कोरापुझा़ नदी को इलाथुर नदी के नाम से भी जाना जाता है। इस नदी का बहाव छोटा जरूर है पर ऐतिहासिक दिनों से यह नदी अत्यंत आवश्यक भूमिका निभाती आ रही है। यह केरल के कोझी़कोड जिले (जो कभी मसालों के व्यापार का प्रमुख बिंदु हुआ करता था) से होकर बहती है। कोरापुझा़ नदी पश्चिमी तट अंतर्देशीय नेविगेशन प्रणाली का हिस्सा है। इस नदी के पिछले 25 किलोमीटर (16 मील) में भारी नाव यातायात है। निम्नलिखित खंडों में हम इस नदी के जल निकासी के विवरण पर चर्चा करेंगे, साथ ही हम इसके सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व पर भी आलोकपात करेंगे।
कोरापुझा़ नदी का प्रवाह-
कोरापुझा़ नदी दो धाराओं के संगम से बनती है, जो हैं, अकालपुझा़ नदी और पुनूरपुझा़ नदी। पुनूरपुझा़ नदी वायनाड जिले के पहाड़ों से बहना शुरू करती है जबकि अगलापुझा़ नदी केरला के बैकवाटर का हिस्सा है। कोरापुझा़ नदी 610 मीटर (2000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित अरीक्कनकुन्नी से बहने लगती है। यह एक छोटी नदी है जो 40 किलोमीटर या 25 मील तक बहती है। इस नदी का जलग्रहण क्षेत्र 642 वर्ग किलोमीटर ( 241 वर्ग मील) है। कोरापुझा़ नदी अंत में एलाथुर नामक स्थान पर अरब सागर में विलीन हो जाती है। यह नदी और उसकी मुख्य सहायक नदियाँ अरब सागर के पास ज्वार-भाटा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदारी होती है।
कोरापुझा़ ब्रिज-
कोरापुझा़ पुल कोझी़कोड जिले का सबसे लंबा पुल है। इस पुल का परिवेश हरा-भरा और दर्शनीय है। इस ब्रिज की कुल लंबाई 480 मीटर है। इस ब्रिज का निर्माण 1940 में पूरा हुआ था और इसमें 13 स्पैन हैं। इसका निर्माण गांधीवादी के. केलप्पन के तत्वावधान में किया गया था। यह काफी समय से जर्जर अवस्था में था, इसीलिए अधिकारियों ने एक नया पुल बनाने का फैसला किया, जिसका निर्माण अब पूरा हो चुका है। केरल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड ने इस उद्देश्य के लिए धन उपलब्ध कराया था।
कोरापुझा़ नदी का ऐतिहासिक महत्व-
कोझी़कोड केरल का एक तटीय शहर है। यह एक महत्वपूर्ण मसाला व्यापार केंद्र रहा है। औपनिवेशिक शासन से पहले, कोरापुझा़ नदी का उपयोग अक्सर आसपास के गांवों के व्यापारियों द्वारा किया जाता था। व्यापारी अपने माल को कोरापुझा़ नदी से होते हुए कालीकट के प्राचीन बंदरगाह शहर बेपोर तक ले जाते थे। यह क्षेत्र कप्पड समुद्र तट के करीब है, जहां पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डी गामा 1498 में आए थे। इसलिए, कोरापुझा़ नदी ने व्यापार में अपना महत्व विकसित किया। केरल के सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक इतिहास में कोरापुझा़ नदी का बहुत महत्व है।
कला और संस्कृति में कोरापुझा़ नदी का महत्व-
कोरापुझा़ नदी ने कला, साहित्य और राजनीति के क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित हस्तियों को भी प्रेरित और प्रभावित किया है। प्रसिद्ध कथकली कलाकार चेमनचेरी कुन्हीरमन नायर इसी क्षेत्र से हैं। लेखक यू.ए. खादर और गीतकार गिरीश पुथेनचेरी को भी इस नदी से अपने काम की प्रेरणा मिली है और वे कोझी़कोड जिले से ताल्लुक रखते हैं। केरल के दसवें मुख्यमंत्री, श्री सी. एच. मोहम्मद कोया भी कोझी़कोड जिले के अथोली ग्राम पंचायत के थे।
कोरापुझा़ नदी से संबंधित स्थानीय रूढ़िवादी संस्कृति-
ऐतिहासिक काल से, स्थानीय लोगों ने कोरापुझा़ नदी को अपनी संस्कृति और मानदंडों से जोड़ा है। पूर्ववर्ती मालाबार जिले में, पिछली शताब्दी में, कोरापुझा़ नदी को आम तौर पर उत्तरी मालाबार और दक्षिण मालाबार के बीच की घेराबंदी के रूप में माना जाता है। 20वीं सदी तक उत्तरी मालाबार की नायर महिलाओं को दक्षिण मालाबार के पुरुषों से शादी करने की अनुमति नहीं थी। उत्तरी मालाबार की नायर महिलाओं को कोरापुझा़ नदी पार करना और दक्षिण जाना या दक्षिण मालाबार के किसी व्यक्ति से शादी करना वर्जित माना जाता था। इस नियम का उल्लंघन करने वालों को बहिष्कार का सामना करना पड़ता था और अपनी जाति की जब्ती का सामना करना पड़ा था। इसी तरह थिया समुदाय में भी कुछ मतभेद देखे जा सकते हैं।
कोरापुझा़ नदी में पर्यटन-
कोरापुझा़ नदी पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसलिए यह नदी कोझी़कोड जिले के लोगों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है। पर्यटकों के लिए, कोरापुझा़ नदी पर नौका विहार एक दिलचस्प गतिविधि है। इस नदी पर क्रूज एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है क्योंकि यह इस नदी के दोनों किनारों पर हरियाली रहती है जो प्रकृति के विस्मयकारी सौंदर्य को उजागर करती है। नदी के दोनों किनारों पर कुछ इरुमीन केट्टू और केमीन केट्टू (पारंपरिक मछली पकड़ने के तरीके) भी पर्यटकों के लिए बहुत दिलचस्प होते हैं। कोरापुझा़ नदी सीपों का केंद्र है। कई पर्यटक इस नदी में मछली पकड़ना भी पसंद करते हैं क्योंकि यहां मछलियों की कई किस्म पाए जाते हैं।
Published By
Anwesha Sarkar
02-07-2021