कल्पवृक्ष (कल्पनाओ को पूर्ण करने वाला पेड़)

कल्पवृक्ष (कल्पनाओ को पूर्ण करने वाला पेड़)
कल्पवृक्ष (कल्पनाओ को पूर्ण करने वाला पेड़)

क्या इस धरती पर मानव की सारी आकांक्षाएं और उनका विश्वास पूरा हो सकता है? जिस तरह से हम अपनी कल्पनाओं को जाग्रत करते हैं जैसे हम अपनी कल्पनाओं को दूसरे व्यक्तियों तक पहुंचाते है। जैसा हम सोचते हैं वैसा हम बन जाते हैं, क्या कल्पना सच में साकार हो सकती है। यह हमारी मानसिक सोच पर निर्भर करता है, कि हमारी मानसिक सोच कितनी दृढ है। इस धरती पर कल्पना पूर्ण करने के लिए भगवान श्री कृष्णा ने कल्पवृक्ष का इंद्र लोक से आवाहन किया। कल्पवृक्ष के सारे पत्ते सुनहरे और मनमोहक है। कल्पवृक्ष समुद्र मंथन के समय सुमेरु पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से उत्पन्न हुआ था। और कल्पवृक्ष को इंद्रा के संरक्षण में इंद्रलोक में स्थापित कर दिया। यह कल्पवृक्ष उसी तरह से है जिस तरह से हम अपनी मन में कल्पना करते हैं और उन कल्पनाओं को साकार करने की कोशिश करते हैं। कल्पना का ही परिणाम इस सृष्टि का अस्तित्व है । आईये जानते है कल्पवृक्ष की कहानी भगवान श्री कृष्णा के समय से।

कल्पवृक्ष की कथा

आखिर कल्पवृक्ष इस सृष्टि पर कैसे आया।एक बार की बात है जब भगवान श्री कृष्ण और देवी सत्यभामा इंद्रलोक की रक्षा करने के लिए युद्ध करने गए। इंद्रलोक की रक्षा के लिए वह युद्ध बहुत लंबा चला और उस राक्षस ने इंद्रलोक पर आक्रमण किया था। उस राक्षस ने देवों की माता अदिति के कुण्डल चुरा लिए थे। तब भगवान श्री कृष्ण और देवी सत्यभामा ने उस राक्षस को हराकर देवी अदिति के कुण्डल वापस लिए। और उन्होंने सम्मान पूर्वक देवों की माता अदिति को वे सुनहरे कुण्डल वापस कर दिये। तब देवमाता अदिति ने भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को चिरयौवन का वरदान दिया। तब इंद्रलोक से इंद्र ने कल्पवृक्ष का एक पारिजात का पुष्प भगवान श्री कृष्ण को उपहार स्वरुप भेट दिया। और भगवान श्री कृष्ण ने वह पुष्प धरती लोक पर आकर देवी रुक्मणी को दिया, (देवी रुक्मणी साक्षात देवी लक्ष्मी का ही अवतार है) पारिजात के पुष्प को ग्रहण करते ही देवी रुक्मणी को भी चिरयौवन का वरदान मिल गया।

इस बात पर देवी सत्यभामा ने क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण से पारिजात का वृक्ष लाने के लिए की मांग करी। भगवान श्री कृष्ण ने नारद को इंद्र से पारिजात का वृक्ष धरती पर लाने के लिए मांग की। लेकिन इंद्र ने पारिजात का वृक्ष भगवान श्रीकृष्ण को देने से मना कर दिया। जब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा का उल्लंघन इंद्र ने किया। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र से युद्ध करना आरंभ किया, और उस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र इंद्र की ओर चलाया तब देवों की माता अदिति ने आकर इंद्र को भगवान श्री कृष्ण से बचाया। और उन्होंने इंद्र को पारिजात का वृक्ष भगवान श्री कृष्ण को देने के लिए कहा। देवमाता अदिति ने भगवान श्री कृष्णा से व्रत पूर्ण होने के बाद वृक्ष को धरती लोक से वापस लाने का आग्रह किया। और इस तरह से देवी सत्यभामा का वरदान सफल हुआ और उस कल्पवृक्ष के पुष्प से नए वृक्षों का निर्माण हुआ। तभी से इस धरती लोक पर पारिजात वृक्ष है और वह निवास करता है।

कल्पवृक्ष क्या है ?

एक कहानी के अनुसार कल्प वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति बैठा था। कहीं बहुत दूर से चलकर आ रहा था, वह बहुत ही ज्यादा थक गया था। वह कल्पवृक्ष के नीचे आराम कर रहा था। उसने वहां पर अपने मन में कल्पना की, कि मुझे सोने के लिए एक सुंदर और आलीशान बिस्तर की आवश्यकता है। जैसे ही उसने मन में अपनी कल्पना की। तुरंत ही उस कल्पवृक्ष ने उसके लिए एक नया बिस्तर प्रदान कर दिया। जब वह व्यक्ति बिस्तर पर आराम कर रहा था, जब वह व्यक्ति विश्राम करके जगा। उसने फिर अपने मन में कल्पना की कि मुझे अब कुछ खाने के लिए मिल जाए। और उस कल्पवृक्ष ने उसकी कल्पना को स्वीकार कर लिया। उसके सामने छप्पन भोग से लगा हुआ सारा सामान उसके सामने आ गया और फिर उसने सारा खाना खाया, और अपनी भूख शांत की।

