पावनखिंड का युद्ध

पावनखिंड का युद्ध
पावनखिंड का युद्ध

छत्रपति शिवाजी महाराज के लगातार विजय के साथ ही मराठा साम्राज्य का विस्तार भारत के दक्षिणी हिस्सों में बढ़ता जा रहा था। प्रतापगढ़ और उसके बाद कोल्हापुर में शर्मनाक हार स्वीकार ने के बाद मुगल सेना किसी भी तरह से छत्रपति शिवाजी को रोकना चाहती थी।

मुख्य बिंदु :




  • #वर्ष - जुलाई, 1660 ईस्वी

  • #युद्ध - 300 मराठा सेना बनाम 1000 मुगल सेना

  • #परिणाम - मुगलों की करारी हार 



कोल्हापुर की युद्ध में बुरी तरह से हारने के बाद रणनीति बनाते हुए मुगल सेना ने शिवाजी को पन्हाला के किले में घेर लिया था। शिवाजी किले के अंदर थे और किले को बाहर से हजारों की संख्या में मुगलों की सेना ने चारों तरफ से घेरा हुआ था। लगभग 4 महीने तक यह घेराबंदी का दौर चला। आदिलशाही सेना किले के अंदर राशन पानी जाने के सारे रास्तों को बंद कर के बैठी थी। उधर आदिलशाही सेना किले को कब्जा करने के लिए पास के ही एक अन्य दुर्ग, पवनगढ़ दुर्ग पर कब्जा करने के लिए गोलीबारी शुरू कर चुकी थी पवन गढ़ दुर्ग से पन्हाला किले पर विजय प्राप्त करना आसान माना जा रहा था।

 

सुरक्षा दृष्टि से विशालगढ़ किले की तरफ प्रस्थान

शिवाजी ने सोचा पन्हाला किले में रहकर ज्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रहा जा सकता। इसलिए उन्होंने विशालगढ़ किले की तरफ प्रस्थान करने की योजना बनायी। लेकिन बाहर आदिलशाह की सेना थी। बाहर निकलना मुश्किल था। एक रात जब मुगल सेना पवनगढ़ के किले पर गोलीबारी करने में व्यस्त थी, तब अचानक अपने 700 वीर मराठा सैनिकों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज ने दुर्ग से बाहर निकलकर मुगलों पर हमला कर दिया। इस अचानक हुए हमले से मुगलों में खलबली मच गई, अफरा-तफरी का माहौल बन गया और चीख पुकार मच गयी। इसका फायदा उठाकर शिवाजी अपने 700 रणबांकुरों के साथ विशालगढ़ की तरफ निकल पड़े। 



महज 100 सैनिकों ने मुगलों के हजार सिर उड़ायें

मुश्किलें खत्म नहीं हुई थी। आदिलशाही सेना को जैसे ही इस बात का पता चला कि शिवाजी विशालगढ़ की तरफ जा रहे हैं, उन्होंने शिवाजी को घेरने के लिए सिद्धि मसूद उर्फ सिद्धि जौहरी के नेतृत्व में 10 हजार सैनिकों का एक जत्था भेजा। शिवाजी विशालगढ़ की तरफ जा रहे थे। पीछ-पीछे उन्हें पकड़ने के लिए सिद्धि मसूद के नेतृत्व में 10,000 मुगलों की फौज आ रही थी और विशालगढ़ पर भी आदिलशाही सेनाओं का वर्चस्व था। यानी आगे भी दुश्मन थे और पीछे दुश्मन।



