कलयुग का आरम्भ (राजा परीक्षित की कहानी)

कलयुग का आरम्भ (राजा परीक्षित की कहानी)
कलयुग का आरम्भ (राजा परीक्षित की कहानी)

अनसुलझे रहस्य में एक कहानी ऐसी भी आती है, जब हम सोचते हैं कि हम कलयुग में रह रहे हैं। क्या सच में हम कलयुग में है ? या फिर हमने अपने विचारो से उसको कलयुग बना दिया है। कलयुग का आरंभ कैसे हुआ उसके पूर्व कौन कौन युग थे। इस तरह के प्रश्न हमारे मन में आते है, आइए जानते हैं इस तरह के प्रश्न कि कलयुग का आरंभ कब और कैसे हुआ।

कलयुग के आरंभ होने से पहले पूर्व इस सृष्टि पर सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग का आरंभ हुआ। सतयुग में राजा हरिश्चंद्र जी की कहानी है जहां पर केवल सत्य ही धर्म है। जहाँ उन्होंने और उनके गुरु ने एक ही समय पर सपना एक जैसा देखा। कि मैंने अपना राज्य अपने गुरु को दान दे दिया है और सुबह उन्होंने राज्य दान में दे दिया। उसके पश्चात त्रेता युग में भगवान श्री राम का अवतरण होता है जहाँ भगवान श्री राम दुष्टों का नाश कर गए एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में इस जगत में प्रेरणा का स्त्रोत देते है। त्रेता युग के समापन के पश्चात द्वापर युग का आरंभ होता है, द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण भगवान नारायण के अवतार के रूप में प्रकट होते हैं। और धर्म का अनुसरण करते हुए सृष्टि के चराचर जीवो को जाग्रत करने के लिए गीता सुनाते हैं।

धर्म का पालन करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से किया। और अर्जुन और सुभद्रा के घर अभिमन्यु का जन्म हुआ, अभिमन्यु का विवाह उत्तरा से हुआ। उत्तरा के गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ। यह कथा भागवत में आती है। धन्य भागवती वार्ता। भागवत कि वार्ता धन्यता लाती है। सर्व सिद्धांत निष्पन्। सारे सिद्धांत इसमें छुपे हुए हैं। राजा परीक्षित इस धरती के स्वामी बन गए। और उनके राजा बनने के बाद कलियुग 32 वर्ष तक उनकी प्रतीक्षा करता रहा। एक दिन कलियुग, राजा परीक्षित के सामने आया, जब राजा परीक्षित का मन प्राण घातक हुआ। राजा परीक्षित का आखेट करने का मन बना। वे आखेट करने के लिए दक्षिण दिशा की ओर गए और कलयुग से राजा का साक्षात्कार हुआ।

राजा परीक्षित ने एक विचित्र सा प्राणी देखा जिसको पहचाना नहीं जा सकता है। तो कैसे राजा परीक्षित ने पहचान लिया, कई बार प्रकृति भी समय का बोध कराती है। यह कौन अशिस्ट प्राणी है, ना वह शील और संयम रखता है। चरित्रवान प्राणियों को देख करके अच्छा लगता है, साधु नाम दर्शनाम। कुछ औषधि ऐसी हैं, जिनके स्पर्श करने से ही बड़ी ऊर्जा मिल जाती हैं। राजा ने पहली बार एक व्यक्ति से पूछा कि मैंने एक दुस्साहसी व्यक्ति देखा है। तेरी आंखें लाल-लाल अंगारे की तरह सी दिख रही है। तेरी देह से दुर्गन्ध, बिखरे हुए बाल के साथ साथ छल भी दिख रहा है। तू दुस्ट प्राणी है, तूने बड़ा अपराध किया है। तूने प्रकृति के नियम और सारी मर्यादा तोड़ दी है। तू लोभ और अपने लाभ के लिए किसी के भी प्राण ले सकता है। क्या तूने कोई दुराचार किया है, क्या तूने कभी किसी अनायास किसी के प्राण छीन लिए है। कौन है ?

तब कलियुग कहता है कि मैं काल हूं। काल समय को कहते है, धरती पर जब सत्य आता है तब मैं सतयुग कहलाता हूं। जब सत्यता खो जाती है केवल यज्ञ रह जाता है, तो मैं त्रेता कहलाता हूं। जब दोनों सत्य और यज्ञ नहीं रहता है, तब दान रह जाता है। तो मैं द्वापर कहलाता हूं। और तब तीनो खो जाते हैं तो मैं कलयुग कहलाता हूं। कलयुग अर्थात मै अधीनता का युग हूँ। यंत्रों युग में कलयुग का अर्थ कलपुर्जो का युग हूं। वेदों में कहा है कि कलयुग में मशीनों का युग आएगा। मशीनों का युग तकनीक का युग आज हम देख सकते हैं। कितनी सूचना की तकनीक है, तो यह सारी चीजें सब चल रही है संचार का युग है। इस युग में अगर हमें कोई बात पूछनी है, तो आज हम अपने घर में नहीं पूछते हैं। आज हम लोग गूगल में ढूढ़ते है और वह खुल जाता है।

