भगवान राम का प्रमाण

भगवान राम का प्रमाण
भगवान राम का प्रमाण

आईये राम को जानते है, भगवान राम ही सत्य है। इस जगत में रामसेतु एक प्रमाण है, जो लोग भगवान राम के होने का प्रमाण मांगते हैं। भगवान राम का अस्तित्व क्या है? लोग पूछते हैं क्या सच में रामसेतु है। क्या सच में भगवान राम के समय में राम सेतु का निर्माण हुआ है, आइए जानते हैं इसी तरह के कुछ प्रश्नो के उत्तर।

राम सेतु ही अपने आप में एक प्रमाण है। राम सेतु को अगर व्यक्त करें तो राम से तू है। यह अपने आप में ही एक प्रमाण है। कि मैं भगवान राम से हूं तो राम सेतु का अस्तित्व भी तेरे होने का प्रमाण ही है। भगवान राम को जानने को भारतीय बोलते है।

राम नहीं है नारा, वह विश्वास है। भौतिकता नहीं दिलों की प्यास है। राम नही मोहताज किसी के झंडों का सन्यासी, साधू या पंडो का। राम नहीं मिलते मंदिरो में घरों में। राम मिले है निर्धन की अश्रु धारा में। राम मिले है पंचवटी की छांव को। राम मिले हैं अंगद के पैरो को। राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को। राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को। राम मिलेंगे मर्यादा में जीने में। राम मिलेंगे हनुमान के सीने में। राम मिले हैं तटों में वनवासो में। राम मिले हैं केवट के विश्वासों में। राम मिले हैं अनुसूया की मानवता को। राम मिले सीता माता की पावनता को। राम मिले है ममता की मां कौशल्या को। और राम मिले हैं पत्थर बनी अहिल्या को। राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में, राम मिले शबरी के जूठे बेरों में। जहां स्नेह हैं, जहां प्यार है, जहां समर्पण हैं। और जहां मर्यादा है, वहां मेरे राम हैं।

सागर पार करने के लिए नल नीर ने जो राम-राम पत्थरों में लिखते सागर में छोड़ते जाते। कितना भारी पुरुषार्थ है जो छोटे छोटे कदम वाली गिलहरी सागर के तट से कंकड़ लेकर निर्माण में मदद कर रही हैं। एक छोटा सा जीव गिलहरी जो सागर के तट पर अपने शरीर को लोटपोट कर, अपने शरीर पर बालो में जमा करती और रामसेतु पर उस राह, पत्थरों पर जा करके अपने शरीर को झाड़ देती। भगवान हनुमंत लाल ने गिलहरी से बोला की हे गिलहरी योद्धाओं के चरणों के नीचे क्या कर रही है ? गिलहरी ने कहा मै प्रभु श्री राम का काम कर रही हूं। भगवान हनुमंत लाल ने बोला कि तू छोटी सी है तू योद्धा के पैरों के नीचे दब जाएगी। हनुमंत लाल ने थोड़ा सा मजाक में उसकी पूंछ दबा दी। तो वह गिलहरी ची ची की आवाज करने लगी और गिलहरी ने हनुमान को फटकार लगाई। क्यों तुम इतने बड़े हो तुमको इतने बड़े होने पर दम्भ है। ठाकुर को मुझसे इतना ही कार्य कराना था, तभी तो मुझे छोटा सा बनाया। नहीं तो वह भी मुझे योद्धा बना देते। मैं ऐसे कार्य करूंगी ची ची आवाज करते हुए गिलहरी प्रभु श्री राम के चरणों पर पहुंच गयी। और भगवान श्री राम ने गिलहरी को अपने हाथ पर रखा।

और भगवान श्री राम ने गिलहरी को हाथ फेरते हुए प्यार जताया। हम भारतीय वासियों का विश्वास है, गिलहरी के शरीर पर जो तीन लकीरे है। भगवान श्री राम की उंगलियों के निशान हैं, भगवान राम की दृष्टि केवल योद्धाओं पर ही नहीं अपितु उनकी दृष्टि एक छोटी सी गिलहरी के ऊपर भी है। कैसे काम आए, भारतीय कहते हैं, जो राम के काम ना आए वह बेकार जवानी है। वे पल बेकार हैं जो प्रभु राम के काम ना आए।

