपें और एक मजबूत नौसेना थी, लेकिन इलाका अहोम साम्राज्य का था, इसलिए मुगल सेना लाख कोशिश के बाद भी पराजित हो गई।



लचित के कुशल नेतृत्व ने लहराया भगवा

लचित तक कुशल सेनापति था और बहुत बहादुर था। कहा जाता है कि सेना के उत्साह को बढ़ाने के लिए उसने अपने सगे मामा का सर भी काट दिया था।  लचित के अहोम सेना में महज 6000 सैनिकों के साथ, मजबूत नौसेना और कुशल जासूसों का एक पूरा जत्था था। जहां एक तरफ असम के जंगलों में उसे कोई परास्त नहीं कर सकता था, तो वही दूसरी तरफ ब्रह्मपुत्र की धारा लचित के इशारों पर दिशा बदलती थी। मुगलों के आक्रमण को रोकते हुए लचित की महज 6000 की सेना ने जो मार-काट मचाया कि देखते ही देखते मुगल सेना के अग्रिम पंक्ति में खड़े 4,000 सैनिक ब्रह्मपुत्र नदी की भेंट चढ़  गयें। बची हुई सेना जान बचाकर मानस नदी पार कर भाग खड़ी हुई।



इसमें सबसे ज्यादा कारगर रही लचित की नौसेना में मौजूद छोटे-छोटे नाव, जिसे बच्छारीना कहा जाता था। छोटे-छोटे नाव मुगलों के बड़े जहाजों पर बहुत भारी साबित हुए। जानकार बताते हैं कि सराय घाट का युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी के धार में एक त्रिभुज से घिर गया था। जिसमें एक तरफ कामाख्या देवी का मंदिर, दूसरी तरफ अश्वक्लांता का विष्णु मंत्र और तीसरी तरफ ईटाकुली किले की दिवारें थी। अहोम हिंदू साम्राज्य पर राज करने आये मुगलों को इस त्रिभुज में घेरकर भेड़ बकरियों की तरह काटा गया और जानवरों की तरह खदेड़ दिया गया।



लचित बोरफुकान का असली नाम लचित था। बोरफुकान उसकी उपाधि थी। लचित को पूर्वोत्तर का शिवाजी भी कहा जाता है। छत्रपति शिवाजी का उपनाम लगना ही पर्याप्त है यह बताने के लिए, कि ललित की वीरता किस कदर जनमानस में प्रभावी थी। आज भी 24 नवंबर को बोरफुकान और असमिया सेना के प्रदर्शन को सराय घाट के युद्ध के रूप में याद करते हुए लचित दिवस मनाया जाता है। नेशनल डिफेंस एकेडमी में बेस्ट कैडेट को दिया जाने वाला गोल्ड मेडल आज भी "लचित मेडल" के नाम से दिया जाता है।

Published By
Prakash Chandra
19-03-2021

Related Stories
Top Viewed Forts Stories