राजा परीक्षित ने बोला कि मशीन का युग है कल पुर्जो का युग है, तो तुझे चलाएगा कौन? तब कलियुग ने बताया कि जो कुछ भी मेरे अंदर डाल दोगे, मैं वैसा करूंगा। मैं पुण्य भी कर सकता हूं और पाप भी कर सकता हूं। मुझ में अगर अच्छी चीजें डालोगे तो मैं वरदान बन जाऊंगा नहीं तो मैं अभिशाप बन जाऊंगा। मेरे युग पर अंतहीन साधन होंगे, अपरिमित साधनों में वहां पर असंतोष होगा। मशीनों के आ जाने से स्वतंत्र चिंतन खो जायेगा। राजा ने बोला कि मेरे समय में ऐसा नहीं रह सकता। राजा परीक्षित के पास इतनी शक्ति थी कि वह युग बदल सकते थे। वेदों में भी इस तरह से लिखा हुआ है कि आप चाहें तो आप परिवेश और युग बदल सकते हैं। हम अपने विचारो से क्रांति ला सकते हैं, हम बदलेंगे युग बदलेगा। हम बदलेंगे परिवार बदलेगा। हमें अपने विचार बदलने की आवश्यकता है, हम जैसा सोचेंगे वैसा होगा।

तब कलयुग ने राजा परीक्षित से प्रार्थना की कि राजा मेरे प्राण मत लो मुझे सीमांकन कर सकते हो। मेरी मर्यादाओं का निश्चित और निर्धारित कर सकते हो। कि मेरा स्थान कहां रहेगा, राजा परीक्षित से कलियुग ने बोला कि आप जो बताएंगे उन उन स्थानों पर ही रहूंगा। राजा परीक्षित ने कलयुग के लिए स्थान निर्धारित कर निश्चित कर दिया। ऐसा कहते हैं कि राजा परीक्षित ने कलयुग के लिए चार स्थान निश्चित किया। राजा परीक्षित ने निश्चित किया, जहां पर अधर्म के गलियारे हैं। कलयुग आप यहां रहना राजा परीक्षित ने बोला हे कलयुग वहां रहना जहाँ बिना पात्रता योग्यता के धन है बिना श्रम साधन के जिनके पास धन आए आप वहां रहना उसे द्रुत कीड़ा कहेंगे उसे जुआं बोलते हैं। दूसरा व्यसन बताया जहाँ हम अपने शरीर के अंदर ग्रहण कर रहे हैं, जो निकोटिन की मात्रा के रूप में हो या फिर वह किसी शराब के मात्राओं के रूप में। तीसरा स्थान बताया गुरुओं के अश्रुओं में, बहनों के आंसू नहीं होने चाहिए। स्त्री के आँखों में अश्रु नहीं होने चाहिए।

अरस्तु ने जब सुकरात से पूछा कि गुरु आपको क्या हुआ। आप मुझे बताइए कि आपकी आंखों में अश्रु तब गुरु सुकरात ने कहा अरस्तु तुम मेरे आंसुओं को पोंछ नहीं पाओगे। तुमको पता है कि इस देश की संस्कृति नष्ट हो जाएगी।बेबीलोन की संस्कृति, इजिप्ट की संस्कृति नस्ट हो गई। वह आज पिरामिड में संकुचित हो गयी है। सारी संस्कृतियों खत्म हो गई हैं। जब राजा परीक्षित से पूछा कि अब मेरा चतुर्थ स्थान कहां रहूं, राजा परीक्षित ने बोला है कि आप व्यभिचार में रहे चाहे, वह स्त्री में हो या पुरुष में हो। दोनों में जब प्रदर्शन करने की भावना आ जाये आशक्ति आ जाए। जब हिंसा, सत्य को आधीन कर ले। आज के युग में शत्रु कौन जो हमारे विचारों के समर्थक नहीं है। जो हमारे विचारों का पक्षधर नहीं है, इंसान इंसान में शत्रुता कब आती है। जब अनीति के धन में ऐसा होता है कलियुग का वाश कहा हो। तेरा वास अनीति के स्वर्ण में हो तब कलयुग राजा के मुकुट के स्वर्ण में बैठ गया। किसी भी देश की करेंसी कितनी हो यह उस देश के सोना ही निर्धारित करता है। उस देश की करेंसी तय करती है कोई देश कितनी करेंसी छाप सकता है जितना उस देश के पास स्वर्ण हो।

कलयुग कहां है अनीति के स्वर्ण में। राजा परीक्षित ने अनीति के स्वर्ण से बना हुआ मुकुट पहन रखा था। तब कलयुग ने किसी और को नहीं पकड़ा, उसने राजा परीक्षित को पकड़ लिया। राजा की बुद्धि विचार जिस तरह से है वैसे उसकी प्रजा की बुद्धि हो गई। तो कलयुग का निवास उसके राजा के मस्तक पर हुआ। और अनीतियों का प्रारंभ हुआ, भागवत में कथा है कि उन्होंने तपस्या में लीन उनके गले पर अनानास मरा हुआ सर्प डाल दिया। ऋषि और वेद कहते हैं कि कलयुग कभी भी पूरा नहीं होता, बाकि सरे युग पूर्ण है।

जहाँ सत्य पूर्ण है, दान पूर्ण है, और यज्ञ पूर्ण है, इसी तरह से कभी भी कलयुग पूर्ण नहीं हो सकता, उसके कुछ ही स्थान निर्धारित है। वह कुछ ही जगह पर निवास करता है। अनीति के स्वर्ण में, छल में, हिंसा में, व्यभिचार में, व्यसन में और विचारों में। कलयुग में व्यक्ति दूसरों के बल पर उठना चाहता है। वह दूसरो के कंधो पर उठकर चलना चाहता है और उनके कंधों पर चलता है। वह जिंदा नहीं होता, वह मुर्दा होता है। तब ऋषि ने शाप दे दिया था राजा परीक्षित को, तब राजा परीक्षित के गुरु शुकदेव ने उनको ज्ञान दिया और राजा परीक्षित के स्वर्गवास होते ही कलयुग पूर्ण रूप से यहाँ इस सृष्टि पर निवास करने लगा।

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