दशहरा 2020

दशहरा 2020
दशहरा 2020

हम दशहरा क्यों मनाते हैं ? क्या इसके पीछे कोई एक विशिष्ट औचित्य है ? आखिर दशहरा के पीछे क्या कारण है ? क्या दशहरे मनाने का एक ही कारण है ? कि भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण भी एक बुद्धिमान व्यक्ति और ब्राह्मण भी था। फिर दशहरा मनाने का सिर्फ एक ही कारण क्यों ? आखिर देवी जी के 9 दिनों के बाद ही दशहरा क्यों आइए जानते हैं, इसी तरह के कुछ प्रश्न जो हमारे मन में आते है।

एक कहानी के अनुसार एक दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति महिषासुर, जिसने ब्रम्हांड और तीनों लोकों पर हाहाकार मचा दिया था। उसने बहुत घोर तपस्या करने के पश्चात भगवान ब्रह्मा से उसने वरदान प्राप्त किया था। उसने भगवान ब्रह्मा से यह वरदान मांगा, कि वह अमर हो जाए। लेकिन भगवान ब्रह्मा ने उसको यह वरदान देने से मना कर दिया। और भगवान ब्रह्मा ने उसको जन्म मृत्यु का परिचय कराया। कि इस जगत में जिसका भी आगमन होता है उसकी मृत्यु निश्चित है। फिर महिषासुर ने वरदान में यह वरदान माँगा। कि वह किसी भी व्यक्ति, किसी देवता, किसी दैत्य या फिर इस संसार के किसी भी प्राणी से उसका वध न हो। वरदान प्राप्त करने के पश्चात उसने लोगों पर अत्याचार प्रारम्भ कर दिया। उसने लोगों पर अत्याचार करने के पश्चात उसके मन में उत्कंठा हुई, कि वह इंद्रलोक पर भी आक्रमण करेगा। इंद्रलोक पर आक्रमण करने के पश्चात भगवान इंद्र और महिषासुर के मध्य देवासुर संग्राम आरम्भ हुआ। जिसमे भगवान इंद्र का सिंहासन छीन लिया और भगवान इंद्र डर के कारण भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे।

भगवान ब्रह्मा से उन्होंने इंद्रलोक की रक्षा करने के लिए कहा। तब भगवान ब्रह्मा ने बोला कि मेरे वरदान के कारण महिषासुर को मार पाना आसान नहीं है, और उसका वध असंभव है। तब इंद्र और भी ज्यादा डरने लगा। इस पर भगवान ब्रह्मा ने इंद्र से बोला कि हम सब भगवान विष्णु के पास चलते इस समस्या का हल प्राप्त करते हैं। तब इंद्र और भगवान ब्रह्मा भी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और भगवान विष्णु से प्रार्थना आरम्भ की, कि इस दुष्ट महिषासुर से बचाया जाए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को यह आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, कि सारे देवता मिलकर आदिशक्ति पराम्बा का आवाहन करेंगे और भगवान विष्णु, भगवान शंकर और और भगवान ब्रह्मा की शक्तियों मिलकर आदि शक्ति का प्राकट्य हुआ। सभी देवताओं ने आदिशक्ति माँ पराम्बा को अपने-अपने अस्त्र प्रदान किए, जिन अस्त्रों में देवी परांबा के पास त्रिशूल ,शंख, सुदर्शन चक्र, कमण्डल और तीरों से भरा हुआ तरकश इस तरह के बहुत सारे अस्त्र देवी को प्रदान किये। इन अस्त्रों से महिषासुर का वध करना आसान था। इस तरह मां आदिशक्ति ने मां दुर्गा का रूप धारण किया और ये 9 दिनों तक चला जिन 9 दिनों में भगवान मां देवी ने अलग-अलग रूपों में युद्ध किया।

जिनमे प्रथम दिन में माँ आदिशक्ति ने माँ शैलपुत्री का अवतार धारण किया, जिस रूप में माँ के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। द्वितीय दिवस में माँ पराम्बा ने मां ब्रह्मचारिणी का अवतार धारण किया, उनके रूप में दाहिने हाथ में जप की माला बाएं हाथ में कमण्डल है। तृतीय दिवस में माँ पराम्बा ने मां चंद्रघंटा का अवतार धारण किया। चतुर्थ दिवस में माँ पराम्बा ने मां कुष्मांडा का अवतार धारण किया। पंचम दिवस में माँ पराम्बा ने मां स्कंदमाता का अवतार धारण किया। छठवें दिवस में माँ पराम्बा ने मां कात्यायन का अवतार धारण किया। सप्तम दिवस में माँ पराम्बा ने मां कालरात्रि का अवतार धारण किया। अष्टम दिवस में माँ पराम्बा ने मां महागौरी का अवतार धारण किया। नवम दिवस में माँ पराम्बा ने मां सिद्धिदात्री का अवतार धारण किया। देवी ने माँ दुर्गा के रूप में दसवीं के दिवस पर महिषासुर का वध किया, जिसको दसवीं के तौर पर मनाते हैं। यह कहानी देवी भागवत में मिलती है।

हिंदू पौराणिक ग्रंथ रामायण के अनुसार भगवान राम जब जब माता सीता की रक्षा के लिए लंका गए। तो वहां चलने वाले संग्राम में रावण से युद्ध करना आसान नहीं था। इस तरह से वहां पर भगवान राम ने 9 दिनों तक मां देवी परांबा की आराधना की। और माँ परांबा, भगवान राम की आराधना से प्रसन्न होकर विजयीभव का वरदान दिया। रावण की मृत्यु इतनी आसान नहीं थी रावण की नाभि में अमृत कलश था, जो उसका भाई विभीषण जानता था। विभीषण ने भगवान राम को वध करने के लिए उसकी नाभि पर तीर साधने के लिए कहा और जिस तीर से रावण की मृत्यु होनी थी। वह तीर रावण की पत्नी मंदोदरी के पास था और वह तीर मंदोदरी और रावण के कक्ष में एक खंबे के अंदर था। और माँ पराम्बा के दिए हुए विजयीभव के वरदान से दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध किया। इस प्रकार से भगवान राम ने रावण का वध किया और उसको विजयदशमी के रूप में मनाया जाने लगा। क्योंकि भगवान राम ने दस सर वाले रावण का वध किया था, इसलिए उसको विजयदशमी का भी नाम दिया गया।

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दशहरा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विजयदशमी के पर्व को मानव की दस इंद्रियों से भी जोड़ा जाता है, मानव के पास दस इंद्रियां है। इन दस इंद्रियों में आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा शामिल है। और पांच कर्मेंद्रियां भी है, जिनमे हाथ, पैर, मुंह, गुदा और लिंग शामिल है। विजयदशमी पर्व के अनुसार हम मानव शरीर में इन दस इंद्रियों पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश करते है। जब मानव शरीर में इन दस इन्द्रियों को अपने वश में कर लेते है जो शरीर के वश में नहीं रहता है। इसलिए इन दस इन्द्रियों पर विजय को भी विजयदशमी के पर्व के रूप में मनाते हैं। आईए इस दशहरे के पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। कहानी भारत की ओर से आप ओर आपके परिवार के सभी सदस्यों को दशहरा पर्व की शुभकामनाये।

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