प्रभु राम को इतनी उत्सुकता थी, कि मेरे नाम के लिखे हुए पत्थर इन योद्धाओं ने सागर पर तार दिए और वह बड़ी अद्भुद शक्ति से समुद्र के ऊपर तैर रहे हैं। तो भगवान राम ने अकेले में जाकर इधर उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा है। वहां से एक पत्थर उठाया और उसको सागर में फेंका तो वह पत्थर डूब गया
। इधर उधर देखा कि कहीं कोई देख ना ले फिर उन्होंने फिर दूसरा पत्थर उठाया, और उसको छोड़ा तो वह भी डूब गया उठाया। और एक तीसरा पत्थर सागर में छोड़ा वह भी डूब गया पीछे मुड़कर देखा। तो भगवान हनुमंत लाल खड़े मुस्कुरा रहे हैं, भगवान प्रभु श्री राम ने कहा तुम यहाँ कब से खड़ा है यहां पर तो हनुमंत लाल ने कहा। कि मैं जब से पहला पत्थर डूबा है, तब से खड़ा हूं। भगवान ने हनुमंत लाल से कहा देखो मेरे नाम के पत्थर तर गए, देखो मेरे हाथ से छोड़े हुए पत्थर डूब गए।

भगवान हनुमंत लाल ने कहा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। कि जिसको आप अपने हाथों से छोड़ देंगे, उसका डूबना उसकी किस्मत है, उसकी नियत ही है। जिन लोगो को भगवान राम के होने का प्रमाण चाहिए उनकी भी यही दशा है, वह भगवान राम के छोड़े हुए इंसान हैं। इस जगत में भारतीयों के अलावा भगवान राम के नाम को कौन और समझ सकता है। इस भवसागर से तरने के लिए भी भगवान राम का स्मरण ही एक मात्र उपाय है। जब एक भारतीय नारी वनवासी गर्भ के दर्द को वन में जो ठहरी हुई है। तो वनवासियों की देवियां जब गर्भ के दर्द से तड़प जाती है, जहां उनके पास सुविधा नहीं है तब वे भगवान राम का नाम स्मरण करती हैं। जहां सुख सुविधाएं नहीं हैं वहां प्रभु का नाम लेते हैं। हम भारतीय भी एक दूसरे से जब मिलते हैं, तो एक दूसरे से हम जय सियाराम, जय श्री राम बोलते हैं। सिया और श्री तो एक ही है जिसमें श्री ही सीता माता ही है। यह तो रूप है शक्ति का । हम भारतीयों के तन मन में एक ही चीज गूंजती है, जय श्रीराम ! जय श्रीराम ! जय श्रीराम ! के नारे लगाने से पौरुष आता है चित्त में स्वाभाव उजागर होता है।

भगवान राम की खोज में तुलसीदास ने कहा। हम चाकर रघुवीर के, पाटो पडो दरबार। तुलसी का होंगे अब नर के मनसबदार। अगर हमें मजबूरी में मजदूरी ही करनी है, तो फिर किसी मरण धर्मा व्यक्ति के मजदूरी नहीं करेंगे। हम तो अपने भगवान श्री राम के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पण करेंगे। भारत देश में गुलामी सही। लेकिन हमने अपनी श्रद्धा को शिथिल नहीं होने दिया। भगवान राम के नाम के आश्रय के बल पर हमने धर्म धारण किया, स्थितियाँ अस्त व्यस्त हो गई। हमारी श्रद्धा हैं पर हमारी श्रद्धा में न्यूनता नहीं आई। भगवान राम संजीवनी है, भगवान राम धर्म का आधार है। अगर हम भारतीयों में कोई धन है तो वह भगवान राम ही धन है। भगवान राम नाम के धन से धन्य हो गए। सुख उनके पास आते है जो दूसरों की खुशियों में सुख होते हैं।

दुनिया उसी की है, जिसे मुस्कुराना आता है। और रोशनी भी उसी की है जिसको शमा जलाना आता है। ऐसे तो मंदिर गुरुद्वारे बहुत है दुनिया में, पर ईश्वर तो उसी का है जिसे सर झुकाना आता है। ऐश्वर्या वही होता है, जहां ईश्वर का स्मरण होता है।

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