आज का भारत (भारत की कल्पना)

आज का भारत (भारत की कल्पना)
आज का भारत (भारत की कल्पना)

क्या हमने सोच कर देखा है ? जैसा आज का भारत है, क्या वैसा ही भारत पहले भी था। आज भारत अलग-अलग भाषाओं और अलग-अलग जातियों में बटा हुआ है। क्या पुरातन भारत भी ऐसा था ? आज के भारत में हम अपनी पुरातन संस्कृति को भूल रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाए वे नियम आज हमें जंजीरों की भांति दिखाई देते हैं। क्या यह नियम वास्तव में जंजीर है ? या इन्होंने सिर्फ हमारी मानसिकता को ही पकड़ कर रखा हुआ है। आज के भारत में स्त्री को निरादर सहना पड़ता है, वास्तव में तो वह परांबा है। वह ईश्वर ही है, हमारे देश भारत में स्त्री का सम्मान इस तरह से है, यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, तत्र रमंते देवता। अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवता (नारायण) निवास करते है।

भारत की कल्पना

क्या पुरातन समय में भी भारत में ऐसा ही समय था ? क्या हमारे देश में भारत राष्ट्र के लिए अपनी जान देने वाले वीर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, खटवांग, आल्हा उदल, पृथ्वीराज चौहान जैसे अनेक वीरों ने इस भारत की कल्पना की थी ? क्या इस देश में नारी का सम्मान इतना ही है, नारी तो वास्तव में ईश्वर का रूप है। आज के समय में भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बट कर रह गया है, क्या पुरातन समय में भारत में ऐसा था ? शायद नहीं उस समय भारत एक सौराष्ट्र था जहां हमारी नजर जाती वहां तक हमारी सीमाएं थी हमारी सीमाएं गांधार और अनेकों बड़े-बड़े राज्यों के साथ थी । 

भारत का कुटुंब

आज के भारत में हम एक दूसरे को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं, आज के समय में हम स्त्री के सम्मान की रक्षा करना नहीं जानते। आज के समय में हमें रिश्तो की मर्यादाओं का ज्ञान नहीं है। हमने अपने रिश्तो की मर्यादाओं को त्याग दिया। शायद हमारा देश भारत ऐसा नहीं था, भारत तो वह भूमि है जहां पर ईश्वर ने मानव की कोख से जन्म लिया। कभी ईश्वर राम बनकर आए, तो कभी ईश्वर कृष्ण के रूप में आए और पापियों का संघार किया। हमारे देश में अनेकों ऐसे वीर हुए, जिन्होंने इस देश की भूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को भी न्यौछावर कर दिया।

भारत का नाम

हमारे भारत देश का नाम, भरत के नाम पर पड़ा। वह राजा भरत जिनके साहस और वीरता के पराक्रम की कहानी आज भी भारतीयों के मन और मस्तिष्क में गूंजती है। वह भरत जिन्होंने अपने साहस से बचपन में शेर के दांत गिने थे। 

भारत की स्त्री का सम्मान

हमारे भारत में तो पुत्रो को उनकी माता के नाम से जाना गया। हमारे भारत में स्त्री का इतना सम्मान, हम सब जानते हैं, कि महाभारत काल में कर्ण  को राधे के नाम से जाना गया। कर्ण को उनकी माता कुंती ने लोक लाज की लज्जा से नदी में प्रवाहित कर दिया था। तब वहां सारथी अधिरथ ने उनका लालन-पालन किया। युद्ध के अंतिम दिनों में भगवान कृष्ण ने उन्हें कुंती पुत्र होने का सच ज्ञात कराया। इसी प्रकार हम सब जानते हैं धनुर्धारी अर्जुन को कुंती पुत्र के नाम से जानते हैं। गीता में भी भगवान कृष्ण ने अनेकों बार अर्जुन को कौन्तेय कहकर पुकारा था ।

