सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता |
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ||

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता |
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं |
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌ ||

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ |
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ||

मंत्र उत्पत्ति : माँ सरस्वती की पूजा का विधान हिन्दू शाश्त्र में युगो से रहा है। जब किसी बालक का बाल्यपन होता है तो उसकी माँ उसे विद्या का ज्ञान प्रारम्भ करती है। माँ सरस्वती की पूजा सुबह होते ही ध्यान करने के साथ होती है। माँ सरस्वती विद्या की देवी है, जिस पर माँ सरस्वती की कृपा होती है उस व्यक्ति को सफलता की सीढ़िया मिल जाती है।

विद्यार्थी को हमेशा माँ सरस्वती की वंदना करनी चाहिए। विद्यार्थी को अपनी पढाई की शुरुआत माँ सरस्वती के ध्यान के साथ करना चाहिए। माँ सरस्वती के ध्यान से मन शांत और प्रफ्फुलित रहता है, माँ सरस्वती का कमल के पुष्प पर विराजमान होना मन को प्रसन्नता प्रदान करता है। माँ के एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वेद है। वीणा संगीत का प्रतीक है जो विद्यार्थी को संगीत में रूचि लेने का निर्देश करती है। और दूसरे हाथ में वेद जो विद्यार्थी को अध्ययन के लिए प्रेरित करती है।

मंत्र अर्थ : मै विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है।
जिनके हाथ में वीणा शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है।।

ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं।
वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।।

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो संपूर्ण जगत में व्याप्त है ।
जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, अन्धकार को दूर करती हैं।।

हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं।
और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ।।

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