शिवाजी ने इसका मुकाबला करने के लिए एक रणनीति बनायी। उन्होंने अपनी विश्वसनीय और जांबाज बहादुर बाजी प्रभु देशपांडे को बुलाकर उन्हें पीछे से आ रही मुगलों की सेना को रोकने की बात कही। बाजी प्रभु ने इसे सहर्ष स्वीकार किया। सेना दो हिस्सों में बट गयी। शिवाजी 400 सैनिकों के साथ सुरक्षित विशालगढ़ की तरफ प्रस्थान कर गयें। उन्होंने जाते-जाते कहा कि किले पर पहुंचकर वह वहां से तोप के धमाके करेंगे, जिससे यह सुनिश्चित होगा शिव असुरक्षित किले में पहुंच चुके हैं। इधर घोड़खिंड नामक दर्रे के बीच 300 मराठा सैनिकों के साथ बाजी प्रभु देशपांडे सिद्धि मसूद की आ रही मुगल सेना का सामना करने के लिए रुके। दो पहाड़ी को बीच का रास्ता है। इस रास्ते से एक बार में बहुत कम सैनिक आ-जा सकते हैं। घोड़खिंड में बाजी प्रभु देशपांडे ने अपनी सेनाओं को सटीक स्थान और सटीक निशाने के साथ खड़ा कर दिया। जैसे ही मुगलों की सेना वहां पहुंची, 300 मराठा वीर 10000 के भेड़ बकरियों वाली मुगल की सेना पर दहाड़ती हुई टूट पड़ी। भीषण रक्तपात हुआ। हरी-भरी पहाड़ी खून से लाल हो गई। घण्टे भर में जमीन लाशों से पट गयी।



जीत के बाद मुगलों की तोड़ी गर्दन

बाजी प्रभु के भाई फुलाजी प्रभु और शंभू सिंह युद्ध के दौरान मारे गयें। बाजी प्रभु भी घायल हुए हैं, लेकिन उन्होंने लगभग 5 घंटे तक चले इस युद्ध में कई बार मुगलों की विशाल सेना को पीछे धकेल दिया, ताकि कोई छत्रपति शिवाजी महाराज के रास्ते में बाधा उत्पन्न न कर सके। घोड़ा खिंड से विशालगढ़ लगभग 60 किलोमीटर दूर था। 5 घंटे के बाद छत्रपति शिवाजी विशालगढ़ किले पर पहुंचकर वहां से सुरक्षित संदेश देने के लिये तोपें दागी। तब तक घोड़खिंड के पहाड़ियों में 1000 से ज्यादा मुगलों की लाशें बिछ चुकी थी।

 

शिवाजी का संदेश मिलते ही निर्धारित योजना के अनुसार बाजी प्रभु देशपांडे अपने बचे हुए सैनिकों के साथ जंगल में गायब हो गए। मुगल की सेना जान बचाकर इधर उधर मुंह ताकती रही। इस युद्ध के गौरवमयी विजय के बाद घोड़ा खिंड का नाम बदलकर पावनखिंड कर दिया गया, क्योंकि यह धरती वीर मराठाओं के अदम्य साहस और खून से पावन हो चुकी थी। इस जीत के बाद शिवाजी ने विशालगढ़ के किले में अपने सैनिकों को फिर से संगठित किया और उसके बाद मुगलों की सेना पर जोरदार हमला किया। सिद्धि मसूद युद्ध के मैदान में महाकाल के स्वरूप को देखकर भाग खड़ा हुआ। मुगलिया हुकूमत एक बार फिर हिंदू स्वराज के सामने घुटनों पर गिड़गिड़ाता हुआ नजर आया। 



पावनखिंड और बाजी प्रभु देशपांडे की अमर गाथा आज भी बच्चों को सुनायी जाती है। कई विदेशी लेखकों ने भी पावन खिंड के युद्ध को बेहतरीन प्रतिरक्षण युद्ध के तौर पर देखा और मराठा वीरता को नमन किया है।

Published By
Prakash Chandra
10-03-2021

Frequently Asked Questions:-

1. पावनखिंड का युद्ध कब हुआ था ?

जुलाई, 1660 ईस्वी


2. पावनखिंड का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

300 मराठा सेना और 1000 मुगल सेना


3. पावनखिंड के युद्ध का परिणाम ?

मुगलों की करारी हार


Related Stories
Top Viewed Forts Stories