भीष्म जिन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। और कुरु वंश की रक्षा की प्रतिज्ञा करने वाले को भी गंगा पुत्र के नाम से जाना गया। रामायण काल में भगवान श्रीराम को कौशल्या पुत्र के नाम से जाना गया। शायद हमारे देश में पिता के नाम पर लोगों को बाद में जाना गया, पर एक स्त्री के सम्मान की मर्यादा रखना हमारे देश में सिखाया। 

भारत का शास्तार्थ

हमारे देश में दो विद्वानों के मध्य हुए संवादों में वह कोई गार्गी या मैत्री होती थी। जो यह निर्णय करती थी, कि विजेता कौन है। आचार्य मिश्र और आचार्य शंकराचार्य के मध्य हुए आध्यात्मिक संवाद की निर्णायक गार्गी थी। इसका अर्थ यह हुआ, कि हमारे देश भारत में 2 विद्वानों से भी एक श्रेष्ठ विदुषी थी।जो यह निर्णय कर सकती थी, कि विजेता कौन है। ऐसा था मेरा भारत आज के भारत में भी एक माँ ही तो अपने पुत्र या पुत्री को संस्कार सिखाती है, वही तो विद्वान है। जो इस देश के संरक्षक के लिए शिवाजी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, और ना जाने कितने वीरों को जन्म देती है। और कितने ही वीर अपनी मां मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं, ऐसा है मेरा भारत !

भारत के बारे में ह्वेन त्सांग के विचार

एक चीनी बौद्ध भिक्षु दार्शनिक, ह्वेन त्सांग ने जब भारत के गांधार राज्य में अपना कदम रखा। और उसने कई वर्षों तक भारत के कई अलग-अलग राज्यों में भ्रमण करके यहां की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था को जाना। जिस समय चीनी दार्शनिक ह्वेन त्सांग भारत के राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में कई राज्यों में भ्रमण कर रहा था। तब उसने भारत के बारे में यह कहते हुए वर्णन किया, यहाँ कोई गरीब नहीं है, यह देश है यहां जल पीने के लिए नहीं अपितु चरण धोने के लिए मिलता है। यहां आपने प्यास बुझाने के लिए गाय का दूध और चीनी मिलती है, ऐसा मेरा भारत है !

मैना देवी का पराक्रम

हमारे देश में कई आततायियों ने आक्रमण किए, और हमारे देश में वीरो ने भारत की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों को हंसते-हंसते समर्पण कर दिया। जब अंग्रेजों ने नाना साहब की पुत्री मैना से उनका पता पूछा, तब उस 13 वर्ष की राजकुमारी मैना ने उनका पता बताने से इनकार कर दिया। तब अंग्रेजों ने बड़ी निर्दयता से नैना को जलती हुई आग की भट्टी में झोंक दिया। तब उस आधी जली हुयी बच्ची से अंग्रेजों ने पूछा कि नाना साहेब कहां हैं। तब मैना देवी ने हंसते-हंसते अंग्रेजों से कहा, मेरी जैसी हजार स्त्रियां अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार है। तब अंग्रेजों की रूह कांप उठी, ऐसा है मेरा भारत ! 

नव भारत की कल्पना

क्या आज हमारे भारत देश की व्यवस्था इतनी कमजोर है, कि हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं। क्या पढ़ रहे हैं ? हमें इस बात का भी ज्ञान नहीं है। हमारे रिश्तो में नाना-नानी, दादा-दादी हमें उन वीरों की कहानियां सुनाते थे। और उन कहानियों के माध्यम से हम रोमांचित हो जाते थे। हम शील धर्म संयम सदाचार सीखते थे। शायद आज के भारत में हम कहीं खो गए हैं, हमें अपने देश भारत को बचाना है। हमें उन वीरों के पराक्रम को स्मरण करना है। हमें फिर से पश्चिम की संस्कृति को छोड़कर, भारत की संस्कृति को अपनाना है। और अपने को सामर्थ्य और समृद्धशाली बनाना है। आज भी हमारे भारत देश में विश्व गुरु बनने की सामर्थ्य है। आइए विश्व गुरु भारत को नमन करते हैं, और मेरे भारत को भारत बनाते हैं। ऐसा है मेरा विश्व गुरु भारत !

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