अनसुलझे रहस्य में एक कहानी ऐसी भी जहां भारत में एक देवी हुयी है, जिन्होंने अपने पति के लिए पतिव्रता धर्म का पालन किया। और आने वाली पीढ़ी के लिए एक मिसाल कायम की, यह कहानी है सावित्री और सत्यवान की। सावित्री और सत्यवान की कहानी मार्कंडेय ऋषि द्वारा सुनाई गई, जब महाभारत के समय में महाराज युधिष्ठिर ने ऋषि मार्कंडेय से पूछा कि क्या द्रौपदी की तरह पवित्रता और भक्ति भाव रखने वाली कोई और स्त्री है।
भगवान सवित्र का वरदान
तब मार्कंडेय ऋषि ने महाराज युधिष्ठिर के प्रश्न की उत्कंठा को शांत किया। एक समय में मादृ राज्य में अश्वपति नामक राजा रहते थे, उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने कई वर्षों तक भगवान सूर्य की तपस्या की, भगवान सूर्य का एक नाम सवित्र भी है। राजा अश्वपति की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सावित्र (सूर्य) ने उन्हें दर्शन दिया। और वरदान मांगने के लिए कहा, भगवान सवित्र के आशीर्वाद से राजा अश्वपति को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। और उन्होंने भगवान सावित्र के नाम पर अपनी पुत्री का नाम सावित्री रखा। सावित्री बहुत ही खूबसूरत और पवित्र थी, जब उनकी उम्र विवाह की हुई। तब उनके पिता ने उनको स्वयंवर के लिए कहा, उनकी मुलाकात सत्यवान से होती है। सत्यवान शाल्व राज्य के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे, उस समय तक राजा अपना राज्य खो चुके थे, और उन्होंने अपनी आंखें भी गवा दी थी। अपने राज्य से निर्वासित होने के पश्चात जंगल में अपनी पत्नी और पुत्र सत्यवान के साथ रह रहे थे।
सावित्री और सत्यवान का विवाह
सावित्री ने सत्यवान के साथ विवाह करने का फैसला किया। और अपने पिता के घर वापस आयी और उन्होंने बताया कि वह सत्यवान से विवाह करेगी। तब ऋषि नारद ने उन्हें व उनके पिता को पति के रूप में स्वीकार न करने के लिए कहा। ऋषि नारद ने सावित्री से कहा कि सत्यवान से विवाह करने के 1 वर्ष के पश्चात उनकी मृत्यु हो जाएगी। लेकिन सावित्री ने शादी करने का फैसला किया और सावित्री और सत्यवान विवाह बंधन में बंध गए। विवाह के पश्चात देवी सावित्री अपने पति और अपने माता पिता की सेवा में लग गई। और उन्होंने अपने पति की रक्षा के लिए व्रत और तपस्या आरंभ कर दी, 1 वर्ष के पश्चात जिस सुबह सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी, सावित्री ने अपने सास-ससुर से अपने पति की रक्षा के लिए जंगल में जाने की आज्ञा मांगी।
जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काट रहे थे, तब उसके कुछ समय के पश्चात लकड़ी काटते-काटते सत्यवान ऊपर से नीचे गिरे थे। और उनकी मृत्यु होनी निश्चित थी, उनको कमजोरी महसूस हुई और उन्होंने अपना सर सावित्री के गोद में रख दिया। तब मृत्यु के देवता यमराज धरती पर आए और उन्होंने सत्यवान के प्राणों को देह से ले लिया।
सावित्री और यमराज संवाद
हमारे भारत की देवी सावित्री, अपने पति के प्राणों को यमराज के हाथों से मुक्त कराने के लिए आगे बढ़ी। और सावित्री धर्मराज के पीछे-पीछे चली, तब यमराज बोले कि देवी आप मेरे पीछे क्यों आ रही है। तब देवी सावित्री ने बोला कि मैं आपका पीछा नहीं कर रही हूँ, आप मेरे पति के प्राण ले जा रहे हैं, मैं अपने पति के चरणों का अनुगमन कर रही हूं। तब यमराज को भी सावित्री की तपस्या देख करके उनको आश्चर्य हुआ कि एक धरती की स्त्री जिसमे इतना साहस की वह मेरा पीछा कर रही है।
तब यमराज ने सावित्री को वापस लौट जाने के लिए कहा। जैसे ही यमराज आगे बढे, सावित्री उनके पीछे-पीछे चली। तब धर्मराज ने सावित्री से कहा की आप यमलोक नहीं जा सकती। सावित्री ने धर्मराज से कहा कि मैं आपका पीछा नहीं कर रही, धर्मराज ने देवी सावित्री से कहा, कि मैं तेरी निष्ठा देखकर प्रसन्न हो गया। देवी बताइए आपको क्या वरदान चाहिए? सावित्री ने कहा क्या आप मुझे वर देंगे, तब सावित्री ने धर्मराज से कहा। कि मैं अपने सास-ससुर के पोतो को सोने के थाल में भोजन करते हुए देखना चाहती हूं। एक बार में देवी सावित्री ने अपने माता-पिता की आंखें मांग ली, संपत्ति वैभव मांग लिया और अपनी संताने भी मांग ली। धर्मराज ने बोला कि हां तेरे सास-ससुर को आंखें मिल जाएंगी।
तब सावित्री ने फिर यमराज का पीछा करना प्रारम्भ किया। तब धर्मराज ने बोला कि और क्या वर चाहिए, आप मेरा अभी भी पीछा कर रही है। तब सावित्री ने कहा कि मुझे भाई नहीं है, तो क्या आप मुझे भाई देंगे। तो उन्होंने बोला कि हां दूंगा। वरदान देकर देवी सावित्री को धरती पर वापस लौट जाने के लिए कहा। पीछा करते हुए देवी सावित्री को धर्मराज ने दोबारा देखा और कहा सावित्री अब क्या चाहिए। सावित्री ने कहा कि मैं बहुत सारे पुत्रो की मां बनना चाहती हूं। और यमराज ने परेशान होते हुए कहा कि हां आप बन जाओगी। तब सावित्री धर्मराज से बोली कि पति को आप ले कर के जा रहे हैं। मैं पुत्रो की माता कैसे बनूंगी तब धर्मराज ने कहा कि तू नहीं मानेगी, ले! ले जा तू अपने सत्यवान के प्राण।
यह भारत का इतिहास है जहाँ एक देवी ने अपने पति के प्राण यमराज से भी ले कर आ गयी। हमारे भारत की धरती धन्य है, जहाँ अपने तप और बल के सहारे धरती लोक से स्वर्ग लोक तक देह धारण कर यात्रा की और अपने पति के साथ जीवन निर्वाह का वरदान प्राप्त हुआ। जहाँ धरती के प्राणी मृत्यु से डरते है वहां इस भारत की धरती की स्त्री ने यमराज का सामना किया। धन्य है यह भारत की धरती, यह सत्य है, निष्ठा है, व्रत है, तपस्या है, यह एक निष्ठ भक्ति का बल है।