यह युद्ध उस समय हुआ, जिस समय, मुग़ल साम्राज्य भारत में अपनी जड़े फैला रहा था और अपना साम्राज्य विस्तार कर रहा था। यह काल कुछ इस तरह था कि, घाघरा में युद्ध के पश्चात, बाबर की मृत्यु हो गई थी।
मुख्य बिंदु
स्थान : देवरा (उत्तर प्रदेश)
युद्ध : अफगान और मुग़ल
सेना नेतृत्व : महमूद लोदी और हुमांयूं
समय : 1532 ईस्वी
परिणाम : हुमांयूं की विजय
मुगलों के दुश्मन: अफ़गान-
घाघरा के युद्ध में अफगानो का नियंत्रण करने वाले महमूद लोदी, युद्ध के बाद बंगाल के शरणागत हुए थे। बाबर के मृत्यु के पश्चात यह अफ़गान, फिर से दिल्ली पर शाशन के सपने देख रहे थे।
हुमायूं का राज -
हुमांयू को इतिहास में नसीरुद्दीन मुहम्मद के नाम से भी जाना जाता है। अपने पिता के मृत्यु के बाद, बाबर के बड़े बेटे हुमांयू का राजतिलक, आगरा में हुआ। तद पश्चात् हुमांयू, मुग़ल सल्तनत के शाशक बने। 22 वर्ष की आयु में हुमांयू ने एक विशाल साम्राज्य को संभाला। आईये जानते है किस तरह हुमांयू ने राज किया और किस तरह उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया।
हुमांयू ने अपने भाईयो में साम्राज्य को बाँट दिया। इस तरह, कामरान मिर्जा को काबुल और लाहौर का राज्य सँभालने का दायित्व दिया गया। हुमायूं के बाकी दोनों भाइयों को, अस्करी और हिन्दाल के राज्यो में हिस्सा दिया गया। क्रमशः, हुमायूं ने, भारत के विभिन्न राज्यों की कमान अपने हाथो में ली।
कालिंजर का युद्ध
भारत की कमान सँभालने के साथ ही, हुमांयूं ने सन 1531 ईस्वी में अपने सीमा विस्तार करने के लिए कालिंजर के किले पर भी आक्रमण किया। उस समय कालिंजर के किले पर राजा रूद्र देव का शाशन था। कालिंजर के किले को भेद पाना इतना आसान नहीं था। पहाड़ियों पर बने होने के कारण यह किला अभेद था। लेकिन हुमांयूं ने इस नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया। उन्होंने किले पर अपना कब्ज़ा तो किया, परंतु ज्यादा समय तक उस किले पर, वे शाशन न कर पाए। कालिंजर के किले में इस अल्प अवधि शशन का कारण यह था कि- उस समय अफगानों (मुगलों के शत्रु) ने विद्रोह करना प्रारम्भ कर दिया था। इस वजह से हुमांयूं ने राजा रुद्रदेव से कुछ शर्तो पर संधि कर ली और राजा रूद्र देव का पुनः शाशन स्थापित हो गया।
देवरा का यूद्घ-
कालिंजर के युद्घ से वापिस पहुंचने के बाद हुमायूं ने अपनी सेना को मजबूत किया और अफगानो के खिलाफ युद्ध करने का फैसला लिया। सन 1532 ईस्वी में, अफगानो की सेना का नेतृत्व कर रहे महमूद लोदी और हुमांयूं की सेना, दोहरिया या देवरा नामक स्थान पर, एक दूसरे के साथ युद्ध की स्थिति में थे। इस युद्ध के परिणाम में अफगानो की पराजय हुई और हुमांयूं को विजय प्राप्त हुआ।
देवरा के युद्ध के परिणाम स्वरूप, हुमांयूं ने चुनार के किले पर कब्ज़ा कर लिया, जो कि किला उस समय, शेरशाह सूरी के कब्जे में था। हुमांयूं ने अपने विरुद्ध युद्ध की संभावनाओं को देखते हुए शेरशाह सूरी (उपनाम - शेर खान) के विरुद्ध हमला बोल दिया था। शेरशाह ने हुमांयूं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और संधि स्वीकार कर लिया। इसी कारण, हुमांयूं ने शेरशाह को किला वापिस भी दे दिया। इसके उपरांत, शेरशाह सूरी ने उपहार स्वरुप अपने बेटे क़ुतुब खान के साथ सेना की एक टुकड़ी हुमांयूं को दे दी।
निष्कर्ष-
हुमांयूं ने अपने जीवनकाल में कई युद्ध लड़े थे। उन्होंने कई युद्ध कि अपने पिता बाबर के पास रह कर भी लड़े थे। इन युद्धों में पानीपत का युद्ध भी शामिल था, जो भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इसके पश्चात उन्होनें कई और युद्ध लड़े जिनमे उन्हें विजय भी हासिल हुई। कालिंजर और देवरा के युद्ध में हुमायूँ की प्रमुख भूमिका रही। अगले युद्ध की कड़ी में जानेंगे की कैसे हुमांयूं ने अपनी रणनीति और युद्ध कौशल का प्रयोग करके युद्ध जीते।
Frequently Asked Questions:-
1. देवरा का युद्ध किसके बीच हुआ था ?
अफगान और मुग़ल
2. देवरा का युद्ध का परिणाम ?
हुमांयूं की विजय
3. देवरा का युद्ध कब हुआ था ?
1532 ईस्वी