सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार

ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः ।
ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगये नमः ।
ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
ॐ मरीचये नमः ।
ॐ आदित्याय नमः ।
ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।
ॐ भास्कराय नमः ।

मंत्र उत्पत्ति : सूर्य नमस्कार मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है, सूर्य संस्कृत शब्द है सूर्य से ही सृष्टि में जीवन के विकास का क्रम है। सृष्टि में जल, थल और नभ में रहने वाले जीव चर, अचर सभी सूर्य पर ही निर्भर है। सूर्य के बिना इस सृष्टि में जीवन का विकास संभव नही है। इसलिए हमारे पूर्वजो ने इस सृष्टि में सूर्य को नमस्कार करने के बारह मंत्र दिए है। इन बारह मंत्रो से हम सूर्य को अपना अभिवादन प्रकट करते है।

सूर्य नमस्कार की उत्पत्ति समर्थ गुरु रामदास ने की थी, वे भगवान सूर्य के भक्त थे, और महाराज शिवाजी के गुरु भी थे। समर्थ गुरु रामदास ये क्रियाये करते थे उसके पहले यह सूर्य नमस्कार आदित्य हृदय स्त्रोत्र में मिलता है आदित्य हृदय स्त्रोत्र रामायण के युद्ध कांड में मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र ऋषि अगस्त ने भगवान श्री राम को दिया था। उन्होंने भगवान श्री राम को भगवान सूर्य की आराधना करने की शिक्षा दी थी। यह मंत्र दुश्मनो से लड़ने में सहायता करता है और भगवान सूर्य की कृपा से दुश्मनो पर विजय प्राप्त होती है।

1. सूर्य नमस्कार की बारह क्रियाये है जिनमे पहले मंत्र में भगवान सूर्य को हाथो से प्रणाम करते है जिसे प्रणामासन कहते है।
2. दूसरी क्रिया में भगवान सूर्य को हाथ ऊपर करके प्रणाम करते है इस क्रिया को हस्त उत्तानासन कहते है।
3. तीसरी क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपने पैरो को हाथो से स्पर्श करके प्रणाम करते है, इस क्रिया को उत्तानासन कहते है।
4. चौथी क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपनी कमर को पीछे झुका कर प्रणाम करते है इस क्रिया को अंजनेयासना कहते है।
5. पांचवी क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपने सर को नीचे झुका कर प्रणाम करते है, इस क्रिया को अधो मुख स्वानासन कहते है।
6. छटवी क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपना शरीर झुका कर प्रणाम करते है, इस क्रिया को अष्टांग नमस्कार कहते है।
7. सातवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपना मुख उठा कर भगवान सूर्य को प्रणाम करते है, इस क्रिया को उर्ध्व मुख स्वानासन कहते है।
8. आठवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपनी क्रिया को वापिस शुरू कर उसी मुद्रा में वापिस जाते है, इस क्रिया को अधो मुख स्वानासन कहते है।
9. नौवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपनी कमर को पीछे झुका कर प्रणाम करते है इस क्रिया को अंजनेयासना कहते है।
10. दसवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को अपने पैरो को हाथो से स्पर्श करके प्रणाम करते है, इस क्रिया को उत्तानासन कहते है।
11. ग्यारहवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को हाथ ऊपर करके प्रणाम करते है इस क्रिया को हस्त उत्तानासन कहते है।
12. बाहरवीं क्रिया में हम भगवान सूर्य को हाथ जोड़ कर प्रणाम करते है जो प्रणाम की मुद्रा में वापिस जाने की क्रिया होती है।

1. पहले मंत्र में हम सृष्टि के मित्र को प्रणाम करते है, सूर्य इस सृष्टि के सभी प्राणियों के मित्र है ।
2. दूसरे मंत्र में प्रकाशवान सूर्य को हम प्रणाम करते है।
3. तीसरे मंत्र में क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम करते है जो इस संसार के प्रत्येक प्राणी को क्रिया करने के लिए प्रेरित करते है।
4. चौथे मंत्र में भगवान सूर्य जो संसार को प्रदीप्त करते है, को प्रणाम करते है।
5. पांचवे मंत्र में भगवान सूर्य को आकाश (नभ) में रहने वाले प्राणियों को आशीर्वाद प्रणाम करते है, को प्रणाम करते है।
6. छटवे मंत्र में जो भगवान सूर्य इस सृष्टि को पोषक प्रदान करते है, को प्रणाम करते है।
7. सातवे मंत्र में इस संसार के भगवान विश्वात्मा को प्रणाम करता हूँ।
8. आठवे मंत्र में इस संसार में भगवान सूर्य की किरणों जो ऊर्जा प्रदान करती है प्रणाम करता हूँ।
9. नौवे मंत्र में सभी देवताओ की माता अदिति को प्रणाम करता हूँ।
10. दसवे मंत्र में भगवान सूर्य जो प्रकाश बिखेरते है प्रणाम करता हूँ।
11. ग्यारहवे मंत्र में ऊर्जा के स्तोत्र को प्रणाम करता हूँ जो इस संसार में ऊर्जा के प्रतिनिधि है।
12. बारहवे मंत्र में आत्मज्ञान प्रेरक सूर्य को प्रणाम करता हूँ।

इन बारह मंत्रो में हम भगवान को प्रणाम करते है, इन क्रियाओं को करने से मानव शरीर में सभी योगो को करने में लाभ मिलता है।

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