अपनी भूख शांत करने के पश्चात ही उसके मन में कल्पना आयी, की क्या मुझे कुछ पीने के लिए मिल सकता है कल्पना करते ही उसके सामने देवलोक से अप्सराय उतरी, अप्सराओं ने उसके लिए जलपान की व्यवस्था की जब उसने जलपान कर लिया। तब उसने अपने मन में आकांक्षा की, कि अप्सराएं नृत्य करने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगी। इन सब कल्पनाओं के पश्चात जब उसका ध्यान इस ओर गया की यह अचानक से सारी चीजें प्रकट कैसे हो रही हैं। तब उसको यह लगा कि कहीं कोई यहां आस-पास कोई भूत तो नहीं है, जो यह सारी कल्पनाओं को स्वीकार कर रहा है। और यहां पर सब कुछ अपने आप हो रहा है। जैसे ही उसने भूत-प्रेत के बारे में सोचा उसके सामने बहुत सारे भूत एकत्रित हो गए। अब जब उसके सामने भूत आ गए भय के कारण व्यक्ति ने मन में कल्पना करी की कहीं यह भूत मुझे खा तो नहीं जाएंगे। जैसे ही उसने इस बारे में कल्पना करी वैसे ही तुरंत भूतों ने उसको खा लिया और उसको इस बात का एहसास नहीं हुआ। इस कहानी का आशय भी तो यही है की जैसा हम सोचते है वैसे हम हो जाते हैं। हमेशा अच्छा सोचे।

एक और कहानी के अनुसार दो व्यक्ति एक अहमदाबाद में और एक लखनऊ में रहते थे। एक व्यक्ति अहमदाबाद से लखनऊ की ओर आया तब लखनऊ में वह अपने रहने के लिए घर ढूंढने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसको कहीं पर भी जगह नहीं मिल पा रही थी उसने बहुत कोशिश की। फिर वह व्यक्ति वापस अपने परिवार के पास अहमदाबाद की ओर निकला। जब वह व्यक्ति लखनऊ से अहमदाबाद की ओर जा रहा था तभी वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठा। और उसने उस पेड़ के नीचे कल्पना कि मुझे लखनऊ में एक बहुत आलीशान घर मिल जाए जब वह वापस लखनऊ गया तब उसने देखा कि उसके पास अब एक आलीशान और एक बहुत बड़ा घर है। और जब वह व्यक्ति अहमदाबाद से लखनऊ की ओर वापस आ रहा था तभी वह एक पेड़ के नीचे उसका एक मित्र मिला। जब वह व्यक्ति अपने मित्र से मिला, उस मित्र ने उससे उसका हालचाल पूछा, उसने पूछा कि क्या तुम्हें लखनऊ में घर मिल गया जब उसने यह पूछा। तो उसने बोला कि नहीं मित्र मुझे अभी तक यहां पर कोई भी घर नहीं मिला है उसने जैसे ही ऐसा बोला था। वह व्यक्ति इस बात से अनजान था कि वह कल्पवृक्ष के पेड़ के नीचे खड़ा हुआ था। जब वह व्यक्ति वापस लखनऊ अपने उस स्थान पर गया। जहां उसने अपना घर लिया था उसने देखा और पाया कि अब वहां पर कोई भी घर नहीं है।

उसने आसपास के लोगों से और उन राहगीरों से पूछा। कि यहां पर हमारा घर था क्या आप लोगों ने मैं यहां पर कोई घर देखा है, राहगीरों ने बोला कि हमने यहां पर कुछ भी नहीं देखा है। जरूर आपको गलतफहमी हुई है, यहां पर कभी भी घर नहीं था। तभी उसके मन में विचार आया कि मैंने जब उस पेड़ के नीचे था। तो मैंने यह सोचा कि मेरा घर हो जाए तब मुझे घर मिल गया। लेकिन जब मैं रास्ते से वापस आ रहा था तब वह मित्र मिला और मैंने बोला कि मेरे पास अभी घर नहीं मिला है तो वहां उसके विचार के साथ ही उसका घर चला गया फिर उसको समझ में आया। कि यह सिर्फ कल्पवृक्ष के ही कारण संभव है वापस उसने बहुत ढूंढने की कोशिश करी लेकिन उसको वह पेड़ नहीं मिल पाया। इस कहानी का भी आश्रय यही है कि हम अपने मन की कल्पनाओं को इतना दृढ करे और उनको पूर्ण करने का निश्चय करे। इस भूमि पर 2 ऐसे पेड़ अभी भी है।

इन कहानियों का आश्रय मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है जिस प्रकार से मानव की कल्पना मात्र से ही सारे कार्य पूर्ण हो जाते हैं। हमें हमेशा अपने विचार शुद्ध रखने चाहिए। हम हमेशा अच्छा सोचे, अच्छे विचार हमारी मानसिकता को पवित्र बनाते है। इन सुविचारों से हमारे जल में गंगा प्रकट हो सकती है। आईये हम सब अच्छे विचार बनाये रखने की कोशिश करते है।

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