पालखेड़ का युद्ध

पालखेड़ का युद्ध
पालखेड़ का युद्ध

18 वीं शताब्दी के मध्य आते-आते मुग़लों और उसके वंशजों में फूट पड़ चुकी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदू स्वराज्य के सपने को मराठा और पेशवा मिलकर सींच रहे थे। मुगलों ने मराठाओं का साथ देना शुरू कर दिया था और जो थोड़े बहुत मुगलची हुकूमत खिलाफ में खड़े होने की जुर्रत कर रहें थे, उन्हें काट कर उन्ही के कब्र में गाड़ दिया गया था। यह वो दौर था, जब राजनैतिक हत्याएं कई सल्तनत में सर उठा रही थी। कहानी भारत की के इस अंक में हम पालखेड के युद्ध के बारे में पढ़ने जा रहे हैं, जिसे दो प्रबल शत्रु पेशवा बाजीराव प्रथम और निजाम उल मुल्क आसिफजांह प्रथम के बीच लड़ा गया था।

क्या था माहौल...

सीधे युद्ध के मैदान में चलने से पहले आपको थोड़ी सी इस कहानी के पृष्ठभूमि की तरफ ले चलते हैं। 18 वीं सदी की शुरूआत तक औरंगजेब की मृत्यु हो चुकी थी। 1707 में बहादुर शाह प्रथम जिसे शाह मुअज्जम भी कहा जाता था, दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसी बीच मुगल सल्तनत में सईद बंधुओं ने कब्जा करना शुरू कर दिया। वे देखते ही देखते राजा को अपनी उंगली पर नचाने लगें। कई राजनीतिक हत्याएं हुई। बहादुर शाह प्रथम, फिर उसके बाद जहांदार शाह, उसके बाद फर्रूखसियर और फिर मोहम्मद शाह को बारी बारी से मरवा दिया गया। हुकूमत सईद बंधुओं ने अपने हाथ में ले ली। मुगल सल्तनत अब राजा का नहीं बल्कि राज चलाने वालों का गुलाम बन गया।



दक्षिण में बैठे थे दबंग पेशवा

दक्षिण में मराठा सैनिक और पेशवा अपने आधिपत्य का परचम पूरे दक्षिण भारत में लहरा रहे थे और आधा हिंदुस्तान अपनी तलवार की धार पर जीत कर मुगलों को दिल्ली की सीमाओं में बांध दिया था। हालात ऐसे थे की दक्कन में मुगल शासकों को चौथ और सरदेशमुखी टैक्स के रूप में पेशवाओं को देना पड़ता था, यानी मुगल सल्तनत को आजादी का कर्ज पेशवाओं के आगे चुकाना पड़ता था। दिल्ली की मुगल सल्तनत ने दक्षिण में कदम बढ़ाना ही छोड़ दिया था। 

सईद बंधुओं की हत्या के बाद 1724 में आशफ जांह प्रथम हैदराबाद का निजाम बना। उसने पेशवाओं को टैक्स देना बंद कर दिया। पेशवा ने निजाम को मासूम बच्चा समझकर इस बात की शिकायत उसके अभिभावक दिल्ली में बैठे हुकूमत से की। दिल्ली की हुकूमत ने पेशवा की शिकायत मिलते ही फौरन निजाम को हैदराबाद से हटा कर उसे अवध आने का निर्देश दिया, और कहा कि पेशवाओं से पंगा लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन निजाम नहीं माना और उसने मुगलों पर हमला कर दिया। मुगल सल्तनत इतनी कमजोर हो चुकी थी कि निजाम के हमले से ही धराशाई हो गयी।



अति आत्मउत्साह में निजाम ने की गलती

आशफ निजाम उल मुल्क की उपाधि के साथ खुद को शेर समझने लगा, लेकिन वह भूल गया कि जिस युद्ध क्षेत्र में उसने लड़ना सीखा है, उसे बनाने वाले पेशवा थे। पेशवा ने अपनी सारी फौज को संगठित कर निजाम पर हमला कर दिया और उसके आसपास के इलाकों को जीतने लगी। और निजाम के खजाने को लूटा। मगर निजाम ने भी पेशवा के छोटे-छोटे राज्य को जितना शुरू किया और जीतते-जीतते पुणे तक पहुंच गया। पेशवा के सेना का सामना महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास पालखेड नामक जगह पर निजाम की सेना से हुआ। निजाम को यह उम्मीद थी कि पेशवा का दुश्मन रह चुका संभाजी उसका साथ देगा, लेकिन सांभा जी ने पेशवा तलवार के सामने नतमस्तक होकर माफी मांग ली।

पालखेड के मैदान में निजाम उल मुल्क आसिफ जहां प्रथम की सेना को पेशवा की सेना ने चारों तरफ से घेर लिया और उन्हें काट कर वहीं जमींदोज कर दिया गया म। निजाम के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर करवाया गया, जिस पर पेशवा ने अपनी सारी शर्तें निजाम से घुटनों के ऊपर गिर भाकर उससे कुबूल कर भाई निजाम ने उसे स्वीकार किया। उसके बाद किसी मुगलिया शासक ने पेशवा ऊपर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नही की। ।

बाजीराव प्रथम को अमर बना देने में पालखेड़ की लड़ाई का अपना विशेष महत्व है। जो पेशवा मराठा साम्राज्य को इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करता है।

Published By
Prakash Chandra
02-04-2021

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