घाघरा का युद्ध

घाघरा का युद्ध
घाघरा का युद्ध

घाघरा का युद्ध पिछले युद्धो का परिणाम था, जहाँ एक तरफ भारत के राजाओ में बदले की भावना तो दूसरी तरफ सीमा विस्तार और विद्रोहियों का दमन। इस युद्ध का नाम बिहार में बहने वाली घाघरा नदी के ऊपर पड़ा। यह नदी हिमालय से निकलने के बाद कर्णाली नदी के नाम से जानी जाती है फिर यह नेपाल और उत्तर प्रदेश व बिहार के रास्ते बलिए और छपरा के मध्य गंगा नदी में मिल जाती है। इसको सरयू नदी के नाम से भी जानते है।

इस युद्ध की साक्षी यह नदी और यहाँ की धरती बनी, जो वीरो के खून से लाल हो गयी। यह पहला ऐसा युद्ध बना जो धरती और नदी दोनों जगह लड़ा गया। यह युद्ध चंदेरी के युद्ध के पश्चात लड़ा गया, चंदेरी का युद्ध सन 1528 ईस्वी में बाबर और राजा मेदिनीराय के मध्य लड़ा गया था। चंदेरी के युद्ध में बाबर के व्यस्त होने के कारण अफगानियों ने विद्रोह करना आरम्भ कर दिया था, अफगानियों ने विद्रोह करने के बाद शमशाबाद जो की आगरा के नजदीक है वहाँ पर कब्ज़ा कर लिया था।

बाबर को इस बात की खबर थी की अगर अफगानो ने आगरा पर सत्ता हासिल कर ली, तो दिल्ली का तख्ता पलट करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। बाबर ने चंदेरी के युद्ध के ख़त्म होने के बाद ही बिहार की तरफ रुख किया, और उस समय बाबर की सेना के विरुद्ध महमूद लोदी के नेतृत्व में अफगानो ने युद्ध लड़ने की ठानी । महमूद लोदी इब्राहम लोदी का भाई था, इब्राहम लोदी दिल्ली का शाशक था और वो बाबर से पानीपत के युद्ध में पराजित हुआ था । इसी पराजय का बदला लेने के लिए महमूद लोदी बिहार के राज्य में सेना को संगठित कर रहा था। बाबर की सेना और महमूद लोदी की सेना 6 मई 1529 ईस्वी को घाघरा नदी के किनारे एक दूसरे के सामने थी।

बाबर की सेना ने अफगानो का नदी में भी पीछा जारी रखा, जिससे अफगानो ने बाबर की सेना से नदी में भी सामना किया। लेकिन अफगान ज्यादा देर तक सेना का सामना न कर सके और वही नदी में वीरो ने अपने प्राण गवा दिए और घाघरा नदी भी खून से लाल हो उठी। और महमूद लोदी वहाँ से भागने में कामयाब रहा और भाग कर बंगाल में शरण ली।

बाबर ने नुसरतशाह को, महमूद लोदी को वापिस करने की मांग की। नुसरतशाह को यह ज्ञात था की वह बाबर की सेना से लड़ने में सक्षम नहीं है तो उसने बाबर के साथ संधिपत्र स्वीकार करने को कहा। संधिपत्र के अनुसार दोनों एक दूसरे के दुश्मनो को अपने-अपने राज्य में शरण नहीं देंगे । और नुसरतशाह ने बंगाल में ही महमूद लोदी को एक जागीर सौप दी।

इस तरह से घाघरा का युद्ध इतिहास के युद्धो में निर्णायक साबित हुआ। और यह युद्ध मुग़ल वंश में और भारत राज्य में अपनी सीमा विस्तार के साथ वंश को बढ़ाने में भी अहम् भूमिका निभाई। इस युद्ध के पश्चात बाबर वापिस आगरा गया। हमारे भारत देश में अनेको वीरो ने अपने प्राणो की चिंता किये बिना इस देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। शायद भारत के इतिहास को बदलाव की मांग थी जिस कारण से हमारे सोने की चिड़िया पर विदेशियों ने हमेशा अपनी नज़र गड़ाए रखी।

Frequently Asked Questions:-

1. घाघरा का युद्ध किनके बीच हुआ था ?

बाबर की सेना और महमूद लोदी की सेना


2. घाघरा का युद्ध कब हुआ था ?

6 मई 1529 ईस्वी


3. घाघरा के युद्ध का परिणाम ?

बाबर की विजय


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